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कर्नाटक में BJP के लिए गढ़ बचाना भी मुश्किल क्यों? 3 फैक्टर से उम्मीदों को डेंट

Karnataka Elections: तटीय और मुंबई-कर्नाटक भगवा पार्टी का गढ़ माना जाता है, फिर यहां पार्टी पकड़ खोती क्यों दिख रही?

समर्थ ग्रोवर
राजनीति
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Karnataka Assembly elections and BJP</p></div>
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Karnataka Assembly elections and BJP

(Photo- Altered By Quint Hindi)

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आगामी कर्नाटक विधानसभा चुनावों (Karnataka Assembly elections) में कांग्रेस पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिल सकता है. इसकी भविष्यवाणी ABP-CVoter ने बुधवार, 29 मार्च को जारी अपने ओपिनियन पोल या सर्वे में की है.

इस ओपिनियन पोल के अनुसार, कांग्रेस को 115 से 127 सीटें, बीजेपी को 68 से 80 सीटें और जनता दल (सेक्युलर) को 23 से 35 सीटें मिलने की उम्मीद है.

इतना ही नहीं, तटीय कर्नाटक और मुंबई-कर्नाटक ( जिसे कित्तूर कर्नाटक के रूप में भी जाना जाता है) दोनों में भगवा पार्टी अपनी पकड़ खोती दिख रही है. यह क्षेत्र पारंपरिक रूप से बीजेपी का गढ़ रहा है.

इस संभावित गिरावट की वजह क्या है? क्या हिजाब मुद्दे का प्रभाव पड़ा? यहां जवाब खोजने की कोशिश करते हैं.

द क्विंट से बात करते हुए, राजनीतिक विश्लेषक और जैन यूनिवर्सिटी के प्रो-वाइस चांसलर संदीप शास्त्री ने कहा, "बीजेपी विधायक (विरुपक्षप्पा) और उनके बेटे के खिलाफ लोकायुक्त मामले के बाद से पिछले महीने से पार्टी बैकफुट पर है. इसने यह धारणा बनाई कि पार्टी भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए गंभीर नहीं है (क्योंकि विधायक के खिलाफ तत्काल कोई कार्रवाई नहीं की गई)."

तटीय कर्नाटक

तटीय कर्नाटक में तीन क्षेत्र शामिल हैं - उत्तर कन्नड़, उडुपी और दक्षिण कन्नड़. 2018 के चुनावों में, बीजेपी ने 21 में से 18 सीटों पर जीत हासिल कर इस पूरे उपक्षेत्र को अपना गढ़ बना लिया था.

इस उपक्षेत्र को सांप्रदायिक टिंडरबॉक्स के रूप में जाना जाता है और यहीं पर हिजाब का मुद्दा सामने आया था.

सीवोटर ओपिनियन पोल के अनुसार इस बार बीजेपी को यहां लगभग सात सीटों का नुकसान होने की उम्मीद है, जबकि कांग्रेस को 10 सीटें जीतने की उम्मीद है. यहां कांग्रेस ने 2018 में केवल तीन सीटें जीती थीं.

द क्विंट से बात करते हुए, संदीप शास्त्री ने इसके पीछे तीन फैक्टर्स के कॉम्बिनेशन की ओर इशारा किया:

पहला: सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास किया गया है लेकिन तटीय कर्नाटक में यह पहले ही चरम पर था. इसलिए, इसके विस्तार की बहुत कम गुंजाइश थी और उस सिद्धांत पर वोट बटोरना बहुत सीमित लग रहा था.

दूसरा: बीजेपी के कोर कैडरों में भी मोहभंग एक फैक्टर है- खासकर वे जो बीजेपी का समर्थन करते हैं - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), बजरंग दल, अन्य.

अपनी बात का समर्थन करने के लिए, उन्होंने बताया कि प्रवीण नेतारू की हत्या से नाराज प्रदर्शनकारियों (बीजेपी युवा मोर्चा के) ने किस तरह प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष नलिन कुमार कटील की कार का घेराव किया था.

दक्षिण कन्नड़ जिले में नेतरु की कथित रूप से हत्या कर दी गई थी. हत्या के बाद, बीजेपी युवा मोर्चा के सदस्यों ने पार्टी कार्यकर्ताओं की रक्षा करने में बीजेपी सरकार की कथित अक्षमता के विरोध में सड़कों पर उतर आए थे.

शास्त्री का कहना है कि "ऐसी भावना है कि जो लोग पार्टी के पैरोकार हैं, जरूरी नहीं कि वे लाभ पाने वाले हों."

तीसरा: संदीप शास्त्री ने कहा, "यह संभव है कि एंटी-इनकंबेंसी भी एक फैक्टर बने. अधिकांश विधायक कई कार्यकाल से विधायक हैं."

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मुंबई-कर्नाटक

लिंगायत मतदाताओं की अहम संख्या और 50 विधानसभा सीटों के साथ कित्तूर कर्नाटक भी बीजेपी के लिए एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है. इस क्षेत्र में बेलगावी, धारवाड़, विजयपुरा, बागलकोट, गडग और हावेरी शामिल हैं.

