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सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर की जा रही है जिसमें लोग एक पत्थर के खंभे के चारों ओर खड़े हैं, जिसकी चारदीवारी छोटी और गोल आकर की है. इस तस्वीर को शेयर कर दावा किया जा रहा है कि यह इस्लामिक धार्मिक स्थल मक्का में लगी शिवलिंग की फोटो है.
यह तस्वीर न्यूज नेशन के एक आर्टिकल में भी शेयर की गई थी, जिसमें दावा किया गया था कि मुसलमान इस स्थान पर हिंदू देवता 'मक्केश्वर महादेव' की पूजा कर रहे थे, जिससे इसका नाम 'मक्का' पड़ा था.
क्या यह सच है?: नहीं, यह इस्लाम में शैतान या शैतान को दर्शाने वाले तीन स्तंभों में से एक को दर्शाता है, जिस पर हज यात्री अनुष्ठान के तौर पर पत्थर फेंकते हैं.
2004 में एक जानलेवा भगदड़ के बाद, तीर्थयात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन स्तंभों को दीवारों में बदल दिया गया था.
हमें सच्चाई कैसे पता चली?: हमने Google Lens की मदद से रिवर्स इमेज सर्च किया जिसकी मदद से हम स्टॉक इमेज वेबसाइट Alamy तक पहुंचे.
यहां इसे हज यात्रा की एक तस्वीर के रूप में शेयर किया गया था, जिसमें मुसलमान सऊदी अरब में मक्का की यात्रा करते हैं.
इस फोटो को हज यात्रा के दौरान की बताकर शेयर किया गया.
(सोर्स: अलामी/स्क्रीनशॉट)
इससे हमें India.com की एक फोटो स्टोरी भी मिली, जिसमें कहा गया था कि इसमें हज यात्रा के बारे में तस्वीरें हैं, जो नेशनल ज्योग्राफिक मैगजीन द्वारा जुलाई 1953 में ली गई थीं.
इन तस्वीरों का क्रेडिट नेशनल ज्योग्राफिक मैगजिन को दिया गया है.
(सोर्स: India.com/स्क्रीनशॉट)
यहां से अंदाजा लगाते हुए हमने इंटरनेट आर्काइविंग वेबसाइट Wayback Machine पर इस मैगजीन के अर्काइव्ड वर्जन (सेव किया हुआ) ढूंढना शुरू किया.
हमें नेशनल जियोग्राफिक मैगजीन का जुलाई 1953 का वर्जन मिला, जिसकी लीड स्टोरी का टाइटल था, "अमेरिका से मक्का तक हवाई तीर्थयात्रा," और इसे अब्दुल गफूर शेख नाम के व्यक्ति ने दर्ज किया था.
इस यात्रा का विवरण हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एक छात्र ने 1953 में दर्ज किया था.
(सोर्स: Wayback Machine/स्क्रीनशॉट)
यह मैगजीन के पेज नंबर 38 पर छपा था, और पिछले पेज पर तस्वीर की डिटेल शेयर की गई थी.
डिटेल का टाइटल था, "कंकड़ उड़ रहे हैं. मीना में स्तंभ पर पत्थर फेंके जा रहे हैं," (अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद) जो मक्का के नजदीक एक शहर है.
फोटो के कैप्शन में बताया गया है कि इसमें तीर्थयात्रियों को शैतान की निंदा करने के लिए एक अनुष्ठान में भाग लेते हुए दिखाया गया है.
(सोर्स: The National Geographic Magazine/Wayback Machine/Altered by The Quint)
आर्टिकल में बताया गया है कि तस्वीर में क्या हो रहा था, जिसमें कहा गया है कि "मुस्लिम जानकारों के मुताबिक," इब्राहिम के बेटे इस्माइल ने "तीन बार शैतान का सामना किया", जबकि वे दोनों अल्लाह के हुकुम के मुताबिक हजरत इस्माइल को जिन्दा कुर्बान करने जा रहे थे.
