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दिल्ली बाढ़ ग्राउंड रिपोर्ट: "सरकार से क्या उम्मीद करें, क्या दुख दूर कर देगी?"

दिल्ली बाढ़: यमुना बाजार इलाके में लोगों के रहने के लिए बनाए गए राहत कैंप भी बाढ़ के पानी में डूब गए.

अवनीश कुमार
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<div class="paragraphs"><p>"राहत कैंप भी डूब गए, अब पांच दिन से रोड पर हैं" – दिल्ली बाढ़ ग्राउंड रिपोर्ट</p></div>
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"राहत कैंप भी डूब गए, अब पांच दिन से रोड पर हैं" – दिल्ली बाढ़ ग्राउंड रिपोर्ट

फोटो: द क्विंट 

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"सरकार से क्या उम्मीद करें? बताने से क्या सरकार मेरा दुख दूर कर देगी?" यमुना बाजार की गलियों में दुर्गा देवी, यह सवाल करते हुए भीगे कपड़ों और बचे-खुचे सामान को बचाने की कोशिश कर रही थी. उनके घर का दरवाजा पानी में डूब चुका है, दीवारें नम हो गई हैं और अब बस उम्मीद ही बाकी है.

दिल्ली में बाढ़ की समस्या कोई नई बात नहीं है. लगभग हर कुछ साल के अंतराल पर यमुना खतरे के निशान को पार करती है और हर साल दिल्लीवाले उसी खौफ और परेशानी के साथ जीने को मजबूर होते हैं. 2025 की बरसात में भी हालात बदले नहीं. घर, सामान और उम्मीदें सब एक बार फिर पानी में बह रहे हैं.

द क्विंट की टीम ने बाढ़ प्रभावित लोगों से बात करने के लिए यमुना बाजार का दौरा किया, जहां सरकार के राहत और बचाव के दावे पूरी तरह से खोखले साबित होते दिखे.

अपने घर के बाहर पानी में खड़ी दुर्गा देवी

फोटो: शिव कुमार मौर्या 

4 सितंबर को द क्विंट की टीम ने यमुना बाजार इलाके का दौरा किया तो देखा कि चारों ओर पानी ही पानी था. यही वह इलाका है जहां कुछ दिन पहले दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता बाढ़ का जायजा लेने आई थीं. उस वक्त न्यूज चैनलों से लेकर सीएम की मीडिया टीम के कैमरे अलग-अलग एंगल से तस्वीरें ले रहे थे. उनके पानी में उतरने की तस्वीरें खूब सुर्खियों में रहीं. लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि लोगों की मुश्किलें जस की तस हैं.

65 वर्षीय शंभू लाल, जो यमुना बाजार इलाके में रहते हैं, बताते हैं – "78 की बाढ़ भी देखी, 88 की भी, 2010 और 2023 की भी. लेकिन इस बार भी हालात वही हैं. न सफाई है, न इंतजाम. चारों तरफ बदबू और मच्छर."

निराशा और बेबसी की कहानी

जब यमुना का जलस्तर बढ़ा तो लोगों को रेस्क्यू करने के लिए टेंट लगाए गए थे. लेकिन जैसे-जैसे पानी बढ़ा, वे टेंट भी डूब गए. अब लोग सड़कों और खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं. यमुना बाजार के एक निवासी प्रभु दयाल ने बताया कि उनका पूरा घर डूब चुका है.

"पूरा घर डूब चुका है. घर में पानी चल रहा है. मतलब दीवार सारी डूबी हुई हैं. घर-गेट सब."
प्रभु दयाल, बाढ़ पीड़ित

वे आगे कहते हैं, "सारा सामान भी नहीं निकाल पाया हूं. बस अपने कपड़े ला पाया हूं और आधार कार्ड, अपना आईडी वगैरह ही निकाल पाया हूं."

लोगों में प्रशासन के प्रति गहरी नाराजगी है. एक अन्य निवासी रीता झा ने बताया, "पिछले साल मेरा बहुत नुकसान हुआ था. करीब 5-6 लाख रुपये का नुकसान हुआ था. सरकार 10 हजार रुपये जो कह ही थी, वो भी नहीं दिए किसी को."

"सरकार को सिर्फ वोट से मतलब है. पब्लिक की उन्हें कोई परवाह नहीं. पब्लिक डूब कर मर जाए, सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता."
रीता झा, बाढ़ पीड़ित

ठेले के सहारे जरूरी सामान लेकर सुरक्षित स्थान पर जाती हुईं रीता देवी.

