Members Only
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019महिला सुरक्षा और स्कूल भर्ती घोटाला, बंगाल में अंतिम चरण के मतदान में सरगर्म कई मुद्दे

महिला सुरक्षा और स्कूल भर्ती घोटाला, बंगाल में अंतिम चरण के मतदान में सरगर्म कई मुद्दे

संदेशखाली और शिक्षक भर्ती घोटाला, दोनों ही अपनी अनगिनत कहानियों के साथ बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस के बीच विवाद के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा है.

सुब्रता नाग चौधरी
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>महिला विवाद और शिक्षकों की नौकरी बंगाल के अंतिम चरण के मतदान में मुख्य मुद्दा</p></div>
i

महिला विवाद और शिक्षकों की नौकरी बंगाल के अंतिम चरण के मतदान में मुख्य मुद्दा

(फोटो: अरूप मिश्रा/ क्विंट हिंदी)

advertisement

संदेशखाली (Sandeshkhali) की पीड़ा अब भी जारी है. जब पश्चिम बंगाल चुनाव के अंतिम चरण में प्रवेश कर रहा है, इस द्वीप क्षेत्र पर राजनीति धुंधली और अधिक तीव्र हो गई है. महिलाओं पर अत्याचार और जमीन पर कब्जे की शिकायतों के बीच लगभग एक महीने पहले विरोध की लहर ने गांवों को हिलाकर रख दिया था.

कुछ समय की शांति के बाद, इस सप्ताह क्षेत्र में एक बार फिर से गहमागहमी देखी गई - सार्वजनिक तौर पर एक वीडियो क्लिप सामने आने से क्षेत्र में महिलाओं के साथ दुष्कर्म की शिकायतों की सत्यता पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाने की कोशिश की गई है.

इसके अलावा, बंगाल में शिक्षक भर्ती से जुड़ा घोटाला भी सुर्खियों में है. सुप्रीम कोर्ट ने बंगाल में चुनावी लड़ाई के बीच 25,000 से अधिक शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की सेवाओं को रद्द करने के कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी है.

संदेशखाली में जारी उपद्रव और शिक्षक भर्ती घोटाला जाहिरा तौर पर, बंगाल में चुनाव के अंतिम चरण के नजदीक आते ही महिलाओं और नौकरी खोने वालों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार किया गया है. महिलाएं अपनी जबरदस्त भागीदारी और परिणामस्वरूप संतुलन को किसी भी दिशा में मोड़ने की क्षमता के साथ सबसे बड़े चुनावी फैक्टर में से एक हैं.

महिला सुरक्षा और शिक्षा में उल्लंघन गंभीर मुद्दे हैं

संदेशखाली और शिक्षक भर्ती घोटाला, दोनों ही अपनी अनगिनत कहानियों के साथ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और तृणमूल कांग्रेस के बीच विवाद के लिए बड़ा चुनावी मुद्दा बन गया है. दोनों मुद्दे अंतिम चरण की वोटिंग में दूरगामी प्रभाव डालेंगे.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के लिए बड़ी राहत लेकर आया, जिन्होंने राहत की सांस ली और न्यायपालिका को उस चीज को सफलतापूर्वक "खत्म" करने के लिए बधाई दी, जिसे बीजेपी "धमाकेदार" बता रही थी, जो तृणमूल सरकार को अस्थिर कर देगी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सार्वजनिक रैलियों में जब ममता बनर्जी ने कहा, ''आपने बंगाल में नरभक्षी बाघों के बारे में सुना है. अब आप जो देख रहे हैं, वह बंगाल के नौकरी खाने वाले राक्षस हैं.” वह एक प्रतिष्ठित वामपंथी वकील का जिक्र कर रही थीं, जिन्होंने वास्तव में स्कूल भर्ती घोटाला मामले की शुरुआत की थी और इसे अदालत में ले गए थे - यह एक ऐसा मामला है जो 2016 से लटका हुआ था.

