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बिहार विधानसभा चुनाव में अभी कुछ महीनों का वक्त है, लेकिन जोर-आजमाइश का दौर शुरू हो गया. एक हफ्ते पहले लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (LJP-R) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान (Chirag Paswan) ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया.
8 जून को आरा में आयोजित नवसंकल्प महासभा में उन्होंने कहा, "आज जब ये सवाल पूछा जाता है कि क्या चिराग पासवान बिहार से विधानसभा का चुनाव लड़ेगा? तो हां, मैं बिहार से चुनाव लड़ूंगा." इसके साथ ही उन्होंने कहा,
चिराग पासवान के ऐलान के बाद LJP-R के अकेले बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की चर्चा होने लगी. ये बात कई मीडिया संस्थानों की हेडलाइन बनी. जिसकी गूंज राजनीतिक गलियारों में भी सुनने को मिली. वहीं कुछ सवाल भी उठे. सबसे पहला- चिराग पासवान विधानसभा का चुनाव क्यों लड़ना चाहते हैं? दूसरा- प्रदेश की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने के क्या मायने हैं? क्या उनकी पार्टी NDA से अलग होकर मैदान में उतरेगी? क्या चिराग लोकसभा चुनाव की सफलता को विधानसभा में दोहरा पाएंगे? इस आर्टिकल में हम इन्हीं सवालों के जवाब तलाशेंगे.
प्रदेश अध्यक्ष राजू तिवारी ने LJP-R के अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने की बात को खारिज किया है. क्विंट हिंदी से बातचीत में उन्होंने कहा, "243 सीटों पर गठबंधन होगा. गठबंधन में क्या हम सिर्फ अपनी सीट पर चुनाव लड़ेंगे और बाकी पर नहीं. उनके (चिराग पासवान) कहने का मतलब था कि 243 सीटों पर गठबंधन के जितने भी प्रत्याशी चुनाव लड़ेंगे, उन सभी सीटों पर चिराग पासवान चुनाव लड़ेंगे. ये होती है गठबंधन की ताकत. उनका मतलब अकेले चुनाव लड़ने का नहीं था."
LJP-R नेता संजय सिंह कहते हैं, "यहां NDA गठबंधन की बात हो रही है. उनके (चिराग पासवान) कहने का मतलब यही था कि NDA गठबंधन पूरी मजबूती के साथ 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी."
8 जून को आरा में आयोजित नवसंकल्प महासभा में चिराग पासवान.
(फोटो: X)
क्विंट हिंदी से बातचीत में मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "जब आप उनका (चिराग पासवान) पूरा भाषण सुनेंगे तो वे कह रहे हैं कि चिराग पासवान कोई एक सीट से चुनाव नहीं लड़ेगा. वे चालाकी से कहना चाह रहे हैं कि वे NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के साथ मिलकर बिहार की तमाम 243 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. चिराग ये बताना चाह रहे हैं कि वे सिर्फ एक जगह मददगार नहीं होंगे, बल्कि NDA की तमाम सीटों पर उनकी पार्टी मददगार साबित होगी."
इसके साथ ही वे कहते हैं, "चिराग ये भी बताना चाहते हैं कि उनकी पार्टी का आधार सीमित नहीं है." दरअसल, LJP-R का आधार सिर्फ पासवान वोटर्स तक सीमित होने की बात कही जाती रही है.
2020 में चिराग पासवान की पार्टी NDA से अलग होकर चुनाव मैदान में उतरी थी. LJP-R ने 243 में 135 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन मात्र 1 सीट ही जीत पाई. करीबी मुकाबले में मटिहानी सीट से राजकुमार सिंह ने जेडीयू के नरेंद्र सिंह को 333 वोटों से हराया था. लेकिन कुछ महीनों बाद वे जेडीयू में शामिल हो गए थे.
पार्टी कितनी सीट की डिमांड कर रही है? इस सवाल पर राजू तिवारी कहते हैं, "गठबंधन की कुछ मर्यादा है. ये हमारी पार्टी का निजी मामला है, इसको हम सार्वजनिक तौर पर मीडिया में नहीं बता सकते हैं. जिस दिन हमारी बात पूरी हो जाएगी, उस दिन हम इसकी घोषणा करेंगे."
