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29 जनवरी को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज पहुंचे राजस्थान के रणवीर सिंह के लिए महाकुंभ मेले में पवित्र स्नान किसी संघर्ष से कम नहीं था.
इसकी शुरुआत अपनी बूढ़ी मां, पत्नी उर्मिला और छह साल के बच्चे को बीकानेर से प्रयागराज लाने के लिए पर्याप्त धन जुटाने के लिए अपनी गाय को गिरवी रखने से हुई. मौके पर पहुंचने पर, उनका स्वागत लोगों की भारी भीड़ के साथ हुआ. कुछ पगड़ी पहने, कुछ बिना पगड़ी के, कई ‘घूंघट’ में. वह तुरंत भीड़ में समा गए, जिसने सामूहिक रूप से तय किया कि उन्हें कहां जाना है, और उन्हें साथ ले गए.
मौनी अमावस्या की आधी रात को जब वे स्नान स्थल पर पहुंचे तो वहां पहले से ही अव्यवस्था और भीड़भाड़ थी. धक्का-मुक्की कुछ देर के लिए रुकी, लेकिन दो घंटे बाद ही भोर होने पर फिर से शुरू हो गई.
उन्होंने कहा, "हम स्नान नहीं कर सके. हम कल स्नान करेंगे."
हालांकि, रणवीर को निराशा हुई, लेकिन वे भाग्यशाली महसूस कर रहे थे कि वे 29 जनवरी को हुई आपदा से बच गए, जब लाखों श्रद्धालुओं के लिए सब कुछ तबाह हो गया था, जो स्वर्ग की राह की तलाश में गंगा और यमुना के तट पर जुटे थे. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, रात में हुई भगदड़ में 30 लोग मारे गए हैं, कई लोग घायल हुए हैं. जिसके बाद से आयोजन को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं.
भगदड़ मौनी अमावस्या के दिन तड़के शुरू हुई जब लाखों लोगों की भीड़, जिसमें साधु और श्रद्धालु भी शामिल थे, शाही स्नान के लिए नदियों के किनारे जमा हुए थे. अफरा-तफरी तब शुरू हुई जब भीड़ पुलिस के घेरे से बाहर निकल गई- और कथित तौर पर लोगों को कुचल दिया.
भगदड़ की खबर फैलने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, "प्रयागराज महाकुंभ में हुआ हादसा बेहद दुखद है. इसमें अपने प्रियजनों को खोने वाले श्रद्धालुओं के प्रति मेरी गहरी संवेदना है. इसके साथ ही मैं सभी घायलों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं."
फिर भी, सवाल खड़े हुए हैं, जिससे पार्टी को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा है. 7,000 करोड़ रुपये के विशाल बजट पर महीनों की तैयारी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले विशेष आश्वासन के बावजूद क्या गड़बड़ हो गई?
यूपी सरकार ने इसका दोष श्रद्धालुओं पर मढ़ दिया है. आदित्यनाथ ने कहा, "यह हादसा भारी भीड़ के द्वारा अखाड़ा मार्ग पर बैरिकेड्स को तोड़ने और उसे कूद कर जाने के कारण वहां पर हुआ है... जिसमें करीब 30 लोगों की मौत हुई है, 36 घायलों का प्रयागराज में इलाज चल रहा है जबकि बाकी घायलों को उनके परिवार वाले ले अपने साथ ले गए हैं."
कुंभ के इतिहास पर किताब लिखने वाले और शिक्षाविद हेरम्ब चतुर्वेदी ने द क्विंट को बताया, "अगर आप गलत जगहों पर बैरियर लगा देंगे और ज्यादातर सड़कें बंद कर देंगे तो भगदड़ मचना तय है."
उन्होंने कहा, "इस दुर्घटना को टाला जा सकता था. सरकार ऐसे अधिकारियों पर निर्भर थी जिन्हें स्थानीय भूगोल की कोई जानकारी नहीं थी. सरकार ने नागरिक सुरक्षा, होमगार्ड, राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) के कैडेटों और सामाजिक संगठनों के स्वयंसेवकों, जो इलाके के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं, उनसे भी मदद नहीं ली."
भगदड़ के बाद सरकार ने अब कुंभ के लिए वीवीआईपी पास रद्द कर दिए हैं और 4 फरवरी तक प्रयागराज में चार पहिया वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है.
इस हादसे के बाद बहस छिड़ गई है कि क्या अब कुंभ का प्रबंधन सेना को सौंप देना चाहिए. यह एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि सेना को लाने से उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार की प्रतिष्ठा को और नुकसान पहुंचेगा, जो 29 जनवरी को आठ करोड़ श्रद्धालुओं सहित सभी मेला दिवसों पर प्रयागराज में करोड़ों लोगों को आकर्षित करने का दावा करती रही है.
