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आकाश आनंद को पीछे हटाकर BSP सुप्रीमो मायावती ने खुद की साख को और कमजोर किया

Akash Anand: अपने उभरते हुए नेता का यूं सार्वजनिक तौर पर अपमान करने के बाद पार्टी ने अपनी ताबूत में एक और कील ठोंक दी है.

अजय बोस
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>आकाश आनंद को पीछे हटाकर BSP सुप्रीमो मायावती ने खुद की साख को और कमजोर किया</p></div>
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आकाश आनंद को पीछे हटाकर BSP सुप्रीमो मायावती ने खुद की साख को और कमजोर किया

(फोटो: क्विंट हिंदी)

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बहुजन समाज पार्टी (BSP) सुप्रीमो मायावती (Mayawati) ने अपने राजनीतिक वारिस और भतीजे आकाश आनंद (Akash Anand) को धूमधाम से लॉन्च करने के मुश्किल से पांच महीने बाद ही धराशायी कर दिया, जिससे उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक हैरान हैं.

लेकिन असल तथ्य ये है कि मायावती ने लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) के ठीक बीच में ऐसा किया गया है. यह पार्टी के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी है और इसकी वजह से पार्टी के चुनाव कैंपेन में धीमापन दिख रहा है.

इसने सत्तारूढ़ दल और केंद्रीय सरकार के दबावों और खुद को बड़ा दिखाने की निजी चाहत, दोनों की झलक मिली है. ये दिखाता है कि बहनजी कैसे एक चुने हुए उत्तराधिकारी को शक्तियां सौंपने में अनिच्छुक हैं.

गौरतलब है कि सीतापुर में एक चुनावी रैली में बीजेपी शासन की आलोचना करते हुए आनंद के एक उग्र भाषण के तुरंत बाद पार्टी की ओर से ये विवादास्पद फैसला सामने आया.

भाषण के दौरान आकाश आनंद ने कहा, "बीजेपी की ये सरकार बुलडोजर की सरकार है और देशद्रोहियों की सरकार है. जो पार्टी अपने युवाओं को भूखा छोड़ देती है और अपने बुजुर्गों को गुलाम बनाती है, वह आतंकवादी सरकार है. तालिबान अफगानिस्तान में ऐसी सरकार चलाता है."

युवा बीएसपी नेता आकाश आनंद के साथ चार अन्य, बीएसपी उम्मीदवारों महेंद्र यादव, श्याम अवस्थी, अक्षय कालरा और रैली आयोजक विकास राजवंशी पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है.

बताया जा रहा है कि मायावती अपने भतीजे पर सत्तारूढ़ पार्टी पर सीधा हमला करने के लिए नाराज हैं. कहा जाता है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने निजी तौर पर उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर बीएसपी ने सरकार के खिलाफ इस तरह की टकराव वाली भाषा का इस्तेमाल खत्म नहीं किया तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे.

बीएसपी सुप्रीमो जब अपने शुरुआती सालों में राजनीतिक फायरब्रांड नेता थीं, तब उन्होंने विरोधियों के खिलाफ और भी मजबूत बयानबाजी का इस्तेमाल किया था. लेकिन पिछले कई सालों में बीजेपी के रथ का खुले तौर पर विरोध न करने के लिए वे सावधान रहीं हैं.

असल में लगातार अफवाहें हैं कि बहनजी ने औपचारिक गठबंधन के बिना और भाषणों और ट्वीट्स में सरकार की सांकेतिक आलोचना के बावजूद विधानसभा और संसदीय चुनावों में बीजेपी की मदद करने के लिए उसके साथ एक गुप्त समझौता किया है. अन्य विपक्षी दलों ने उन पर बीजेपी विरोधी वोटों को बांटने के लिए विधानसभा और संसदीय चुनावों, दोनों में उम्मीदवार उतारने का भी आरोप लगाया है.

माना जाता है कि बदले में उन्हें पिछले कई दशकों से चले आ रहे भ्रष्टाचार के मामलों में अधिकारियों से राहत मिली है.