तीन बार के सांसद चिराग पासवान ने नवसंकल्प महासभा में विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर सबको चौंका दिया. हालांकि, 2 जून को मीडिया से बात करते हुए चिराग ने चुनाव लड़ने की ओर इशारा किया था. उन्होंने कहा था, "बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' मेरा स्पष्ट विजन है. दिल्ली में रहकर शायद यह सपना पूरा नहीं हो पाएगा. इसलिए मैंने पार्टी से इच्छा जताई है कि अगर विधानसभा चुनाव में मेरी भागीदारी से पार्टी और गठबंधन को मजबूती मिलती है, स्ट्राइक रेट बेहतर होता है, तो मैं जरूर चुनाव लड़ूंगा."
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का मानना है कि चिराग मुख्यमंत्री की रेस में आने के विधानसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. वे कहते हैं, "इसके जरिए मुख्यमंत्री पद के लिए वे अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं, ताकि मौका आने पर उनके सिर पर ताज सज सके."
वहीं जानकार यह भी कहते हैं कि चिराग बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट की बात तो करते हैं, लेकिन वो बिहार को कैसे नंबर वन बनाएंगे, इसका रोडमैप पेश नहीं करते हैं.
प्रवीण बागी आगे कहते हैं, "उनके पिता रामविलास पासवान ने कहा था कि चिराग पासवान एक दिन बिहार के मुख्यमंत्री जरूर बनेंगे. लेकिन कब और कैसे बनेंगे ये मुझको नहीं पता. मगर बनेंगे जरूर, मैं ये जानता हूं. उसी दिशा में वे आगे बढ़ रहे हैं."
लालू यादव और नीतीश कुमार के साथ रामविलास पासवान भी बिहार की समाजवादी राजनीति का चेहरा रहे हैं. उनकी पहचान बिहार के बड़े दलित नेता के रूप में रही है. वे नौ बार सांसद रहे. वे देश के इकलौते राजनेता रहे, जिन्होंने छह प्रधानमंत्रियों की सरकारों में मंत्रिपद संभाला. यूपीए से लेकर एनडीए और तीसरे मोर्चे की सरकार में मंत्री रहे.
नवसंकल्प महासभा में रामविलास पासवान को नमन करते हुए चिराग पासवान.
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प्रवीण बागी आगे कहते हैं, "चिराग देख चुके हैं कि केंद्र की राजनीति में उनके पिता ने जीवन खपा दिया लेकिन प्रधानमंत्री नहीं बन सके. वहां उनकी पार्टी की इतनी स्ट्रेंथ भी नहीं है. ऐसे में बिहार में थोड़ी मेहनत और जोड़-तोड़ की राजनीति की जाए, तो वे मुख्यमंत्री बन सकते हैं. ये उनको आसान दिखता है. इसलिए वे केंद्र की राजनीति छोड़कर बिहार आ रहे हैं."
मणिकांत ठाकुर कहते हैं, "युवा नेता के रूप में तेजस्वी को चुनौती मिले इसलिए भी बीजेपी चिराग को ढील दे रही है. लेकिन चिराग का आधार रामविलास पासवान जैसा नहीं है."
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ चिराग पासवान.
(फोटो: X)
बिहार की जनता अगले मुख्यमंत्री के रूप में किसे देखना चाहती है, CVoter के हालिया सर्वे में तेजस्वी यादव पहले पायदान पर हैं. दूसरे नंबर पर नीतीश कुमार हैं और चिराग पासवान चौथे नंबर पर हैं. ओपिनियन पोल के मुताबिक, मई 2025 में सबसे पसंदीदा सीएम चेहरा:
तेजस्वी यादव- 36.9%
नीतीश कुमार- 18.4%
प्रशांत किशोर- 16.4%
चिराग पासवान- 10.6%
सम्राट चौधरी- 6.6%
चिराग ने चुनाव लड़ने का ऐलान तो किया है, लेकिन वो किस सीट से चुनाव लड़ेंगे ये अभी साफ नहीं है. उन्होंने कहा कि इसका फैसला जनता करेगी. समर्थकों से मुखातिब होते हुए वे बोले, "साथियों आप ही मेरा परिवार हैं... अब ये फैसला भी आपको ही लेना है कि चिराग पासवान चुनाव लड़े तो कहां से लड़े. आपका फैसला मेरी सिर आंखों पर."