इसमें यह भी कहा गया है कि पिता-पुत्र की जोड़ी ने शैतान से बचने के लिए उस पर पत्थर फेंके, जो तीर्थयात्री भी करते हैं. यह दर्शाने के लिए कि वे हज के दौरान मक्का जाते समय शैतान को अस्वीकार कर रहे हैं.
धर्मगुरु से बातचीत: इस प्रथा को बेहतर ढंग से समझने के लिए. द क्विंट ने उत्तर प्रदेश के बरेली की खान बहादुर खान मस्जिद के इमाम वारिस रज़ा से संपर्क किया, जिन्होंने हमें इस बारे में और अधिक जानकारी दी.
स्तंभ के महत्व के पीछे की कहानी बताते हुए उन्होंने कहा कि इस स्तंभ को इस्लाम में जमरात के नाम से जाना जाता है और यह हज यात्रा के दौरान किए जाने वाले महत्वपूर्ण अनुष्ठानों का एक हिस्सा है.
इमाम वारिस रजा ने कहा कि जब ऐसा हुआ, तो शैतान पैगम्बर की पत्नी हागर के सामने प्रकट हुआ और उसे इस बारे में बताया.उन्होंने आगे कहा कि उनकी पत्नी पैगम्बर इब्राहीम के कार्यों से सहमत थीं और उन्होंने शैतान से कहा कि "अगर अल्लाह ने इसकी मांग की है, तो मैं इसके लिए एक हजार बेटों की कुर्बानी देने के लिए तैयार हूं."
इमाम ने हमें आगे बताया कि, "उनके जवाब से निराश होकर शैतान ने पैगम्बर और इस्माइल के सामने तीन बार मानव रूप में प्रकट होकर उन्हें अल्लाह के निर्देश का पालन करने से रोका."
हर बार ऐसा होने पर, पैगम्बर ने शैतान पर सात कंकड़ फेंके, और "इन स्थानों को चिह्नित करने के लिए, तीन पत्थर (जमरात) खड़े कर दिए गए. "
हमें हज यात्रा के इतिहास और महत्व के बारे में ब्रिटिश म्यूजियम द्वारा प्रकाशित 'Hajj: Journey to the Heart of Islam' टाइटल वाली एक कैटलॉग में भी यही जानकारी मिली.
ब्रिटिश संग्रहालय की कैटलॉग ने इमाम के स्पष्टीकरण की पुष्टि की.
(सोर्स: Hajj: Journey to the Heart of Islam/Altered by The Quint)
इस स्तंभ से संबंधित किसी भी ऐतिहासिक आर्टिकल या न्यूज रिपोर्ट में इसके 'मक्केश्वर महादेव' होने या शिवलिंग होने से संबंधित कोई जानकारी नहीं है.
स्तंभ के बारे में अधिक जानकारी: इस स्तंभ को 2004 तक उनके मूल स्वरूप में बनाए रखा गया था.
लेकिन जब शैतान को पत्थर मारने की रस्म के दौरान 27 मिनट तक चली भगदड़ में 244 लोगों की जान चली गई, तब सऊदी अरब सरकार ने सुरक्षा के लिए स्तंभ को दीवारों में बदल दिया. इसके बाद तीर्थयात्रियों को इन स्तंभ के दूसरी तरफ खड़े साथी तीर्थयात्रियों को गलती से कंकड़ लगने का खतरा टाल दिया.
2014 के इस एसोसिएटेड प्रेस (AP) वीडियो में अनुष्ठान का वीडियो देखा जा सकता है.
निष्कर्ष: सऊदी अरब के मीना में लगे शैतान का स्तंभ, जिसमें अब थोड़ा बदलाव हो चुका है, उसकी 1953 की तस्वीर को मक्का में शिवलिंग के रूप में गलत दावों के साथ शेयर किया जा रहा है.
(अगर आपके पास भी ऐसी कोई जानकारी आती है, जिसके सच होने पर आपको शक है, तो पड़ताल के लिए हमारे वॉट्सऐप नंबर 9540511818 या फिर मेल आइडी webqoof@thequint.com पर भेजें. सच हम आपको बताएंगे. हमारी बाकी फैक्ट चेक स्टोरीज आप यहां पढ़ सकते हैं.)