धर्म गुरुओं के बीच भी ऐसी अफवाहें हैं कि 26 फरवरी तक चलने वाले कुंभ का प्रशासन और सुरक्षा सेना को सौंप दी जाएगी, क्योंकि राज्य प्रशासन की क्षमताएं उजागर हो गई हैं.
ऐसा लग रहा है कि कुछ धर्म गुरुओं और अखाड़ों के प्रमुखों ने पहले ही आशंका जताते हुए राज्य सरकार को सेना की मदद लेने की सलाह दी थी.
निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी ने मीडिया से कहा, "सभी अखाड़ों ने मांग की थी कि कुंभ का प्रबंधन भारतीय सेना को सौंप दिया जाना चाहिए. अगर सेना के पास इसका प्रभार होता, तो मुझे नहीं लगता कि इतना बड़ा हादसा होता. मैं बहुत-बहुत दुखी हूं."
पुरी ने कहा कि प्रशासन आम तीर्थयात्रियों की सुरक्षा की चिंता करने के बजाय वीआईपी लोगों की सेवा पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है. निरंजनी अखाड़े से जुड़े संत ने कहा, "हमें प्रधानमंत्री से संदेश मिला है कि कुंभ को सेना को सौंपा जा रहा है."
इस बीच, सीएम आदित्यनाथ ने जस्टिस हर्ष कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग द्वारा जांच के आदेश दिए हैं, जिसमें पूर्व डीजी वीके गुप्ता और सेवानिवृत्त आईएएस डीके सिंह सदस्य हैं. जांच पूरी होने की कोई तारीख घोषित नहीं की गई है.
प्रयागराज के पत्रकार सुनील शुक्ला ने कहा, "मुख्यमंत्री ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किए बिना न्यायिक आयोग का गठन करके घटना को दबाने की कोशिश की है."
इस घटना के बाद राजनीतिक घमासान मच गया है और विपक्षी नेताओं ने बीजेपी पर निशाना साधा है.
कांग्रेस और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आदित्यनाथ सरकार पर निशाना साधा, जबकि समाजवादी पार्टी (एसपी) सुप्रीमो अखिलेश यादव ने सरकार से कुंभ का प्रबंधन सेना को सौंपने को कहा.
उन्होंने कहा, "कुप्रबंधन और प्रशासन का आम श्रद्धालुओं के बजाय वीआईपी मूवमेंट पर विशेष ध्यान देना इस दुखद घटना के लिए जिम्मेदार है."
कई साधुओं ने बुधवार को हुई अव्यवस्था के कारण मौनी अमावस्या के पवित्र दिन सुबह 5:30 से 6:30 बजे के बीच “ब्रह्म मुहूर्त” के दौरान तीन नदियों, गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर सबसे पहले डुबकी लगाने की परंपरा को छोड़ने पर असंतोष व्यक्त किया है.
ऐसा माना जा रहा था कि साधुओं ने "दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन" का बहिष्कार कर दिया है, जिससे बीजेपी और आदित्यनाथ की हिंदुत्व समर्थक छवि को और नुकसान पहुंच सकता है.
मुख्यमंत्री और पार्टी के अन्य नेताओं द्वारा काफी समझाने के बाद आखिरकार वे दोपहर करीब 2 बजे नदियों की ओर जाने के लिए राजी हुए.
19 जनवरी को कुंभ मैदान में गीता प्रेस के परिसर में लगी भीषण आग के करीब 10 दिन बाद यह हादसा हुआ है. आग लगने वाले हादसे में कोई हताहत नहीं हुआ था, माना जा रहा था कि आग गैस सिलेंडर के लीक होने के कारण लगी थी, जिससे छह टेंट और 40 झोपड़ियां जलकर खाक हो गई थी.
महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी के तट पर 2003 में हुए एक अन्य कुंभ में 39 लोगों की जान चली गई थी. 2013 में कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद (अब प्रयागराज) रेलवे स्टेशन पर एक फुटब्रिज ढह गया था, जिसमें 42 लोगों की मौत हो गई थी.
यह आश्चर्यजनक है कि प्रशासन ने भगदड़ की घटनाओं से सबक नहीं लिया है और भीड़ प्रबंधन में लगातार गलतियां कर रहा है.
बड़ी भीड़ को आकर्षित करने के लिए अति-प्रचार में लिप्त होने के लिए राजनीतिक नेता दोषी हैं.
महामंडलेश्वर प्रेमानंद पुरी ने कहा, “सरकार दावा कर रही है कि कुंभ मेले में 40 करोड़ से अधिक लोग आएंगे. अगर आपको पता था कि इतनी बड़ी भीड़ आएगी, तो आपने उचित व्यवस्था क्यों नहीं की?”
(सैबल दासगुप्ता, 18 साल से विदेशी संवाददाता हैं और उन्होंने रनिंग विद द ड्रैगन: हाउ इंडिया शुड डू बिजनेस विद चाइना नामक किताब लिखी है. यह एक ओपिनियन पीस है और इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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