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Maharashtra Assembly Election 2024 Exit Poll: महाराष्ट्र में किसकी सरकार बनने जा रही है? वोटिंग होने और तमाम एग्जिट पोल आने के बाद भी इसको लेकर स्पष्ट भविष्यवाणी नहीं की जा सकती. मामला टक्कर का लग रहा है. 9 में से 5 एग्जिट पोल में बीजेपी, एकनाथ शिंदे गुट वाली शिवसेना और अजीत पवार के गुट वाली एनसीपी के गठबंधन महायुति एक बार फिर महाराष्ट्र की सत्ता पर आसीन होती दिख रही है. वहीं 4 में दोनों के बीच का मुकाबला कड़ी टक्कर का दिख रहा है. कई पोलस्टर्स ने तो आंकड़ें ही जारी नहीं किए हैं और वो संभलकर कदम रखते दिख रहे हैं.
इससे पहले कि हम यह समझने की कोशिश करें कि एग्जिट पोल की भविष्यवाणियों में क्या संदेश नजर आ रहा है, एक बात आप जरूर अपने जेहन में रखें- एग्जिट पोल्स जो तस्वीर पेश कर रहे हैं वो सिर्फ अनुमान हैं. हरियाणा चुनाव में सभी एग्जिट पोल कैसे गच्चा खा गए थे, इसकी याददाश्त एकदम ताजा हैं.
रिकैप: इस चुनाव में बीजेपी सत्तारूढ़ 'महायुति' के बैनर तले अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के साथ गठबंधन में है. उसका मुकाबला विपक्षी महा विकास अघाड़ी (MVA) गठबंधन के साथ है, जिसमें शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी (शरद पवार) और कांग्रेस पार्टी शामिल है.
अबतक जारी 9 एग्जिट पोल के औसत को देखें तो महायुति गठबंधन की सरकार बन रही है. लेकिन दैनिक भास्कर और एलेक्टोरल एड्ज ने एमवीए को बढ़त मिलने का अनुमान लगाया है. इसके अलावा लोकशाही-मराठी रूद्र और पोल डायरी में दोनों के बीच मुकाबला टक्कर का नजर आ रहा.
उदाहरण के लिए सीवोटर, जो इंडिया टुडे के लिए सर्वे कर रहा है, ने 20 नवंबर को महाराष्ट्र के लिए अपनी भविष्यवाणी जारी नहीं की है और उम्मीद है कि वे इसे एक दिन बाद जारी करेंगे. यही नहीं झारखंड में, सीवोटर ने पहली बार एक अलग कॉलम दिया है जिसमें उन सीटों की संख्या लिखी गई हैं जहां मुकाबला इतना करीबी है कि अनुमान लगाना मुश्किल है.
इसके अलावा एक्सिस-मायइंडिया ने भी महाराष्ट्र के लिए अपनी भविष्यवाणियां जारी नहीं की हैं.
इस बार के महाराष्ट्र चुनाव के नतीजों पर प्रभाव डालने वाले अहम फैक्टर्स में से एक अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी वोटों के एकीकरण को माना जा रहा था. महायुति गठबंधन के हिस्से के रूप में बीजेपी ने गैर-मराठा वोटों को एकजुट करने के लिए सक्रिय रूप से काम किया, खासकर ओबीसी समुदाय के बीच.
बीजेपी ने 90 के दशक से ही महाराष्ट्र में 'माधव' फॉर्मुले पर काम किया है, यानी माली, धनगर और वंजारी समुदायों को अपने साथ लाना. इस रणनीति का उद्देश्य अपने ओबीसी वोटबैंक को मजबूत करना और मराठा समुदाय के प्रभुत्व का मुकाबला करना था, जो उस समय कांग्रेस का समर्थन कर रहा था.
द क्विंट के पॉलिटिकल एडिटर आदित्य मेनन के अनुसार एग्जिट पोल में नजर आ रहा करीबी मुकाबले से यह भी पता चलता है कि महाराष्ट्र की 288 सीटों पर लड़ा गया यह चुनाव अत्यधिक स्थानीय चुनाव रहा है. यानी कोई राज्यव्यापी नैरेटिव के बजाय हर सीट का अपना समीकरण ही सबसे बड़ा फैक्टर बन गया.
कुछ मायनों में ये महायुति के लिए अच्छा संकेत है. पिछले 10 सालों में से साढ़े सात सालों तक सत्ता में रहने के बाद, महायुति के खिलाफ स्पष्ट सत्ता विरोधी भावना यानी एंटी-इनकंबेंसी होनी चाहिए थी. यदि चुनाव स्थानीय हो गया है, तो इसका मतलब यह होगा कि महायुति किसी भी राज्यव्यापी नकारात्मक भावना का मुकाबला करने में कामयाब रही है.
सारी नजर 23 नवंबर को आने वाले फाइनल नतीजों पर होगी. महायुति को स्पष्ट बहुमत मिलता है या एमवीए करीबी मुकाबले में बाजी मार ले जाती है, या तीसरी स्थिति यह हो कि कोई भी गठबंधन बहुमत हासिल करने में नाकाम रह जाए? बस थोड़ा इंतजार और.
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