हालांकि, कुछ दिनों पहले LJP-R के बिहार प्रभारी और सांसद अरुण भारती ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में लिखा था, "चिराग जी को अब बिहार में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए. कार्यकर्ताओं में ये भावना है कि वो आरक्षित सीट से नहीं बल्कि सामान्य सीट से लड़ें."
इससे पहले प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में भी चिराग पासवान के विधानसभा चुनाव लड़ने की मांग का प्रस्ताव पारित किया था.
चिराग किस सीट से चुनाव लड़ेंगे इस सवाल पर संजय सिंह कहते हैं, "यह समय और परिस्थिति पर निर्भर करेगा कि वह कहां से चुनाव लड़ेंगे. वे हमारे नेता हैं. वे हमारे लिए फैसले लेते हैं, उनके लिए कौन फैसला ले सकता है."
पटना में आयोजित LJP-R प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक.
(फोटो: X)
2024 लोकसभा चुनाव में LJP-R ने 100 फीसदी स्ट्राइक रेट के साथ 5 सीटें अपने नाम की. चिराग पर इस सफलता को दोहराने की चुनौती है. हालांकि, आंकड़े उनके पक्ष में नहीं दिखते हैं.
2019 लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 6 सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी पर जीत दर्ज की. लेकिन इसके एक साल बाद हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा झटका लगा. 2020 में अकेले चुनाव मैदान में उतरी LJP के वोट शेयर में मामूली बढ़ोतरी हुई लेकिन पार्टी को सिर्फ 1 सीट ही मिली. हालांकि, पार्टी 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी. वहीं कम के कम 35 सीटों पर उसने नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड (JDU) को नुकसान पहुंचाया था.
2015 विधानसभा चुनाव में पार्टी ने NDA के तहत 42 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत सिर्फ 2 सीटों ही मिली थी. पार्टी का वोट शेयर 4.8 फीसदी था. वहीं एक साल पहले हुए लोकसभा चुनाव में 7 में से 6 सीटों पर LJP ने जीत दर्ज की थी.
2010 में रामविलास पासवान की पार्टी ने लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. 75 सीटों पर पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन जीत महज तीन सीटों पर ही मिली. 168 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली RJD भी मात्र 22 सीटों पर ही सिमट गई थी. हालांकि, इससे एक साल पहले हुए लोकसभा में 12 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली LJP एक भी सीट नहीं जीत पाई थी.
तब से लेकर अबतक पार्टी विधानसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई है. ऐसे में चिराग की चिंता बढ़ सकती हैं. हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं कि "NDA के साथ रहने पर लोक जनशक्ति पार्टी के जीतने की संभावना बढ़ जाती है. बशर्ते चिराग NDA के साथ रहें."
मणिकांत ठाकुर का मानना है कि बिना गठबंधन के चिराग के लिए जीतना मुश्किल है. पिछले चुनाव में हम देख भी चुके हैं.
हालांकि, प्रवीण बागी कहते हैं, "चिराग को सिर्फ दलितों का नेता नहीं माना जा सकता है, क्योंकि उनकी हर वर्ग में फॉलोइंग है. नौजवानों के बीच उनकी अच्छी पकड़ है. हर सभा में अच्छी भीड़ होती है. दो साल पहले हुए उपचुनावों में बीजेपी और जेडीयू के नेताओं से ज्यादा भीड़ इनकी सभाओं में आई थी. उनकी पकड़ है और नौजवान उनके पीछे हैं. इसी को वे और विस्तार देना चाहते हैं. रामविलास पासवान के साथ भी ये था. हर जाति के लोग उनके समर्थक थे और उनके कहने पर वोट करते थे."
CSDS-लोकनीति के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक, LJP को 32 फीसदी पासवान/दुसाध वोट मिले थे. जबकि महागठबंधन और एनडीए के खाते में क्रमशः 22 और 17 फीसदी वोट आए थे. पार्टी को 9 फीसदी रविदास वोट भी मिले थे. अगर सवर्ण वोटर्स की बात करें तो 11 फीसदी राजपूत और 7 फीसदी ब्राह्मण वोट LJP को मिले थे. 3 फीसदी भूमिहारों ने भी LJP का समर्थन किया था.
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