बाद में इस मामले में सुवेंदु अधिकारी के नेतृत्व में शामिल हुई बीजेपी भी खुद को सही मानती है. उन्होंने चेतावनी दी कि टीएमसी के शीर्ष नेताओं ने वास्तव में अवैध नियुक्तियों के कारण इतनी बड़ी संख्या में एसएससी शिक्षकों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है. उन्होंने यह भी कहा कि जब मामला तार्किक निष्कर्ष पर पहुंचेगा तो तृणमूल नेताओं का सलाखों के पीछे जाना तय है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई 16 जुलाई के बाद फिर शुरू होगी.

कैसे 'नारी शक्ति' बंगाल में बीजेपी का मुख्य चुनावी हथियार बन गई है?

राजनीतिक लाभ के लिए, चुनाव के बचे चरण में संदेशखाली विवाद को बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है. बंगाल की राजनीतिक चेतना में रची-बसी महिला शक्ति काफी हद तक संदेशखाली को लेकर मचे उथल-पुथल से निपटने के लिए प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों की बेताब कोशिशों की कहानी बयां करती है.

महिलाओं की दुर्दशा, विशेष रूप से संदेशखाली पर केंद्रित, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी के बंगाल और उसके बाहर के चुनावी कैम्पेन का प्रमुख विषय रही है

पीएम मोदी की सावधानीपूर्वक तैयार किए गए नैरेटिव में, बशीरहाट में बीजेपी की लोकसभा उम्मीदवार रेखा पात्रा न केवल लड़ाई का चेहरा बन गईं बल्कि प्रधानमंत्री द्वारा उन्हें "शक्ति स्वरूपा" के रूप में भी ब्रांड किया गया है जो देवी दुर्गा की शक्ति और साहस से मिलता जुलता है. बशीरहाट लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत ही संदेशखाली विधानसभा क्षेत्र आता है.

इस तरह का नैरेटिव तृणमूल कांग्रेस की छवि को बदनाम करने की बीजेपी की कोशिश को पूरे देश में ताकत देती हैं.

एक टेलीफोन पर हुई बातचीत में मोदी ने रेखा पात्रा को संदेशखली में महिलाओं के सम्मान की लड़ाई को हर दरवाजे तक ले जाने के लिए प्रेरित किया. PM बंगाल में अपनी चुनावी रैली में संदेशखाली को लेकर खूब गरजे और कहा, ''तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में महिलाओं के साथ सबसे बड़ा विश्वासघात किया है.'' उनके अलावा अन्य बीजेपी नेताओं ने भी अपने चुनाव प्रचार में यही बात दोहराई.

वफादारी में एक बदलाव

महिला मतदाताओं की वफादारी में कोई भी बदलाव निश्चित रूप से पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम को प्रभावित करेगा.

भारतीय चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 2024 के चुनावों में 3.85 करोड़ पुरुष मतदाताओं के मुकाबले कुल 3.73 करोड़ महिला मतदाता हैं. गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में, बंगाल में महिलाओं ने 42 लोकसभा सीटों में से 17 पर पुरुषों से अधिक मतदान किया था.

इस चुनाव में भी रुझान समान हैं और मालदा जैसे कई निर्वाचन क्षेत्रों में शुरुआती दौर में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक मतदान किया है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

महिलाएं ममता की सबसे बड़ी और सबसे वफादार समर्थनक बनी हुई हैं. ऐसे में यथास्थिति को बाधित करने का प्रयास अंतिम चरण के चुनावी मुकाबले को कड़वा और गंदा बना देता है.

खतरे की आशंकाओं को महसूस करने के बाद, बनर्जी ने संदेशखाली की घटना को "जमीनी हकीकत को गलत तरीके से तोड़-मरोड़ के पेश करने की बात" बताते हुए कार्रवाई शुरू कर दी. उन्होंने कहा, "'स्टिंग वीडियो' ने बंगाली महिलाओं की गरिमा को धूमिल करने के बीजेपी के भयावह इरादे को उजागर किया है."

बीजेपी ने दावा किया कि संदेशखाली में सामने आए "स्टिंग वीडियो क्लिप" को छेड़छाड़ कर और एआई से बनाया गया है. यह पता लगाने के लिए कोई तत्काल उत्तर नहीं है कि कौन सच बोल रहा है. या क्या महिलाओं पर अत्याचार के बारे में प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों की कहानी मिली-जुली सच्चाई, झूठ और धोखे का एक नशीला कॉकटेल हैं.

