सरकार का COVID-19 पैकेज, न दिल खुला, न जेब

किसान और मजदूर को लेकर सरकार का न दिल खुलता है ना जेब खुलती है.

योगेंद्र यादव
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करीब 1 हफ्ते के इंतजार के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उस पैकेज की घोषणा की जिसकी बेहद जरूरत थी. इस पैकेज में रसोई के लिए, बुजुर्गों के लिए कुछ है, महिलाओं के लिए कुछ है, हेल्थ वर्कर्स के लिए भी घोषणाएं हैं. लेकिन किसान और मजदूर को एक बार फिर लॉलीपॉप पकड़ा दी गई.

सबसे अच्छी खबर ये है हेल्थ वर्कर्स के लिए इंश्योरेंस की सुविधा, जिसकी वाकई में जरूरत थी. और हर व्यक्ति के लिए राशन में प्रतिमाह 5 किलो ज्यादा गेहूं या चावल, 1 किलो दाल भी मुफ्त दी जाएगी. साथ ही फ्री सिलेंडर की घोषणा की गई. इससे रसोई के संकट को दूर करने में मदद जरूर मिलेगी. साथ में बुजुर्गों, विधवाओं, दिव्यांगों को 1000 रुपये एकमुश्त देना भी बहुत अच्छा कदम है. इनका स्वागत होना चाहिए.

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कुछ ऐसी घोषणाएं हैं जो सिर्फ घोषणा करने के लिए की जाती हैं. पीएफ वाले से बहुत ज्यादा लोगों को फायदा मिलेगा नहीं. कंस्ट्रक्शन वर्कर के लिए जो योजना है, दरअसल उनका ही पैसा है जिस पर सरकार बैठी हुई है. वही पैसा उनको वापस मिल जाएगा. इनसे कुछ बड़ा फर्क नहीं पड़ने वाला है.

सबसे ज्यादा निराशा किसानों और मजदूरों के लिए है. किसानों से कहा गया कि उनकी सम्मान राशि अप्रैल में दे दी जाएगी लेकिन किसानों को ये सम्मान राशि अप्रैल में ही मिलनी थी. इसमें कुछ नया नहीं है. किसान के जो सचमुच के मुद्दे थे जैसे उन्हें मंडी पर जाने का मौका नहीं मिल रहा, उनका प्रोक्योरमेंट नहीं हो रहा, फसलों का नुकसान हो चुका है, उसका मूल्यांकन नहीं हो रहा. इस बारे में निर्मला सीतारमण जी ने कुछ नहीं कहा और मनरेगा के वर्कर्स पर तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया. कहा गया कि आपकी मनरेगा की तनख्वाह बढ़ाई जाएगी लेकिन तनख्वाह कब मिलेगा? जब काम ही नहीं मिल रहा तो इस बढ़त का क्या फायदा?

सरकार मनरेगा वर्कर्स के 6000 करोड़ रुपये के वेजेस पर बैठी हुई है. वित्त मंत्री इतना कह देतीं कि वो रिलीज कर दी जाएगी. सरकार की आंख खुली, मन खुला इस बार थोड़ी जेब भी खुली लेकिन किसान और मजदूर को लेकर न दिल खुलता है ना जेब खुलती है.

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