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फिर भी, ऐसे वक्त पर अपने ही भतीजे के पर कतरने के पीछे सरकारी दबावों के अलावा और भी कई वजहें हो सकती हैं. जब से बीमार कांशीराम ने मायावती को पार्टी की बागडोर सौंपी, उसके बाद से ही मायावती ने वरिष्ठ नेताओं के साथ पार्टी के अहम पद साझा करने से इनकार किया. जहां आजकल ज्यादातर दलों में एक सर्वोच्च नेता का वर्चस्व बढ़ रहा है, वहीं बीएसपी के मामले में बहनजी एक अलग ही पायदान पर बैठी हैं.

इसलिए, यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि पांच साल पहले, पिछले लोकसभा चुनावों के एक हफ्ते बाद नरेंद्र मोदी और बीजेपी को दूसरे कार्यकाल के दौरान मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को बीएसपी के नेशनल कोऑर्डिनेटर के रूप में नामित किया था. कुछ साल बाद, बीएसपी सुप्रीमो ने सार्वजनिक रूप से आनंद की प्रशंसा करते हुए घोषणा की कि उन्हें पार्टी में एक बड़ी भूमिका के लिए तैयार किया जा रहा है.

2022 के उत्तर प्रदेश चुनावों के दौरान,अपने भतीजे को मायावती के बाद दूसरे स्टार प्रचारक के तौर पर नामित किया गया था. मायावती अपने लंबे वक्त से कानूनी सलाहकार और विश्वासपात्र सतीश चंद्र मिश्रा से नाराज थीं.

इसलिए, जब मायावती ने कुछ महीने पहले आकाश आनंद को अपने चुने हुए राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर दुनिया के सामने रखा तो यह बीएसपी के लिए भविष्य का चार्ट तैयार करने और इससे भी अधिक अपने गढ़, उत्तर प्रदेश में चंद्रशेखर आजाद जैसे युवा दलित प्रतिद्वंद्वियों को रोकने के लिए एक सोची समझी योजना का हिस्सा लग रहा था. लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अपने भतीजे को अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हुए भी, बहनजी ने साफ तौर से घोषणा की थी कि वह खुद उत्तर प्रदेश और पड़ोसी उत्तराखंड में पार्टी के हितों की देखभाल करना जारी रखेंगी, जबकि आनंद देश के अन्य राज्यों की देखभाल करेंगे.

हालांकि, जैसे-जैसे 2024 के संसदीय चुनावों के लिए प्रचार अभियान ने गति पकड़नी शुरू की, एक अच्छे वक्ता और उत्साही दलित कार्यकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित युवा भतीजे आकाश आनंद भूल गए थे पार्टी की कमान अब भी उनकी बुआ के हाथ में है.

अपने उग्र चुनावी भाषणों के जरिए, विशेष रूप से युवा दलितों के बीच लोकप्रियता हासिल करने के बाद आकाश आनंद ने खुद को एक फायरब्रांड नेता के तौर पर पेश किया है. ऐसा नेता जो बीजेपी सरकार को सत्ता से बेदखल करने पर अमादा है.

अचानक, बीएसपी की चर्चा चुनाव के बीच की जाने लगी है. बीएसपी को बीजेपी का बी टीम भी कहा जाता है.

कभी दलितों की आवाज बनकर राजनीतिक तौर पर उभरने वाली पार्टी अब खुद में सिमटती जा रही है. अब इसमें कम ही शंका है कि अपने उभरते हुए नेता का यूं सार्वजनिक तौर पर अपमान करने के बाद पार्टी ने अपनी ताबूत में एक और कील ठोंक दी है.

मायावती ने अपने उत्तराधिकारी को इस आधार पर हटा दिया है कि वह पर्याप्त "परिपक्व" नहीं हैं, उनका हमला एक स्वतंत्र नेता के रूप में मायावती की प्रतिष्ठा को और नुकसान पहुंचाएगा.

पहले से ही घटते बीएसपी को जनाधार और ज्यादातर जाटव दलित उप-जाति के बीच मोहभंग बीजेपी और इंडिया गठबंधन, दोनों को फायदा पहुंचा सकता है. साथ ही वोटिंग पर्सेंटेज में गिरावट को और बढ़ा सकता है.

(लेखक दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार और 'बहनजी: ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती' के लेखक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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