फिलहाल पुलिस स्टिंग वीडियो की जांच कर रही है. बीजेपी पदाधिकारियों की कई गिरफ्तारियों ने आग में घी डालने का काम किया है.

क्या बीजेपी ममता के सबसे बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में कर सकती है?

लेकिन संदेशखाली के घटित होने से पहले ही, दीदी सतर्क हो गई थीं और अपने महिला वोट बैंक को जोड़ रखने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास कर रही हैं.

चुनावों से कुछ महीने पहले, 500 रुपए की डायरेक्ट कैश ट्रांसफर स्कीम को दोगुना कर दिया गया और बजटीय आवंटन के साथ 1000 रुपए कर दिया गया - सामान्य श्रेणी की महिलाओं के लिए 1000 रुपए और एससी/एसटी श्रेणियों के लिए 1200 रुपए.

इस योजना में कम से कम 2 करोड़ महिला लाभार्थी शामिल हैं. शुरुआत में 25-60 वर्ष आयु वर्ग की महिलाओं के लिए शुरू की गई योजना को राज्य के खजाने पर 15,000 करोड़ रुपए की वार्षिक लागत पर इस बार आजीवन बढ़ा दिया गया था. फिर भी, एक अन्य स्टडी से पता चला है कि 2024-25 के दौरान, राज्य के लगभग 44% वित्तीय संसाधनों को बंगाल में महिला कल्याण योजनाओं में लगाया गया है.

नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अमर्त्य सेन द्वारा संचालित एक गैर-सरकारी संस्था - प्रतीची ट्रस्ट द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण ने इस विचार की पुष्टि की कि सामाजिक सुरक्षा जाल ने ग्रामीण बंगाल में महिलाओं के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन लाए हैं. मासिक भत्ता एक सशक्त उपकरण है और बंगाल की महिलाएं विभिन्न तरीकों से पैसा खर्च करती थीं जैसे बच्चों के लिए ट्यूशन, पारिवारिक स्वास्थ्य देखभाल के मुद्दे, कपड़े खरीदना आदि..

एक हालिया अखबार की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि लक्ष्मीर भंडार योजना का धन कुछ लाभार्थियों द्वारा ब्यूटी पार्लरों पर खर्च किया जा रहा है.

विवादों में राजभवन 

संदेशखाली से परे, कोलकाता में राजभवन एक बार फिर राजनीतिक विवादों के बीच है. राज्यपाल पर आरोप लगा कि उन्होंने राजभवन में एक महिला कर्मचारी का यौन उत्पीड़न किया.

घटनाओं के एक बदसूरत मोड़ में, महिलाओं की दुर्दशा का वही विषय राजभवन के पवित्र परिसर तक पहुंच गया है और एक चुनावी मुद्दा बन गया है.

दुर्भाग्य से, राजभवन की कोठरी से और भी पुरानी कहानियां निकल रही हैं. कोलकाता पुलिस के शीर्ष अधिकारियों ने क्विंट हिंदी को बताया कि उन्होंने राज्य के राज्यपाल के खिलाफ एक और कथित दुष्कर्म शिकायत की जांच पूरी कर ली है और रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंप दी है. कथित घटना छह महीने पहले दिल्ली के एक आलीशान होटल में हुई थी.

संवैधानिक छूट का आनंद ले रहे राज्यपाल ने आरोपों को "राजनीतिक रूप से प्रेरित" बताया है. लेकिन पुलिस रिपोर्टों और दर्ज की गई शिकायतों से लैस, ममता बनर्जी ने कथित अनौचित्य के मुद्दों पर राज्यपाल पर जबरदस्त हमले शुरू कर दिए हैं.

ममता बनर्जी ने हालिया सार्वजनिक रैलियों में कहा, "मैं अब राजभवन जाने में असहज महसूस करती हूं और राजभवन की चार असुरक्षित दीवारों के बजाय खुले फुटपाथ पर राज्यपाल से मिलना पसंद करूंगी."

लोकसभा चुनाव 2024 से जुड़ी क्विंट हिंदी की तमाम ओपिनियन पीस को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

(लेखक कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

Become a Member to unlock
  • Access to all paywalled content on site
  • Ad-free experience across The Quint
  • Early previews of our Special Projects
Continue

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT