'दोपदी' को मत रोको-वो तो जुल्म के खिलाफ जरूरी आवाज है

दिल्ली विश्वविद्यालय से हटाई गई महाश्वेता देवी की कहानी द्रौपदी

Santosh Kumar
वीडियो
Published:
<div class="paragraphs"><p>महाश्वेता देवी की शॉर्ट स्टोरी द्रौपदी को डीयू इंग्लिश ऑनर्स कोर्स से बाहर किया गया</p></div>
i

महाश्वेता देवी की शॉर्ट स्टोरी द्रौपदी को डीयू इंग्लिश ऑनर्स कोर्स से बाहर किया गया

इलस्ट्रेशन: अर्णिका काला

advertisement

वीडियो प्रोड्यूसर: मौसमी सिंह

वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

इलस्ट्रेशन: अर्णिका काला

उसका गैंगरेप होता है. गैंगरेप करने वाले उसे कहते हैं अब कपड़े पहन लो. वो दांत से अपने कपड़े फाड़ देती है. जांघों पर खून है. स्तन जख्मी हैं.

वो निर्वस्त्र उस शख्स के सामने अपनी कमर पर हाथ रखकर खड़ी हो जाती है जिसने गैंगरेप का हुक्म दिया था कि देखो तुम्हारे कुकृत्य का नतीजा क्या है.

वो दूसरों के दुष्कर्म पर खुद शर्मसार नहीं है. उसका शरीर कुचला गया है, मन नहीं. उसके शरीर को ढकना है या नहीं, ये उसका फैसला है,किसी और का नहीं.''

ये सब हो रहा है मशहूर राइटर महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) की शॉर्ट स्टोरी द्रौपदी में जिसे डीयू इंग्लिश ऑनर्स कोर्स से बाहर किया गया है.

द्रौपदी एक ऐसी आदिवासी महिला दोपदी की कहानी है जो जमींदारों के जुल्म के खिलाफ खड़ी होती है. जमींदार अपने कुएं से गरीबों को पानी नहीं लेने देते थे. नायिका दोपदी ने अपने पति दुलना के साथ विद्रोह का नेतृत्व किया. जमींदारों की अमानत में इस खयानत पर सरकार दोपदी और दुलना को सजा देती है. पुलिस दोनों को पकड़ लेती है. दुलना को मार देती है, लेकिन दोपदी की सजा बड़ी है. अफसर दोपदी को सबक सिखाने के लिए उसके गैंगरेप का आदेश देता है, जिसका दोपदी अपनी तरह से जवाब देती है.

द्रौपदी एक आदिवासी महिला दोपदी की कहानी है

इलस्ट्रेशन: अर्णिका काला

क्या ये शॉर्ट स्टोरी आपको मर्दों की सत्ता के खिलाफ बगावत की एक बुलंद आवाज नहीं लगती?

भारत जैसे समाज में जहां रोज रेप की घटनाएं होती हैं और जहां रेप के बाद अपराधी नहीं, सर्वाइवर को ही अपना चेहरा और नाम छिपाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, क्या ये विद्रोह उस भारत के लिए जरूरी नहीं लगता? जाहिर है डीयू के कोर्स से इसे हटाने वालों लगता है कि दोपदी की कहानी अब बेमानी हो गई है. लेकिन वो क्यों भूल जाते हैं कि आज भी एक सांसद पर रेप का आरोप लगाने वाली लड़की जब इंसाफ मांगती है तो उसे इतना परेशान किया जाता है कि वो इंसाफ की सबसे बड़ी चौखट यानी सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर जान देने को मजबूर हो जाती है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
जो निजाम इस शॉर्ट स्टोरी को डीयू में पढ़ाने से रोकता है, वो आजमगढ़ में उन पुलिसवालों को क्यों नहीं रोकता जो एक दलित प्रधान का घर तहस नहस करने के बाद घर की महिलाओं से कहता है कि हम यहां मजा लेने आए हैं?

दिल्ली और हाथरस की दलित बेटियां हों या मैसूर की एमबीए स्टूडेंट...जब तक अपराध के बाद पीड़ित में दोष ढूंढने की सियासत होगी. जब तक सियासत साधने के लिए औरत के शरीर को साधन बनाया जाएगा, तब तक दोपदी जरूरी होगी. #metoo मूवमेंट का साथ और दोपदी का विरोध, ये कैसा स्वांग है? जिनको इस कहानी में गरीब और सताए जा रहे लोगों का हिंसक हो जाना बुरा लगता है कि उन्हें जरा उस हिंसा को रोकने के बारे में भी सोचना चाहिए.

किताब तो आईना है, लेखक वही दिखाता है जो देखता है.

महाश्वेता देवी ने देखा कि कौरवों और खुद पांडवों ने जो द्रौपदी के साथ किया वो आज भी जारी है, तो उन्हें दोपदी की कहानी जरूरी लगी. उन्हें लगा कि द्रौपदी का विद्रोह काफी नहीं था, तभी महिलाओं पर जुल्म नहीं रुके. इसलिए उन्होंने दोपदी को और मजबूत किया. व्यास की द्रौपदी मदद के लिए भगवान को पुकारती है, महाश्वेता की दोपदी आगे है क्योंकि अपने लिए खुद खड़ी होती है.

आज जो दोपदी को रोक रहे हैं, वो हमें आगे ले जाना चाहते हैं या पीछे? एनसीआरबी की 2019 में आई रिपोर्ट कहती है कि देश में हर घंटे करीब चार महिलाओं से रेप और हर चार घंटे में एक महिला की तस्करी होती है. जब ये सब रुक जाए तो डिबेट करना कि दोपदी रिलेवेंट है या नहीं..अभी तो घुप अंधेरा है. जुल्म की रात ढल जाए-नई सुबह उग आए तो भी दोपदी को कोर्स और पब्लिक डिस्कोर्स में रखना ताकि विद्रोह की ये आवाज सावधान करती रहे.

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT