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34 वर्षीय जुड़वां मोहम्मद सैफ और हीना शाहिद का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में कचहरी रोड स्थित पुराने पुश्तैनी घर में हुआ था. यही वह घर है, जहां उनके दिवंगत पिता और हॉकी के दिग्गज मोहम्मद शाहिद रहते थे. रविवार, 28 सितंबर को इस घर का एक हिस्सा सड़क विकास परियोजना के लिए तोड़ दिया गया.
शाहिद का घर और उनकी कहानी तब सुर्खियों में आई जब वाराणसी से एक वीडियो वायरल हुआ. वीडियो में एक मुस्लिम व्यक्ति पुलिस अधिकारी से घर न तोड़े जाने की गुहार लगाते हुए दिखाई दे रहा था.
असल में, शाहिद के बेटे सैफ ने द क्विंट से कहा, "ज्यातर मीडिया संस्थान और लोग गलत रिपोर्टिंग कर रहे हैं. वीडियो में जो व्यक्ति पुलिस से निवेदन कर रहा है, वह हमारा दूर का रिश्तेदार है. पापा काशी की शान थे और उन्हें बहुत सम्मान मिला. तोड़फोड़ थोड़ी चौंकाने वाली जरूर थी, लेकिन यह हमारे लिए नई बात नहीं थी."
शाहिद हॉकी के इतिहास में भारत को ओलंपिक में स्वर्ण पदक दिलाने वाले आखिरी खिलाड़ी थे. 'मास्टर ड्रिबलर' के नाम से मशहूर शाहिद ने 1980 के मास्को ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता था. वह 1986 में भारतीय हॉकी टीम के कप्तान भी रह चुके थे.
1980 में रूस के मॉस्को में हुए ओलंपिक खेलों के दौरान मोहम्मद शाहिद
(Photo: Accessed by The Quint)
उन्हें अर्जुन पुरस्कार (1980-81), पद्मश्री (1986), समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव द्वारा यश भारती पुरस्कार (1992) और अखिलेश यादव द्वारा मरणोपरांत लक्ष्मण पुरस्कार (2016) से सम्मानित किया गया था.
और आज, उनकी विरासत का एक अहम हिस्सा मिटा दिया गया है.
एक सदी पहले, 1920 में, शाहिद का पैतृक घर उनके दादा सलामतुल्लाह ने बनवाया था, जो सिविल कोर्ट परिसर में एक होटल चलाते थे.
1980 के ओलंपिक में विजय के बाद शाहिद इस तीन मंजिला घर को आगे और ठीक से बना पाए. इस घर में कई पीढ़ियां पली-बढ़ीं, पहले शाहिद और फिर उनके बच्चे.
शाहिद द्वारा रेनोवेटेड कराए जाने से पहले घर की पुरानी तस्वीर
(Photo: Accessed by The Quint)
शाहिद ने भारतीय रेल में क्लर्क के तौर पर भी काम किया था. उनकी रिटायरमेंट 2021 में होनी थी, लेकिन लंबे समय तक पीलिया और लिवर की खराबी के कारण 2016 में उनका निधन हो गया. सैफ, जो एक राइफल शूटर हैं, रेलवे में ही काम करते हैं और इंटर-डिपार्टमेंट मैचों में हिस्सा लेते हैं.
2012 में परिवार पुराने घर से महज 600 मीटर दूर एक नए घर में शिफ्ट हो गया था. यह शाहिद ने मुख्य रूप से अपने बेटे के लिए बनवाया था ताकि वह अपनी शादी के बाद वहां शिफ्ट हो सके. शाहिद की पत्नी परवीन शाहिद (58) कहती हैं, "वह कभी भी पुराने घर को छोड़ना नहीं चाहते थे, उनकी रूह उसी घर में बसी थी."
अब, सालों बाद जब पीडब्ल्यूडी के अधिकारी रविवार को शाहिद के घर समेत इलाके के अन्य घरों को गिराने पहुंचे, तो उनके परिवार को इस तोड़फोड़ को देखने के लिए बुलाया गया.
पीडब्ल्यूडी अधिकारियों द्वारा घर का एक हिस्सा तोड़ दिया गया है.
(Photo: Accessed by The Quint)
हालांकि, मामला सिर्फ इतना ही नहीं है जितना सामने दिख रहा है. यह सच है कि चार लेन सड़क बनाने के विकास परियोजना के लिए शाहिद का घर लिया जा रहा है, लेकिन इसके पीछे पारिवारिक राजनीति और आपसी विवाद का पहलू भी जुड़ा हुआ है.
परवीन ने बताया कि उन्हें तोड़फोड़ की जानकारी पहले से थी क्योंकि उन्हें पिछले एक साल में नोटिस भेजे गए थे.
