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पंजाब (Punjab) का मसोल शिवालिक पहाड़ियों का एक छोटा सा गांव मौसमी नदियों से घिरा हुआ है, जहां के लोग पंजाब सरकार से नाराज हैं, यह राज्य की राजधानी चंडीगढ़ से सिर्फ 8 किमी दूर है, लेकिन विकास के मामले में यह पंजाब के बाकी हिस्सों से कम से कम 60 साल पीछे है.
पंजाब के एसएएस नगर जिले का मसोल गांव
(फोटोः संदीप सिंह)
मसोल बंजारा समुदाय के महज 300 लोगों का गांव है. इसमें 5 वीं कक्षा तक एक स्कूल है, कोई डिस्पेंसरी नहीं है, बिजली आती-जाती रहती है, बेरोजगारी और कनेक्टिविटी की समस्या है, क्योंकि स्कूलों में जाने या आसपास के शहरों में जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन की कोई सुविधा नहीं है.
गांववालों की जमीनों को धनी लोगों ने अपने लिए फॉर्म हाउस बनाने के लिए खरीदा था. अधिकांश ग्रामीण दिहाड़ी मजदूर हैं जो या तो इन फॉर्म हाउसों में काम करते हैं या मजदूरी के लिए चंडीगढ़ जाते हैं.
मसोल ने काफी पलायन देखा है
(फोटोः संदीप सिंह)
गांव के लोग नेताओं से काफी नाराज हैं उनका कहना है कि नेता हमसे वोट तो लेते हैं, लेकिन हमारे लिए कोई काम नहीं करते. मजबूर होकर लोग इस गांव के पलायन कर रहे हैं. मसोल में लाइन से ऐसी कई मकान हैं, जहां अब कोई नहीं रहता है, ये लगभग भूतिया शहर में बदल चुका है. गांव में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है. स्थानीय लोगों ने बेहतर सुविधाओं की तलाश में यहां से जाकर कहीं और बसना ही बेहतर समझा.
क्विंट की टीम ने गांव का दौरा किया. जहां कभी सड़क थी, अब नाला बहता है और गांववालों को बहते पानी से होकर गुजरना पड़ता है. 14 साल के गोल्डी सिंह ने वह रास्ता दिखाया, जिससे बच्चे आमतौर पर स्कूल जाते हैं.
मसोल में जब भी बारिश होती है सड़कों और रास्तों पर पानी भर जाता है
(फोटोः संदीप सिंह)
बारिश के दिनों में मसोल में कई दिनों तक बिजली नहीं आती, सड़क किनारे पड़े बिजली के खंभे तक उखड़ जाते हैं.
मसोल का पुरातात्विक महत्व भी है, यहीं पर भारतीय और फ्रांसीसी वैज्ञानिकों की एक टीम को 26 लाख साल पुराने जीवाश्म मिले थे.
पीएमओ ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को 150 एकड़ गांव की भूमि को सुरक्षात्मक क्षेत्र घोषित करने का निर्देश दिया था. लेकिन मसोल के लोगों और उसके 350 मतदाताओं के लिए कुछ नहीं किया गया. चुनाव आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन मसोल में कुछ नहीं बदलता.