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सनातन विवाद के जरिए दलितों की बात भी जरूरी, अंबेडकर के विचारों से टकराना होगा

अंबेडकर और गांधी दोनों ने जाति प्रथा को हानिकारक मानते हुए, इसे खत्म करने के लिए अंतर्जातीय विवाह को उपाय बता रहे थे.

डॉ. उदित राज
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>सनातन धर्म हिंदू धर्म का पर्याय नहीं बल्कि एक शाखा है</p></div>
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सनातन धर्म हिंदू धर्म का पर्याय नहीं बल्कि एक शाखा है

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने सनातन धर्म (Sanatan Dharma) को लेकर विपक्ष के 'INDIA' गठबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. वे भूल गये हैं कि सत्ता के शीर्ष से अपनाया जा रहा ये रुख देश के करोड़ों दलितों (Dalits) और पिछड़ों के सीने में शूल की तरह धंस रहा है, जिन्हें सनातन धर्म की परंपरा के नाम पर सदियों तक अछूत माना गया और शिक्षा-रोजगार से वंचित रखा गया.

यहां तक कि आजादी के आंदोलन के दौरान जब महात्मा गांधी ने शूद्रों के मंदिर में प्रवेश का आंदोलन चलाया तो उनका विरोध भी सनातन परंपरा के नाम पर किया गया. थोड़ा और पीछे जाएं तो सती प्रथा के खिलाफ बने कानून का विरोध भी सनातन परंपरा के आधार पर किया गया था.

सनातन धर्म हिंदू धर्म का पर्याय नहीं बल्कि एक शाखा है

डीएमके नेता उदयनिधि स्टालिन ने जो कहा वह उत्तर भारतीयों के लिए जरूर हैरान करने वाला है, लेकिन द्रविड़ आंदोलन की यह स्थापित मान्यता है, जो ई रामास्वामी पेरियार के आत्मसम्मान आंदोलन से उपजी है. एनडीए गठबंधन में शामिल एआईएडीएमके भी पेरियार को पथप्रदर्शक मानती है. अजीब बात है कि बीजेपी एआईएडीएमके से पेरियार के विचारों पर कोई सफाई नहीं मांग रही है. उसकी कोशिश यही है कि विपक्ष को ‘धर्म-विरोधी’ साबित करके ध्रुवीकरण कराया जाए. 

हिंदू धर्म बहुत विशाल है. उसमें अद्वैत से लेकर साकार ब्रह्म तक की उपासना की जाती है. नास्तिकों के लिए भी स्थान है जैसे कि चार्वाक को ऋषि कहा जाता है.

सनातन धर्म हिंदू धर्म का पर्याय नहीं बल्कि एक शाखा है जिसका आधार वर्णव्यवस्था और पुनर्जन्म पर विश्वास है. यह दलित जाति में पैदा हुए लोगों को बताती है कि तुम्हारी तकलीफों का कारण पिछले जन्म का कर्म है और मनुष्य को मनुष्य से ऊंचा-नीचा बताने वाली वर्णव्यवस्था को ईश्वरीय विधान मानती है.

भारत में इस गैर बराबरी के विचार के विरोध की लंबी परंपरा रही है. कबीर, नानक, रैदास, सब इसी परंपरा के संत हैं. 

"जातिप्रथा को धर्मशास्त्रों का समर्थन है इसलिए हिंदू इससे मुक्त नहीं हो सकता"

1936 में लाहौर ‘जातपात तोड़क मंडल’ के वार्षिक अधिवेशन में बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर को भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया था लेकिन लिखित भाषण में व्यक्त क्रांतिकारी विचारों को देखते हुए आमंत्रण वापस ले लिया गया था. बाद में यह भाषण ‘जातिप्रथा के उच्छेद’ के रूप में प्रकाशित हुआ.

इस भाषण में डॉ अंबेडकर ने कहा था कि, जातिप्रथा को धर्मशास्त्रों का समर्थन है इसलिए हिंदू इससे मुक्त नहीं हो सकता. डॉ अंबेडकर ने इस भाषण में कहा था,

*“यदि आप जातिप्रथा में दरार डालने चाहते हैं तो इसके लिए आपको हर हालत में वेदों और शास्त्रों में डाइनामाइट लगाना होगा, क्योंकि वेद और शास्त्र किसी भी तर्क से अलग हटते हैं और वेद-शास्त्र किसी भी नैतिकता से वंचित करते हैं. आपको श्रुति और स्मृति के धर्म को नष्ट करना ही चाहिए. इसके अलावा कोई चारा नहीं है.”

*( पृष्ठ 99, डॉ.आंबेडकर, संपूर्ण वाङ्गय, खंड-1, भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय द्वारा प्रकाशित)

इस भाषण को महात्मा गांधी ने अपने अखबार ‘हरिजन’ में प्रकाशित किया था और इस पर लंबी बहस चली थी जिसके बाद महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘जाति प्रथा आध्यात्मिक और राष्ट्रीय विकास के लिए हानिप्रद है. दोनों ही महापुरुष जाति प्रथा को हानिकारक मानते हुए, इसे खत्म करने के लिए अंतरजातीय विवाह को उपाय बता रहे थे.  

