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2020 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान की मौत हो गई. पार्टी और चुनाव की पूरी जिम्मेदारी चिराग पासवान के कंधों पर आ गई. उस साल एनडीए से अलग होकर लोक जनशक्ति पार्टी अकेले चुनावी मैदान में उतरी थी. पार्टी ने 135 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. लेकिन सिर्फ एक सीट पर जीत मिली. कुछ महीनों बाद पार्टी का एकलौता विधायक भी जेडीयू में शामिल हो गया. हालांकि, लोक इसी चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी ने जेडीयू को सबसे ज्यादा डेंट पहुंचाया.
आठ महीने बाद चिराग को एक और झटका लगा. चाचा पशुपति पारस ने 5 सांसदों के साथ मिलकर पार्टी पर 'कब्जा' कर लिया. लोक जनशक्ति पार्टी दो हिस्सों में बंट गई. चिराग ने पार्टी का नाम रखा- लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास). तमाम राजनीतिक घटनाक्रम के बीच चिराग, मोदी और बीजेपी के करीब बने रहे. और प्रदेश में अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटे रहे.
साल बीता. चिराग 2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए. ये चुनाव उनके और उनकी पार्टी के लिए बेहद अहम माना जा रहा था. NDA के तहत एलजेपी (आर) ने 5 सीटों पर चुनाव लड़ा और 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ पांचों पर जीत दर्ज की. इनाम के तौर पर चिराग को मोदी मंत्रिमंडल में जगह मिली.
2024 की जीत पर सवार चिराग इस चुनाव में एनडीए के लिए अहम कड़ी माने जा रहे थे. चुनाव से पहले पार्टी 40 सीटों की डिमांड कर रही थी, हालांकि, गठबंधन के तहत उन्हें 29 सीटें मिली. वोटिंग से पहले पार्टी को तब झटका लगा, जब मढ़ौरा सीट से उम्मीदवार का नामांकन खारिज हो गया.
'बिहार और बिहारी फर्स्ट' की बात करने वाले चिराग पासवान की पार्टी के खाते में 19 सीट जाती दिख रही है.
फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद से ये लोक जनशक्ति पार्टी का सबसे बेहतर प्रदर्शन है. तब रामविलास के नेतृत्व में पार्टी ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी. हालांकि, 7 महीने बाद दोबारा हुए चुनाव में पार्टी को सीधे 19 सीटों का नुकसान हुआ. इसके बाद विधानसभा चुनावों में पार्टी का ग्राफ और गिरता गया. 2010 में 3, 2015 में 2 और 2020 में पार्टी सिर्फ 1 सीट ही जीत पाई थी.
NDA के हनुमान कहे जाने वाले चिराग ने इस बार महागठबंधन के कब्जे वाली सीटों पर जीत का परचम लहराया है. वैशाली की महुआ सीट से एलजेपी (आर) प्रत्याशी संजय कुमार सिंह ने 45 हजार वोटों के अंतर से जीत दर्ज की है. पिछले दो बार से यहां आरजेडी का कब्जा था. 2015 में तेज प्रताप यादव ने जीत दर्ज की थी. इस बार वे अपनी पार्टी बनाकर मैदान में उतरे थे.
दरौली सीट पर लेफ्ट का दबदबा रहा है. सीपीआई (एमएल) पिछले दो बार से जीत रही थी. हालांकि, इस बार चिराग की पार्टी ने लेफ्ट का रंग में भंग डाल दिया. विष्णु देव पासवान ने 9500 वोटों से जीत दर्ज की है.
कटिहार की बलरामपुर सीट जो लंबे समय तक सीपीआई (एमएल) के महबूब आलम के कब्जे में थी, यहां पर एलजेपी (आर) की प्रत्याशी संगीता देवी ने 389 वोटों से जीत दर्ज की है. खास बात है कि लेफ्ट पार्टी तीसरे नंबर पर रही. दूसरे नबंर पर AIMIM रही. बखरी सीट भी सीपीआई के हाथ से निकल गई.
मुजफ्फरपुर की बोचहां, चेनारी से महागठबंधन जीतती रही है, हालांकि इस बार चिराग के हेलीकॉप्टर ने उड़ान भरी है.
बिहार जातिगत सर्वेक्षण 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदेश में पासवान जाति की आबादी कुल जनसंख्या का 5.31% है. चुनाव के नतीजों से साफ है कि चिराग को पासवान वोटर्स का पूरा साथ मिला है. एनडीए के साथ होने से बीजेपी और जेडीयू का वोट भी सीधे एलजेपी (आर) में ट्रांसफर हुआ है.
दूसरी तरफ, चिराग से एनडीए को भी फायदा हुआ है. 2020 विधानसभा चुनाव में एलजेपी 9 सीटों पर दूसरे पायदान पर रही थी. वहीं कम के कम 35 सीटों पर उसने नीतीश कुमार की जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था.
हालांकि, इस बार चिराग के साथ आने से एनडीए का समाजिक समीकरण और मजबूत हुआ, जिससे गठबंधन को फायदा हुआ है. जेडीयू को 42 सीटों की फायदा होता दिखा रहा है. बीजेपी का नंबर भी बढ़ा है.