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बाबुल मोरा नैहर 'टूटो' ही जाए- मायका उजड़ने का दर्द बतातीं जोशीमठ की बेटियां

Joshimath Crisis Ground Report: "बच्चों को मायके का पुश्तैनी घर कभी दिखा नहीं पाऊंगी"

मधुसूदन जोशी
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<div class="paragraphs"><p>बाबुल मोरा नैहर 'टूटो' ही जाए- मायका उजड़ने का दर्द बतातीं जोशीमठ की बेटियां</p></div>
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बाबुल मोरा नैहर 'टूटो' ही जाए- मायका उजड़ने का दर्द बतातीं जोशीमठ की बेटियां

(फोटो- क्विंट)

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"हे विधाता हमून तेरे क्या बिगाडी (हे भगवान हमने तेरा क्या बिगड़ा है)"

यह दर्द है उत्तराखंड (Uttarakhand) के धंसते शहर जोशीमठ (Joshimath Sinking) के निवासियों का. इन लोगों के लिए उनका आशियाना छिन रहा है, उन गलियों से साथ छूट रहा है जहां उन्होंने बचपन से जवानी तक का सफर तय किया. शोक में डूबे ऐसे ही लोगों में वे बेटियां भी शामिल हैं जो ब्याह करके यहां से चली गयीं लेकिन कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका मायका (नैहर) ऐसे उजड़ जाएगा. क्विंट ने जोशीमठ की कुछ ऐसी ही 'बेटियों' से बात की जो अपने मायके को खंडहर मे तब्दील होते देखने को मजबूर हैं.

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"शायद अब मैं कभी अपने मायके नहीं आ पाऊंगी"

गोदाम्बरी का मायका (नैहर) जोशीमठ में है. अब घरों में दरारें पड़ चुकी हैं. घर के सामने की रोड तक कई फाड़ो में दरक चुकी है. क्विंट से बात करते हुए गोदाम्बरी ने घर की ओर इशारा करते हुए कहा कि "मेरा जन्म यहीं हुआ, यहीं से मैने ककहरा पढ़ा और फिर इसी घर से हाथों में मेहंदी रचकर मेरा विवाह हुआ. प्रशासन अब मेरे परिवार सहित सभी अन्य परिवारों को घर खाली करने को कह रहा है."

गोदाम्बरी का यह घर जोशीमठ के आर्दश नगर में है. उनके पिता की तपोवन टैक्सी स्टैंड पर चाय की दुकान है और उनके परिवार में दो भाईयों सहित चार लोग रहते हैं.

गोदाम्बरी और उनके मायके का घर 

(फोटो- एक्सेस बाई क्विंट)

उन्होंने क्विंट को बताया कि "हमारे मोहल्ले में तीस चालीस घरों मे भयानक दरारे हैं. प्रशासन हमें घर खाली करने को कह रहा है. लेकिन वे रैन बसेरा में जाने को तैयार नहीं हैं. मै हल्द्वानी में रहती हूं. मैने समाचार में जोशीमठ के बारे मे सुना तो मां से बात की. लेकिन उन्होंने साफ-साफ कुछ नहीं बताया."

"गर्मियों मे मायके आते थे लेकिन दो सालों से नहीं आ सके. अब मैं अपने मायके आयी हू, देखकर बहुत दुख हुआ जिसे मैं बयां नहीं कर सकती. शायद अब मैं कभी अपने मायके नहीं आ पाऊंगी. मेरी जैसी बहुत सी सहेलियां हैं जो वर्षो बाद इस आपदा में यहां आयीं हैं.
गोदाम्बरी

"जोशीमठ को न जाने किसकी नजर लग गयी"

कुछ ऐसा ही दर्द लोक निर्माण कालोनी की रूचि का है. उन्हें यह डर है कि शायद वो अपने बच्चों को कभी भी अपने मायके का पुश्तैनी घर नहीं दिखा पाएंगी. वो बताती हैं कि "मेरा परिवार यहां हंसी-खुशी से रहता था. मेरी मां गृहणी हैं और पिता जयप्रकाश इंडस्ट्रीज जोशीमठ में काम करते हैं. बड़ी मुश्किल हालात में घर बना जिसमें तीन कमरे हैं."

रूचि शादी के बाद दिल्ली में रहती हैं.

(फोटो- एक्सेस बाई क्विंट)

"घर बनाने में हुए खर्च का कर्ज अभी तक नहीं उतर सका है. एक भाई है जो इस समय बारहवीं में है. घरवालों को उम्मीद थी कि बारहवीं के बाद भाई फौज या पुलिस में भर्ती हो जायेगा जिससे परिवार का आर्थिक संकट कम होगा. लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर है.
रूचि

रूचि ने आगे बताया कि "मैं दिल्ली में रहती हूं. तीन साल पहले मेरी शादी हुई थी. एकाएक मेरे खूबसूरत शहर जोशीमठ को न जाने किसकी नजर लग गयी, जो धंस रहा है. शायद मैं अपने बच्चों को अपना पैतृक घर कभी वास्तविकता में नही दिखा पाऊंगी. सामने हाथी पर्वत,औली बुग्याल व सैन्य क्षेत्र सब फोटो के रूप में ही मेरे बचपन की याद ताजा करेगी. तब मेरे पास आंसू के सिवाय कुछ नहीं रहेगा."

धंस रहा जोशीमठ 

जोशीमठ का संकट हर रोज बढ़ता जा रहा है. भू-धसाव से पड़ीं चारों ओर दरारें और चौड़ी हो रही हैं. आपदा प्रंबधन प्रधिकरण, चमोली ने एक लिस्ट जारी की है, जिसमें 9 वॉर्ड की 723 भवनों में दरारें दर्ज की गई हैं. 86 भवनों को अनसेफ जोन में रखा गया है. राज्य सरकार पीड़ित परिवारों को मुआवजा भी दे रही है.

आपदा प्रंबधन ने 19 जगहों पर विस्थापित लोगों को राहत शिविरों में ट्रांसफर किया है. इसमें 145 परिवारों के 499 सदस्य शामिल हैं. अस्थाई रुप से बनाए गए राहत शिविरों में 344 कमरों की संख्या निर्धारित की गई है, जिसमें 1425 लोगों के रहने की क्षमता है.

प्रंबधन ने 11 जनवरी तक अब तक 87 खाद्दान किट, 80 कंबल, और 590 लीटर दूध बांटा जा चुका है. इसके साथ ही अब तक 104 हेल्थ चेकअप किए जा चुके हैं.

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