2018 में, बीजेपी ने इस क्षेत्र से 30 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 17 सीटें जीती थीं, और जनता दल (सेक्युलर) या जद (एस) ने दो सीटें जीती थीं.

हालांकि एबीपी-सीवोटर पोल के अनुसार यहां बीजेपी के वोट शेयर में केवल 1.5 प्रतिशत की कमी होने की उम्मीद है लेकिन दूसरी तरफ पार्टी को सात सीटों का नुकसान होने की उम्मीद है.

इस बीच, कांग्रेस के लिए वोट शेयर में 4.4 प्रतिशत की वृद्धि की उम्मीद है. इसके साथ कांग्रेस के 27 सीटें जीतने का अनुमान है, जो पिछली बार की तुलना में 10 अधिक है.

द क्विंट से बात करते हुए संदीप शास्त्री ने कहा:

"यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां लिंगायत वोट बहुत महत्वपूर्ण है. तथ्य यह है कि पार्टी में सबसे बड़े लिंगायत नेता (बीएस येदियुरप्पा) मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं, और सीएम (बसवराज बोम्मई) जो लिंगायत नेता हैं, उन्हें भी पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में भी घोषित नहीं किया गया है."

उन्होंने आगे कहा, "दो दशक से अधिक समय से समुदाय जानता था कि अगर उन्होंने पार्टी को वोट दिया तो उनके पास लिंगायत मुख्यमंत्री होगा, लेकिन इस बार पार्टी का रुख स्पष्ट नहीं है."

कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद भी चुनौती

बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के लिए एक और चुनौती कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद है. दोनों राज्य सरकारों (जिसमें खुद बीजेपी सत्ता में है) ने 800 से अधिक सीमावर्ती गांवों पर दावा करने के लिए बार-बार रस्साकशी की है.

साथ ही भगवा पार्टी को 2018 में शिवसेना का समर्थन प्राप्त था. लेकिन अब शिवसेना के दो गुटों में बंटने से संभवतः कर्नाटक के मराठी भाषी आबादी में बीजेपी के समर्थन में कमी आ सकती है.

गौरतलब है कि इस ओपिनियन पोल के लिए लोगों का वोट 3 मार्च तक लिया गया था. इसके 21 दिन बाद, राज्य विधानसभा के चुनावों की घोषणा से ठीक पहले, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने पिछड़े वर्ग, अनुसूचित जाति और मुसलमानों के लिए आरक्षण सूची में कई बदलावों की घोषणा की.

  • 24 मार्च को घोषित नई आरक्षण व्यवस्था के अनुसार, प्रमुख जाति लिंगायत और वोक्कालिगा, दोनों को पिछड़े वर्ग सूची के भीतर अतिरिक्त 2% आरक्षण मिलेगा. सरकार ने लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के लिए कोटा बढ़ाने के लिए मुसलमानों के लिए 2बी श्रेणी के आरक्षण को समाप्त कर दिया है.

  • इसके अलावा, अनुसूचित जातियों की सूची में 6% आरक्षण मदिगों के लिए अलग रखा गया है, और कर्नाटक में उप-जाति आरक्षण को अनिवार्य बनाते हुए बाकी बचे कोटे को अन्य दलित जातियों में विभाजित कर दिया गया है. नए वर्गीकरण के अनुसार, होलेय या दक्षिणपंथी दलितों के पास अब 5.5% और बंजारों सहित सवर्ण दलितों को एससी सूची में 4.5% आरक्षण मिलेगा.

राज्य मंत्रिमंडल के इस फैसले का बंजारों और मुसलमानों ने विरोध किया है. शिवमोग्गा में, 27 मार्च को, प्रदर्शनकारियों ने शिकारीपुरा में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के घर को निशाना बनाया.

इन घटनाक्रमों पर बोलते हुए, संदीप शास्त्री ने कहा, "लिंगायतों के विरोध करने की संभावना नहीं है लेकिन बाकी पिछड़ा वर्ग से बड़ी प्रतिक्रिया हो सकती है, जो अब मानते हैं कि उसके आरक्षण का बड़ा हिस्सा लिंगायत और वोक्कालिगा को मिल रहा है."

उन्होंने कहा, "गैर-प्रमुख पिछड़ा वर्ग एक महत्वपूर्ण चुनावी समूह है - एक ऐसा समूह जिसेबीजेपी कांग्रेस से दूर करने की कोशिश कर रही थी (चूंकि कांग्रेस नेता सिद्धारमैया गैर-प्रमुख पिछड़ा वर्ग आंदोलन में एक प्रमुख चेहरा रहे हैं).

हालांकि आरक्षण पर हो रहे बवाल को नजरअंदाज कर भी दें तो, ऐसा लगता है कि बीजेपी के लिए अपने अपने एकमात्र दक्षिणी गढ़ को बनाए रखना मुश्किल हो सकता है.

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Published: 31 Mar 2023,10:51 PM IST

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