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VHP के कार्यक्रम में जस्टिस शेखर: क्या लोकतंत्र का मतलब बहुसंख्यकों का कानून?

2014 से लेकर अबतक कितने जज राजनीति में शामिल हुए और किस पार्टी में गए?

शादाब मोइज़ी
वीडियो
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<div class="paragraphs"><p>(जस्टिस शेखर के बयानों पर विवाद</p></div>
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(जस्टिस शेखर के बयानों पर विवाद

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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ऑर्डर.. ऑर्डर.. क्या भारत की ज्यूडिशियरी (न्यायतंत्र) आजाद है? क्या अब अदालत और जज भी चुनाव की तरह काम करेंगे? मतलब जिसकी संख्या ज्यादा उसके पक्ष में फैसला. क्या अदालत से लोगों का विश्वास कम हो रहा है? ये सवाल क्यों पूछा जा रहा है इसके लिए आप माननीय जज साहब को सुनिए.

"मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यह हिंदुस्तान है, यह देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा. कानून तो भैया बहुसंख्यक से ही चलता है."

ये हैं इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज, जस्टिस शेखर कुमार यादव. रिटायर नहीं, सिटिंग जज. ये बयान जज साहब ने 8 दिसंबर 2024 को राइटविंग ग्रुप विश्व हिंदू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में दिया था.

लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं है, दरअसल, भारत में पिछले कुछ वक्त से बार-बार जुडिशियरी सवालों के घेरे में है. इसलिए इस वीडियो में हम आपको बताएंगे कि 2014 से लेकर अबतक कितने जज राजनीति में शामिल हुए और किस पार्टी में गए. क्या जज विचारधारा के हिसाब से फैसले दे रहे हैं? भारत के ज्यूडिशियल सिस्टम में कहां कमी है. फिर आप भी पूछिएगा जनाब ऐसे कैसे?

आर्टिकल पढ़ने से पहले एक अपील. जज हों या सरकार. हम जनता के सवाल पूछने से पीछे नहीं हटते. और ये सवाल हम पूछते रहें इसके लिए हमें आपके साथ की जरूरत है. क्विंट के मेंबर बनकर आप हमारा साथ दे सकते हैं. एक और बात अबसे हर हफ्ते शनिवार को जनाब ऐसे कैसे का एपिसोड आता है. तो देखना न भूलें.

पहले बात करते हैं जस्टिस शेखर यादव की. वीएचपी की लीगल सेल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के लाइब्रेरी हॉल में युनिफॉर्म सिविल कोड, वक्फ बोर्ड एक्ट और धर्मांतरण से जुड़े मुद्दे पर चर्चा के लिए एक कार्यक्रम किया था. जस्टिस शेखर यादव को इस कार्यक्रम में यूनिफॉर्म सिविल कोड टॉपिक पर बोलने के लिए बुलाया गया था. इस कार्यक्रम में एक और जज साहब शामिल हुए थे- जस्टिस दिनेश पाठक. इस दौरान शायद जस्टिस शेखर भूल गए कि वो अभी भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज हैं.

आप जज साहब के बयान सुनिए-

जब हमारे यहां बच्चा पैदा होता है, बचपनकाल से ही उसको इश्वर की ओर बढ़ाया जाता है, वेद मंत्र पढ़े जाते हैं, अहिंसा के बारे में चीजें बताई जाती हैं. लेकिन आपके यहां तो बचपन से ही बच्चे के सामने रखकर पशुओं का वध किया जाता है तो आप कैसे अपेक्षा करते हैं कि सहिष्णु होगा वो, उदार होगा?

इसके अलावा जज साहब यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने पर कहते हैं कि यह देश निश्चित रूप से एक समान कानून बनाएगा और यह बहुत जल्द होगा. मतलब जज साहब ने पहले ही फैसला कर दिया है.

जस्टिस शेखर और मोरल एजुकेशन

ऐसे जस्टिस शेखर अपने फैसलों में कई पन्ने मोरल एजुकेशन और धार्मिक विचारों पर लिखने के लिए भी जाने जाते हैं. साल 2021 में एक जमानत याचिका खारिज करते हुए उन्होंने कहा था- "वैज्ञानिक मानते हैं कि गाय ही एकमात्र पशु है जो ऑक्सीजन लेती और छोड़ती है.”

हालांकि वीएचपी के कार्यक्रम में जाने और जज साहब के बयानों की वजह से अब सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान ले लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस शेखर के बयान को लेकर हाई कोर्ट से विस्तृत ब्योरा मांगा है.

भारत के ज्यूडिशियल सिस्टम और जजों की विचारधारा पर सवाल क्यों उठ रहे हैं, इसके पीछे की कहानी जानिए.

पिछले कुछ वक्त से पूर्व जजों का राइटविंग संगठनों के कार्यक्रम में जाने की खबरें आ रही हैं.

