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सरकार ने 1 जुलाई से सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन (Plastic Ban) तो लगाया है पर चूंकि समस्या इतनी बड़ी है कि इस एक बैन से काम नहीं चलने वाला. हकीकत ये है कि ये धरती 'प्लास्टिक के टाइम बम' पर बैठी है, लेकिन इंसान इस टाइम बम को डिफ्यूज करने के बजाय इसकी स्पीड और बढ़ा रहा है. एक नजीर ये देखिए कि 2021 में हमने उसके पांच साल पहले की तुलना में 100 बिलियन ज्यादा प्लास्टिक की बोतलें बनाई हैं.
अर्थ डे डॉट ऑर्ग के अनुसार साल 2021 में 583 बिलियन प्लास्टिक बोतलों का उत्पादन हुआ था, यह पांच साल पहले हुए उत्पादनों से सौ बिलियन अधिक था. साल 1950 में विश्व भर में दो मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन होता था, जो साल 2015 में 381 मिलियन टन हो गया था.
औद्योगिक क्षेत्र के प्राथमिक प्लास्टिक उत्पादन, 2015
(ग्राफिक्स: धनंजय कुमार)
साल 2015 में प्लास्टिक का सबसे ज्यादा उपयोग पैकेजिंग में रोजाना लाखों टन प्लास्टिक नदियों और समुद्र तक पहुंच रहा है. जमीन से लेकर समुद्र तक प्लास्टिक का ढेर इंसान के साथ-साथ समुद्री जीवों के लिए भी खतरा है. समुद्री प्लास्टिक मलबे के समुद्री जीवों पर दुष्प्रभाव को इस टेबल में दिखाया गया है.
समुद्र ही नहीं जमीन पर रहने वाले जानवरों के लिए भी ये प्लास्टिक का कचरा जानलेवा है. वॉयस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट दिखाती है कि श्रीलंका में प्लास्टिक का कचरा खाने की वजह से हाथी मर रहे हैं. कुछ ऐसी ही खबर साल 2018 में आई थी, जब केरल में भी इस कचरे को खाने की वजह से हाथी की मौत हुई.
प्लास्टिक से बनी वो चीजें जो एक बार ही उपयोग में लाई जाती है और फेंक दी जाती है, उन्हें सिंगल यूज प्लास्टिक कहा जाता है. प्लास्टिक कैरी बैग, चाय की प्लास्टिक की कप, चाट गोलगप्पे वाली प्लास्टिक प्लेट, बाजार से खरीदी पानी की बोतल, स्ट्रॉ सभी सिंगल यूज प्लास्टिक के उदाहरण हैं.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा फरवरी 2022 में जारी की गई अधिसूचना के मुताबिक 1 जुलाई 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक से बने सामानों का उत्पादन, आयात और इस्तेमाल करना प्रतिबंधित हो जाएगा.
इन सामानों में प्लास्टिक के स्ट्रॉ, इयरबड्स, गुब्बारों में लगने वाली प्लास्टिक की स्टिक, सजावट में इस्तेमाल होने वाला थर्माकोल, आइसक्रीम स्टिक, कैंडी स्टिक, प्लास्टिक के कप, प्लास्टिक के झंडे, प्लास्टिक की चाकू-छुरी, ट्रे, प्लास्टिक की मिठाई के डिब्बे, शादी के कार्ड पर इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक शीट, मिठाई के डिब्बे पर इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक शीट, सिगरेट के पैकेट पर लगी प्लास्टिक की पन्नी आदि जैसे सामान शामिल हैं.
जोर बाघ रोड, नई दिल्ली स्थित केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ऑफिस में आदेश तो निकाले जा सकते हैं पर वहां से दो-तीन सौ किलोमीटर दूर उन आदेशों का पालन कैसे किया जाए , यह दुकानदारों के लिए भी बड़ा मुश्किल काम होता है. नई दिल्ली से तीन सौ किलोमीटर दूर स्थित उत्तराखंड के मझोला में रहने वाले दुकानदार शफीक बताते हैं-
प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को समझते हुए देश के नागरिक ऐसी वस्तुओं को खरीदें ही न जो प्लास्टिक से बनी हों. खाने और पीने के लिए प्लास्टिक के बर्तनों पर निर्भर न रहते हुए कहीं भी आते जाते, अपने साथ कुछ बर्तन हमेशा रखने की आदत डालें. दुकान से सामान लेने के लिए जाते घर से ही कपड़ों का बैग साथ ले जाएं.
प्लास्टिक से होने वाले नुकसान को बताने के लिए सरकार को युद्धस्तर पर जानकारी प्रसारित करनी होगी और जनसंचार के माध्यमों के जरिए हर नागरिक तक ये बात पहुंचनी जरूरी है. सोशल मीडिया पर पोस्टर, हैशटैग का सहारा लिया जा सकता है.
देश के जाने-माने खिलाड़ियों, अभिनेताओं, गायकों, नेताओं द्वारा अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अपने फॉलोवर्स तक प्लास्टिक से होने वाले नुकसान की जानकारी पहुंचाई जा सकती है. नशे से होने वाला नुकसान तो व्यक्तिगत है पर प्लास्टिक से पर्यावरण को होने वाला नुकसान सार्वजनिक, इसलिए फिल्मों की शुरुआत में भी इसके बारे में जानकारी दी जानी चाहिए.
प्लास्टिक का सामान बनाने वालों को भी प्लास्टिक के विकल्प तलाशने होंगे, शुरुआत में तो ये विकल्प महंगे होंगे, लेकिन खपत बढ़ने पर खुद ही सस्ते होते जाएंगे, जैसे मट्टी और लकड़ी के बर्तन ज्यादा बनेंगे तो सस्ते भी बिकेंगे.
आहार आरोग्य मेला राजकोट में प्लास्टिक की प्लेट और बैग को पूरी तरह प्रतिबंधित कर समाज को प्लास्टिक के खात्मे की तरफ बढ़ने के लिए जागरूक किया जा चुका है. इस मेले की आयोजन समिति से जुड़े गांधीवादी अनिरुद्ध जडेजा बताते हैं कि हम इस मेले में लोगों को खाने के लिए घर से ही टिफिन लाने के लिए कहते हैं. मेले में ऐसी पन्नी लानी की अनुमति होती है जो थोड़ी मोटी हो और बार-बार इस्तेमाल की जा सके, साथ ही दो-तीन ऐसी स्टॉल लगाई जाती हैं जहां लोगों को बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से बने बैगों को खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
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