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बंगाल: एक साल पहले तेलिनिपारा में हुआ था दंगा, चुनाव पर कितना असर?

करीब 3 दिन तक यहां पर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा हुई थी

इशाद्रिता लाहिड़ी
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जब मई 2020 में पूरा देश कोरोना महामारी का कहर झेल रहा था तो, पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के तेलिनीपारा में रहने वाले लोगों पर एक और आफत टूटकर आई. करीब 3 दिन तक यहां पर हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच सांप्रदायिक हिंसा हुई. इस हिंसा ने इस पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लिया. इस पूरी हिंसा को कुछ और संस्थानों के साथ क्विंट ने भी कवर किया था.

ये दंगा मुस्लिमों के लिए इसलिए दोगुनी मुसीबत लेकर आया था, क्योंकि तब उन पर लगातार आरोप लग रहे थे कि वो कोरोना फैलाने का कारण हैं. दिल्ली में तबलीगी जमात में आए कोरोना मामलों के बाद से ये ट्रेंड शुरू हुआ था.

अब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और हुगली में भी चुनाव है, तो इस मौके पर हम एक बार फिर हुगली के तेलिनीपारा इलाके में गए. की बोलचे बांग्ला सीरीज के इस एपिसोड के लिए हम उन कुछ लोगों से मिले, जिनसे दंगों के वक्त हमने बातचीत की थी.

प्रशासन से कोई उम्मीद नहीं

जब हम दंगों के बाद तेलिनीपारा इलाके में गए थे तो तब पुलिस के कारण ज्यादा हिंदू परिवारों से मुलाकात नहीं कर पाए. इसीलिए हम इस बार सबसे पहले हिंदू परिवारों से मिलने पहुंचे. पिछली बार जो हमने जले हुए घरों की पूरी कतार देखी थी, वो अब एक या दो बेडरूम वाले घरों के रूप में रिपेयर हो चुके थे. यहां हम प्रकाश जायसवाल से मिले, जिन्होंने हमें समझाया कि उनका घर हिंदू और मुस्लिम इलाके के बीच का बॉर्डर था.

दंगे वाले दिनों को याद करते हुए प्रकाश ने बताया कि, कैसे उनके परिवार को अपनी जान बचाने के लिए मशक्कत करनी पड़ी. इसके अलावा प्रकाश पुलिस की कथित असंवेदनशीलता को भी याद करते हैं.

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प्रकाश का कहना है कि जब उनका घर आग की लपटों में जल रहा था तो उन्होंने पुलिस से कई बार ये कहा कि उन्हें आग बुझाने दी जाए. लेकिन पुलिस ने एक नहीं सुनी. इस घटना में घर के साथ-साथ पेशे से फोटोग्राफर प्रकाश का कैमरा भी जल गया. इसके अलावा बाकी समान भी खाक हो गया. इस सबके बदले प्रकाश को सिर्फ 10 हजार रुपये का मुआवजा मिला.

जब हमने प्रकाश से पूछा कि विधानसभा चुनावों से वो क्या चाहते हैं. तो उन्होंने कहा कि, मैं ये चाहता हूं कि सभी को एक जैसा ट्रीट किया जाए. उन्होंने दावा किया कि,

“दूसरी तरफ मुस्लिमों के मकान जले थे, जिन्हें सरकार ने पूरी तरह से बना दिया है. लेकिन हमें सिर्फ 10 हजार रुपये दे दिए गए. जिसके बाद कहा गया कि आप अपना घर बना लीजिए.”

घर तो बन गए, लेकिन कैसे बदलेंगे हालात?

पिछले साल दंगों में 60 साल के बुजुर्ग कमरूनिसा ने अपनी टांग खो दी, तब हम उनसे मिले थे. लेकिन अब एक साल बाद वो अपनी बुजुर्ग पत्नी के साथ वो दूसरी जगह शिफ्ट हो चुके हैं.

वहीं शाहीना ने बताया कि उनके घर को सरकार ने दोबारा बना तो दिया, लेकिन अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं. लेकिन दस्तावेजों को लेकर लगातार भागदौड़ कर रहे हैं. शाहीना ने वोटिंग को लेकर कहा कि इससे कुछ नहीं होगा, यहां के हालात नहीं बदलेंगे.

हालांकि दंगों की आग देख चुके लोगों का कहना है कि वो अब यहां पर शांति चाहते हैं. क्योंकि हिंसा से दोनों तरफ के लोगों का नुकसान होता है. चुनाव या किसी भी पार्टी से कुछ नहीं होगा. हमें आपस में ही शांति बनाकर रखनी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि, कुछ लोग लगातार अफवाहें फैलाने का काम कर रहे हैं. जो गलत है. जो हुआ है वो आगे कभी न हो.

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