8 सितंबर 2024 को दिल्ली में विश्व हिंदू परिषद के लीगल सेल के कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के दो फॉर्मर जज जस्टिस हेमंत गुप्ता और आदर्श कुमार गोयल समेत अलग-अलग कोर्ट के करीब 30 रिटायर जज और वकील शामिल हुए. इस कार्यक्रम में काशी और मथुरा के मंदिरों पर कानूनी विवाद, वक्फ बिल और धर्मांतरण समेत कई मुद्दों पर चर्चा हुई.
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कोई कह सकता है रिटायर हो चुके हैं उनकी अपनी लाइफ है, जो मर्जी करें. ठीक है. लेकिन उनके दिए फैसले तो पब्लिक स्पेस में है और देश के लोगों से जुड़ी है.

रिटायरमेंट के बाद जजों के फैसलों पर सवाल

वीएचपी के कार्यक्रम में शामिल होने वाले जस्टिस हेमंत गुप्ता के बतौर जज आखिरी फैसले कई सवाल को जन्म देते हैं. जस्टिस हेमंत गुप्ता ने अपने आखिरी फैसले में स्कूलों में हिजाब पहनने पर बैन लगाने वाले कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया था.

साल 2014 से 2024 के बीच कितने पूर्व जज राजनीति में गए?

साल 2014 के बाद से लेकर अबतक करीब 6 बड़े जजों ने रिटायरमेंट के कुछ महीने या कुछ दिनों बाद राजनीतिक दल ज्वाइन किया. इनमें से 5 बीजेपी में शामिल हुए और एक कांग्रेस में.

कोर्ट रूम की रील से फेमस हुए जस्टिस रोहित आर्य 27 अप्रैल, 2024 को रिटायर होते हैं और ठीक 2 महीने 17 दिन बाद बीजेपी में शामिल हो जाते हैं. जस्टिस रोहित मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जज थे. जस्टिस रोहित ने साल 2021 में स्टैंड-अप कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी और नलिन यादव को जमानत देने से इनकार कर दिया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए फारुकी को जमानत दी थी.

चट जज पट नेता बनने वाली रेस में एक और जज हैं जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय. 5 मार्च को रिटायर हुए और 7 मार्च यानी 2 दिन में बीजेपी में शामिल हो गए. यह देश में पहला मामला था जब हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी सीटिंग जज ने चुनाव लड़ने के लिए वक्त से पहले ही रिटायरमेंट ले लिया हो.

जज से बीजेपी नेता बने केरल के जस्टिस वी चितांबरेश ने तो रिटायरमेंट के बाद बताया कि वह अपने छात्र जीवन में जब RSS के छात्र संगठन ABVP में थे तब से बीजेपी के फेल्लो ट्रैवेलर हैं.

पोस्ट रिटायरमेंट जजों के सरकारी पद लेने को लेकर इससे पहले हमने जनाब ऐसे कैसे के एपिसोड में पूरी कहानी बताई थी. आप चाहें तो लिंक पर क्लिक कर वीडियो देख सकते हैं.

अगस्त 2024 में कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस वी श्रीशनंदा ने एक केस की सुनवाई के दौरान बेंगलुरु के मुस्लिम-बहुल क्षेत्र को 'पाकिस्तान' कह दिया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह देश की एकता के मौलिक सिद्धांत के खिलाफ है. फिर जस्टिस वी श्रीशनंदा ने माफी मांगी.

लोअर कोर्ट का हाल किसी से छिपा नहीं है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने भी कहा था कि ट्रायल कोर्ट के जज जमानत देने में हिचकिचाते है, जिन्हें लोअर कोर्ट से बेल मिलनी चाहिए, उन्हें सुप्रीम कोर्ट आना पड़ता है.

भले ही सेमिनार में डीवाई चंद्रचूड़ 'बेल नियम, जेल अपवाद' जैसी बाते कहते थे लेकिन कई एक्टिविस्ट बिना आरोप साबित हुए सालों जेल में पड़े रहे और उन्हें बेल नहीं मिली.

आदिवासी अधिकारों के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा देने वाले 84 साल फादर स्टेन स्वामी (Stan Swamy) बिना बेल मिले ही दुनिया से चले गए.  साल 2018 में हुए भीमा कोरेगांव (Bhima Koregaon) हिंसा से जुड़े मामले की वजह से NIA ने स्टेन स्वामी पर UAPA के तहत केस दर्ज किया था.

उमर खालिद, खालिद सैफी, गुलफिशां जैसे कई एक्टिविस्ट जेल में हैं, जिन्हें सरकार के खिलाफ बोलने के तौर पर जाना जाता है, ये सब बिना दोष साबित हुए सालों से जेल में हैं. कहा जाता है कि प्रोसेस इज द पनिशमेंट. और अगर ये प्रोसेस ही नहीं बदल रहा तो लोगों का यकीन कैसे न्यायतंत्र में बना रहेगा? जस्टिस सिर्फ होना नहीं दिखना भी चाहिए. नहीं तो देश पूछेगा जनाब ऐसे कैसे?

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