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अपनी ओर से पूरा जोर लगाने के बाद भी वरुण गांधी यूपी इलेक्शन में बीजेपी का चेहरा नहीं बन पाएंगे. थोड़ी-बहुत जो उम्मीद थी तो वह भी पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने दफन कर दी. शाह ने वरुण को साफ लहजे में चेता दिया है कि वह अपने संसदीय क्षेत्र के अलावा सूबे के किसी और इलाके में कोई मीटिंग न करें.
शाह के इस फरमान से वरुण के गुस्से का ठिकाना नहीं रहा. उन्होंने इस बेइज्जती का बदला लेने के लिए इलाहाबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद हुई शाह की डिनर पार्टी का बायकाट कर दिया. वरुण की इस हरकत के बाद शाह का पारा और गर्म हो गया और उन्होंने सीधे नरेंद्र मोदी को फोन पर इसकी शिकायत कर दी. शाह का कहना था कि वरुण भी अपनी मां तरह बेहद अनुशासनहीन हैं.
पार्टी इनसाइडर्स का कहना है कि मेनका और प्रकाश जावड़ेकर के बीच जानवरों (नीलगायों) के कत्ल पर खुले में जो लड़ाई हुई, उसमें वरुण को किनारे किए जाने से पैदा गुस्से का हाथ था. मेनका जानवरों के कत्ल से नहीं वरुण के कैरियर को ठिकाने लगाए जाने से नाराज थीं.
दुर्भाग्य से भाजपा में वरुण और मेनका का कद घटता जा रहा है. मोदी, शाह और जेटली की त्रिमूर्ति अंदर ही अंदर दोनों मां-बेटे से खार खाती है. वरुण बीजेपी के पुराने नेताओं के दुलारे थे. लेकिन नई और मजबूत भाजपा में गांधी सरनेम उनके लिए बोझ बनता जा रहा है.
शाह को गांधी नाम से ही चिढ़ है और इसे वह छिपाते भी नहीं हैं. जेटली से वरुण की पहले भी भिड़ंत हो चुकी है और जहां तक मोदी की बात है तो वरुण पूरी तरह उनकी ओर झुके नहीं दिखते.
वरुण की राह में एक बार फिर उनकी फैमिली बैकग्राउंड आड़े आ रही है. दरअसल उन्होंने पार्टी के सामने एक बात बिल्कुल साफ रखी है कि वह पब्लिक में सोनिया और अपने चचेरे भाई बहन राहुल और प्रियंका पर हमले नहीं करेंगे. वाजपेयी जी इस बात को समझते थे और इसका सम्मान करते थे. लेकिन मोदी और शाह के लिए इसका कोई मतलब नहीं है. वो क्यों चाहेंगे कि वरुण रिश्तों की इस पाकीजगी को निभाएं. वो तो यही चाहेंगे कि वरुण सोनिया और राहुल पर उसी तरह हमले करें जिस तरह सुब्रमण्यम स्वामी करते
पार्टी केे अंदर जो सर्वे हुए हैं उनमें ज्यादातर में यूपी के सीएम के चेहरे के तौर पर वरुण गांधी ही सबसे ऊपर रहे हैं. लेकिन शाह और मोदी ने वरुण की ख्वाहिश पर लगाम लगा दी है. ऐसे में अगर अपने खुले सांप्रदायिक विचारों के लिए जाने जाने वाले योगी आदित्यनाथ सीएम पद की दावेदारी ठोकते हैं तो मोदी और शाह दोनों को उनको रोकना मुश्किल होगा.
कैराना मामले से तो यह लगभग साफ हो चुका है कि इस बार का यूपी इलेक्शन ध्रुवीकरण (पोलराइजेशन) से अछूता नहीं रहेगा. और ऐसे में यूपी में पार्टी के चुनावी अभियान की अगुवाई के लिए महंत आदित्यनाथ से बेहतर चेहरा और कौन हो सकता है.
इस हालात में वरुण के पास खून के घूंट पी कर रह जाने के अलावा और क्या चारा है. यह अनायास नहीं कि वरुण के करीबी माने जाने वाले एक कांग्रेसी कार्यकर्ता ने हाल ही में उन्हें कांग्रेस में वापस लाने की मांग कर दी ताकि गांधी परिवार में एक बार फिर एकता का रास्ता साफ हो जाए.
लेकिन शाह के करीबी सूत्रों का दावा है कि वरुण की कांग्रेस वापसी के हल्ले का कोई खास मतलब नहीं है. एक सूत्र ने कांग्रेस में वरुण की वापसी के दांव को खारिज करते हुए कहा कि आखिर वह जाएंगे कहां. कांग्रेस में उन्हें कोई नहीं चाहता.
इन हालातों ने वरुण की मुश्किलें और विडंबना बढ़ा दी है. वरुण बेचैन हैं. आज वह एक ऐसे ऐसा बेचैन युवा हैं, जिसे अपने क्षेत्र सुल्तानपुर को छोड़ कर कर बेहद अहम राजनीतिक सूबे में प्रचार अभियान से रोक दिया गया है. बीजेपी में वरुण का कद पिछले दो साल में घटा है.
बीजेपी से जुड़े होने की वजह से वरुण की घर वापसी मुश्किल लगती है. उनके साथ एक और दिक्कत यह है कि इस बार पूरे लखनऊ में लगे पोस्टरों और बिल बोर्डों में मोदी और शाह के साथ उनकी तस्वीरें छपी हैं और उन्हें सीएम के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट किया जा रहा है. मोदी और शाह इन पोस्टरों से बेहद खफा हैं. वरुण की इस कोशिश ने उन्हेें और नाराज कर दिया है. इस पर खफा बीजेपी के सीनियर लीडरों का कहना है कि यूपी छोडिय़े उन्हें तो वनवास मिलेगा.
लेकिन कहा जा रहा है कि वरुण ने मीडिया की इन रिपोर्टों को खारिज किया है. उन्होंने इस बात इनकार किया है कि शाह की डिनर पार्टी में शामिल न होने के लिए ही वह इलाहाबाद से निकल आए थे. सच्चाई मीडिया की फैंटेसी कही जाने वाली बात से अलग हो सकती है. लेकिन शाह की ओर से वरुण की दावेदारी खारिज करने की बात को खारिज करना मुश्किल है.
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