उन्होंने जरूरी दस्तावेज भी इकट्ठा किए और पीडब्ल्यूडी को सौंप दिए ताकि वे परिवार के सभी सदस्यों के लिए उचित मुआवजे का अनुरोध किया जा सके. परिवार को इस साल जुलाई-अगस्त के बीच 32 लाख रुपये का मुआवजा मिला. शाहिद सात भाइयों और तीन बहनों में सबसे छोटे थे, इसलिए यह रकम उनके परिवारों में बांटी गई, सिवाय दो भाइयों के.
ये दो भाई अब तक शाहिद के घर में रह रहे थे और परवीन के आरोप के अनुसार, उनके कुछ छिपे हुए इरादे हैं, वे घर का स्वामित्व अपने नाम करने की योजना बना रहे हैं. इन्हें तोड़फोड़ पर इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा भी स्थगन दिया गया है.
शाहिद अपनी मां हबीबन बीबी के साथ. उनका जन्म और पालन-पोषण उसी घर में हुआ था.
(Photo: Accessed by The Quint)
लोक निर्माण विभाग के कार्यकारी अभियंता केके सिंह इस विशेष सड़क विकास परियोजना का कार्यभार संभाल रहे हैं.
द क्विंट से बातचीत में उन्होंने बताया कि यह परियोजना नवंबर 2021 में 9.6 किलोमीटर लंबी सड़क के लिए स्वीकृत हुई थी. इसमें से 9.3 किलोमीटर का निर्माण पूरा हो चुका है और लगभग 300–400 मीटर बाकी हैं.
शाहिद का घर भी इसी श्रेणी में आता है, इसलिए उसे तोड़ना पड़ा.
सिंह ने कहा, "कुल 69 घरों में से, हमने अब तक 47 घर गिराए हैं. शाहिद के घर के लिए, हमने जानबूझकर केवल आधा घर ही गिराया क्योंकि उसके भाइयों को कुछ हिस्से पर स्टे मिल गया है, इसलिए हमने परिवार को सूचित कर दिया है कि वे बाकी घर खुद ही गिरा दें."
यह परिवार के जख्मों पर नमक छिड़कने के समान है. सैफ ने पूछा, "हम अपने पिता का घर कैसे तोड़ दें, जिसमें हमने अपना पूरा बचपन बिताया?"
मोहम्मद शाहिद को 1986 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
(Photo: Accessed by The Quint)
शाहिद की खेल विरासत 1980 के दशक में फैली हुई है. 1980 के ओलंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद, वह 1982 के एशियाई खेलों में रजत और 1986 के एशियाई खेलों में कांस्य जीतने वाली टीम के सदस्य भी रहे. 1986 के वर्ल्ड कप में, भले ही उनकी टीम हार गई, लेकिन उन्हें 'बेस्ट प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' का पुरस्कार दिया गया.
इस घर के जाने के साथ ही यह एहसास भी हुआ कि शाहिद के जीवन और इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी इसी के साथ चला गया है.
हालांकि, परवीन वर्षों से इस हॉकी खिलाड़ी की विरासत को मान्यता दिलाने के लिए अपनी चिंताएं व्यक्त करती रही हैं. 2018 में उन्होंने यह कहकर शाहिद के पुरस्कार लौटाने की धमकी दी थी कि राज्य द्वारा उनके नाम पर एक टूर्नामेंट आयोजित करने सहित किए गए वादे पूरे नहीं किए गए.
सैफ ने बताया कि शाहिद के नाम पर 2019 में एक पैन-इंडिया हॉकी टूर्नामेंट शुरू किया गया, जो हर साल जनवरी/फरवरी में आयोजित किया जाता है.
1980 में रूस के मॉस्को में हुए ओलंपिक खेलों के दौरान मोहम्मद शाहिद
(Photo: Accessed by The Quint)
जब हमने सिंह से पूछा कि क्या शाहिद के लिए कोई स्मारक बनाने की योजना है, तो उन्होंने द क्विंट को बताया, "हां, अगर उनके परिवार की इच्छा हो तो हम शाहिद के लिए स्मारक बनाने का इरादा रखते हैं. एक अन्य कवि जयशंकर प्रसाद का घर भी तोड़ा गया था. इसलिए हम उनके लिए कुछ बनाएंगे ताकि जब कोई वहां जाए, उन्हें उनके बारे में पता चले."
घर और शाहिद के बारे में बात करते-करते परवीन भावुक हो गईं. उन्होंने कहा कि जहां शाहिद के भाई घर के किसी हिस्से को पाने के लिए लड़ रहे हैं, वहीं उनकी लड़ाई अलग है. एक ऐसी लड़ाई, जिससे आने वाली पीढ़ियां एक महान हॉकी खिलाड़ी को याद रखें.