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कांग्रेस अध्यक्ष की दौड़ से गहलोत बाहर? राजस्थान संकट के हो सकते हैं 4 नतीजे

Rajasthan Crisis : राजस्थान कांग्रेस में जो किचकिच हुई है उसके बाद सचिन पायलट का क्या होगा

आदित्य मेनन
राजनीति
Published:
<div class="paragraphs"><p>Rajasthan Political Crisis:अब कौन होगा कांग्रेस अध्यक्ष पद का उम्मीदवार?</p></div>
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Rajasthan Political Crisis:अब कौन होगा कांग्रेस अध्यक्ष पद का उम्मीदवार?

(फोटो:PTI)

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राजस्थान कांग्रेस में अचानक से सियासी संकट तेज हो गया है. इस संकट की वजह से वर्तमान में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चल रही रेस में पूरी तरह से बदलाव होने की संभावना नजर आ रही है. इस बदलाव की सबसे बड़ी वजह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं. अभी तक पार्टी अध्यक्ष के पद की दौड़ में सबसे आगे माने जाने वाले गहलोत, अब राज्य में रही उथल-पुथल के केंद्र आ गए हैं.

यहां हम उन चार चीजों के बारे में बात करेंगे जो इस सियासी घटनाक्रम के बाद हमें देखने को मिल सकती हैं :-

1. अब कांग्रेस अध्यक्ष की दौड़ में नहीं रहेंगे अशोक गहलोत

इस बात की प्रबल संभावना है कि कांग्रेस के अगले अध्यक्ष की दौड़ से अब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बाहर हो जाएं. इसकी दो वजहें हैं.

पहली बात यह कि अब तक गहलोत को एक ऐसे उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा था, जिस पर सोनिया और राहुल गांधी को भरोसा (यदि रणनीतिक समर्थन नहीं है तो भी) है.

भले ही उन्होंने सार्वजनिक तौर पर कहा है कि निष्पक्ष रहेंगे, लेकिन कहा जाता है कि सोनिया गांधी ने ही गहलोत को अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने के लिए राजी किया था.

राजस्थान में 90 से अधिक विधायकों ने सचिन पायलट को अगले मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करने से इनकार कर दिया है. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि राजस्थान के विधायकों ने जो यह 'बागी' रुख अपनाया है उसके पीछे गहलोत का हाथ हो सकता है. पायलट के विरोध से ज्यादा इसे कांग्रेस हाई कमान के प्रतिनिधियों, मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन के अपमान के तौर पर देखा जा रहा है, जिनसे विधायकों ने मिलने से इनकार कर दिया था. अजय माकन पहले ही विधायकों की गैरमौजूदगी को 'अनुशासनहीनता' करार दे चुके हैं.

इस स्थिति में गहलोत पर भरोसा इसलिए कम होगा क्योंकि इस संकट को राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को नुकसान पहुंचाने के तौर पर देखा जा रहा है.

भरोसे की इस कमी को देखते हुए अब यह संभावना नहीं है कि अगले पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनका समर्थन किया जाएगा.

इस पूरे मामले में भले ही गहलोत निर्दोष हों, लेकिन राजस्थान में अस्थिरता के कारण उनके लिए पार्टी अध्यक्ष के तौर पर दिल्ली तक की दौड़ मुश्किल हो सकती है.

भले ही पार्टी हाईकमान 2023 तक गहलोत को मुख्यमंत्री बने रहने दे सकता है, लेकिन भरोसे की कमी को दूर करना मुश्किल होगा.

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2. राहुल गांधी को पार्टी अध्यक्ष बनने के लिए बढ़ता शोर

राजस्थान में जो सियासी संकट खड़ा हुआ है उसे लेकर एक बार फिर यह देखा जा सकता है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी से पार्टी अध्यक्ष के लिए नामांकन दाखिल करने का आग्रह करें.

राजस्थान में गहलोत के कथित सत्ता के खेल के बाद जो तर्क दिया जा रहा है वह यह है कि "गांधी परिवार के अलावा किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है". राहुल गांधी की वापसी की मांग को लेकर इसी बात का हवाला दिया जा रहा है.

हालांकि, राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लेने से इनकार कर दिया था, ऐसे में यह देखा जाना बाकी है कि वह आगे अपना विचार बदलेंगे या नहीं.

3. एक और गैर-कांग्रेसी चेहरे की तलाश 

यदि राहुल गांधी अध्यक्ष बनने के लिए मना कर देते हैं, तो ऐसे में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर कार्यभार संभालने के लिए गांधी परिवार के बाहर से किसी अन्य नेता की तलाश कांग्रेस कर सकती है. कई नामों की चर्चा है जिनमें से कुछ ये हैं:- दिग्विजय सिंह, मुकुल वासनिक, कमलनाथ, कुमारी शैलजा, मल्लिकार्जुन खड़गे, सुशील कुमार शिंदे.

शशि थरूर भी हैं, जिन्होंने पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ने में दिलचस्पी दिखाई है. हालांकि यह असंभव लगता है कि थरूर "आधिकारिक तौर पर" समर्थित उम्मीदवार बनेंगे.

गहलोत के अलावा किसी गैर-गांधी नेता के पार्टी अध्यक्ष बनने में यह समस्या है कि ऐसे नेता को हमेशा कुछ वर्गों द्वारा रबर स्टैंप के तौर पर देखा जाएगा.

4. सचिन पायलट का क्या?

यह लगभग निश्चित है कि राजस्थान में कांग्रेस सरकार के शीर्ष पर गहलोत या उनके द्वारा समर्थित कोई बना रहेगा, इस स्थिति में यह स्पष्ट है कि सचिन पायलट को राज्य इकाई में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.

चूंकि 2018 में सचिन पायलट से सीएम की कुर्सी का वादा किया गया था ऐसे में उन्हें किसी भी तरह से अच्छा स्थान देना पड़ सकता है. लेकिन यहां पर कांग्रेस के लिए समस्या यह है कि दूर-दूर तक ऐसा कोई पद नहीं जो सीएम के करीब आता हो.

ज्यादा से ज्यादा यह हो सकता है कि जो कोई भी पार्टी अध्यक्ष बने वो अपने तहत पायलट को पार्टी का कार्यवाहक अध्यक्ष (वर्किंग प्रेसीडेंट) बना दे. इसके अलावा एक विकल्प यह है कि पायलट को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बना दिया जाए, हालांकि इसकी संभावना नहीं है.

अगर कांग्रेस लीडरशिप गहलोत के कद को थोड़ा छोटा करनी चाहती है तो वह गहलोत के वफादार गोविंद डोटासरा को हटाकर पीसीसी प्रमुख के तौर पर पायलट को वापस भेज सकती है.

क्या पायलट इनमें से किसी भी व्यवस्था के लिए सहमत होंगे या फिर पार्टी छोड़ देंगे? यह बहुत ही अनिश्चित है, जिसका अंदाजा किसी को भी नहीं है.

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