फोटो: शिव कुमार मौर्या 

"50-60 हजार का नुकसान" – आम लोगों की आपबीती

बाढ़ की वजह से लोगों के रोजगार पर भी असर पड़ा है. फल का कारोबार करने वाले अरुण प्रसाद बताते हैं – "सेब का पूरा माल बह गया. 50-60 हजार का नुकसान हो गया. लेकिन प्रशासन की तरफ से अब तक कोई मदद नहीं मिली है. मेरा पूरा घर डूबा हुआ है. क्या करें, कहां जाएं?"

डिलीवरी एजेंट मंसूर आलम भी अपनी कठिनाई साझा करते हुए कहते हैं, "पानी है, सिलेंडर ले जाने में दिक्कत हो रही है. आने-जाने को कोई सुविधा नहीं है."

संतोष कुमार तिवारी, जो दिहाड़ी मजदूरी कर अपने परिवार का पेट पालते हैं, कहते हैं –

"सरकार ने टेंट लगवाए थे, सब डूब गए. अब पांच दिन से रोड पर हैं. न खाना मिल रहा है, न सोने की जगह. जेब में पैसे नहीं हैं, काम-धंधा बंद है. घर छोड़ें तो चोरी का डर है."

बाढ़ के पानी में डूबे हुए राहत कैंप के टेंट

फोटो: शिव कुमार मौर्या 

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निगमबोध घाट भी डूबा

यमुना के किनारे स्थित दिल्ली के सबसे पुराने श्मशान घाटों में से एक, निगम बोध घाट, पूरी तरह से पानी में डूब गया है. हर दिन यहां 50-60 दाह संस्कार होते थे, लेकिन अब यह सुविधा बंद है. आचार्य योगेश शर्मा, जो घाट पर क्रिया-कर्म करवाते हैं, ने बताया, "दिक्कत यह है कि पीछे की दीवार टूटने की वजह से पानी का जल स्तर बढ़ गया है. बहुत ज्यादा पानी अंदर आ गया जिस वजह से सारी चिताएं भी डूब चुकी हैं."

उन्होंने आगे कहा कि श्मशान घाट के गेट बंद कर दिए गए हैं और अब यहां अंतिम संस्कार नहीं हो रहे हैं.

बाढ़ से जूझते इंसान और जानवर

बाढ़ ने केवल इंसानों को, बल्कि जानवरों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है. गौशालाओं में पानी भर गया है, जिससे गायों को बचाना मुश्किल हो गया है. डॉ. हिमांशु, जो एक गाय बचाव टीम के सदस्य हैं, ने बताया, "मैं कल शाम से गायों को रेस्क्यू करने में लगा हूं. मेरी टीम ने अब तक 250 से ज्यादा गायों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया है.

बाढ़ में फंसी गायों को बचाने में जुटे लोग

फोटो: शिव कुमार मौर्या 

प्रशासन के दावे बनाम हकीकत

दिल्ली प्रशासन और NDRF का दावा है कि इस बार तैयारी बेहतर रही. अब तक 1100 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित निकाला गया है. जलस्तर स्थिर है और कुछ दिनों में हालात सामान्य हो जाएंगे.

द क्विंट ने मौके पर मौजूद एनडीआरएफ के अधिकारी दौलत राम चौधरी से बात की. उन्होंने बताया, "दिल्ली प्रशासन ने अपनी इस बार तैयारियां बहुत अच्छी कर रखी थीं तो 2023 के मुकाबले इस बार हम बाढ़ से पूर्णतः निपटने में सक्षम रहे हैं और किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आई है."

लकड़ी के सहारे ज़रूरी कागज़ात और सामान से भरी पेटी उतारती हुई सुनीता और उनके परिवार के सदस्य

फोटो: शिव कुमार मौर्या 

यमुना के जलस्तर के बारे में उन्होंने कहा, "यमुना का जल स्तर अभी स्थिर है, अभी बढ़ नहीं रहा है. धीरे-धीरे कम होने की उम्मीद है. एक-दो दिन में स्थिति सामान्य हो जाएगी."

लेकिन सवाल वही है – जब लोग पांच दिन से भूखे हैं, राहत कैंप डूब चुके हैं, मजदूरी ठप है, तो यह तैयारी कितनी कारगर रही?

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