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आज जो लोग सनातन का झंडा बुलंद कर रहे हैं उन्हें डॉ आंबेडकर के विचारों से टकराना होगा. उन्हें बताना होगा कि जो धर्मग्रंथ करोड़ों दलितों को जीवन भर सेवा में जुटे रहने और उन्हें कभी मुक्त न करने का निर्देश देते हैं, उनके बारे में राय क्या है?

भारत का संविधान समता, स्वतंत्रता और समानता की बात करता है. डॉ अंबेडकर ने कहा था कि जातिव्यवस्था के रहते भारत एक राष्ट्र नहीं बन सकता, लेकिन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गर्व के साथ खुद को क्षत्रिय बताते हैं. उन्हें यह बात कभी नहीं समझ आएगी कि यह गर्व कैसे उन लोगों को पीड़ा देता है जिन्हें जन्म से ‘नीची’ जातियों का माना गया है.

बहुत दिन नहीं हुए जब पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी को पुरी के मंदिर में पूजा करते समय अपमानित किया गया और वर्तमान राष्ट्रपति मुर्मू जी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. क्या दलित समाज अगर इन प्रश्नों को उठाता है तो क्या यह धर्म पर हमला हो गया? 

कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों ‘जितनी आबादी-उतना हक’ का नारा दिया था. पार्टी जाति जनगणना की मांग कर रही है ताकि दलितों-पिछड़ों, आदिवासियों और अन्य वंचित वर्गों की सामाजिक हकीकत सामने आ सके. बीजेपी इसे लेकर परेशान है इसलिए उसने सनातन का मुद्दा छेड़ दिया है जैसे कि कभी मंडल के खिलाफ उसने कमंडल उठा लिया था. आडवाणी जी ने रथयात्रा निकालकर धार्मिक ध्रुवीकरण कराया था.

उस समय मौजूदा प्रधानमंत्री उनके सारथी थे. उस समय वे ‘सवर्ण’ थे. बाद में जब गुजरात के मुख्यमंत्री हुए तो उनकी जाति ओबीसी की सूची मे दर्ज कर ली गयी. लेकिन पिछड़ों को मिला क्या? मोदी जी ने प्रधानमंत्री रहते दलितों पिछड़ों को बड़ी तादाद में नौकरियां देने वाले सार्वजनिक संस्थानों का तेजी से निजीकरण किया है. ये आरक्षण को खत्म करने की साजिश ही है. आखिर ये कैसा सनातन है जो दलित, आदिवासी और पिछड़ों के भविष्य में अंधेरा भर रहा है? 

हाल ही में सरसंघचालक मोहन भागवत ने माना है कि सामाजिक व्यवस्था के कारण हजारों साल तक शोषण हुआ. इसलिए आरक्षण अगले दो सौ साल तक जारी रहे तो बुरा नहीं. अगर उनकी मंशा ठीक होती तो कहते कि सनातन पर सवाल भी पीड़ा की उपज है, जिसे समझा जाना चाहिए. वे ये भी बताते कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई सरसंघचालक कभी दलित या पिछड़ी जाति का क्यों नहीं बनाया गया या इस संगठन ने जातिप्रथा के नाश के लिए कोई कार्यक्रम क्यों नहीं चलाया जो हमेशा हिंदू एकता की बात करता है.

क्या जातियों के रहते हिंदू एकता संभव है? महात्मा गांधी और डॉ अंबेडकर ने अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहित किया था लेकिन इसका भी सनातन के नाम पर ही विरोध होता है. 

आज सरकारी नौकरियों को पूरी तरह खत्म किया जा रहा है. भागवत जी 2015 में आरक्षण की समीक्षा की बात कर रहे थे पर आज ये बयान इसलिए दे रहे हैं क्योंकि मोदी सरकार ने आरक्षण को बेमानी बना दिया है. जहां कोई गुंजाइश होती भी है वहां तरह-तरह के षड़यंत्र किये जाते हैं.

आखिर तमाम संस्थानों और नौकरियों में दलित-पिछड़े और आदिवासी समाज के लिए आरक्षित स्थान क्यों खाली हैं? हद तो ये है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देते हुए सरकार ने क्रीमी लेयर का मानक 8 लाख रुपये रखा है जबकि दलित, पिछड़े और आदिवासी समाज के लिए यह बेहद कम है. क्या यह अन्याय नहीं है? 

सनातन पर बात होगी तो दूर तलक जाएगी. करोडों दलितों-पिछड़ों के लिए यह आत्मसम्मान का मसला है जिससे लड़ने की राह डॉ अंबेडकर ने दिखाई है और जिनके बनाए संविधान को मोदी सरकार बदलना चाहती है. 

(लेखक कांग्रेस नेता और पूर्व लोकसभा सदस्य हैं, ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं, इसके लिए क्विंट हिंदी जिम्मेदार नहीं है) 

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