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डॉक्टर मनमोहन सिंह का कल रात (26 दिसंबर, 2024) निधन हो गया. वह एक अच्छे इंसान थे. वह एक महान देशभक्त थे. वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिनके साथ इतिहास ने वास्तव में अन्याय किया, खासकर उनके महत्वपूर्ण सार्वजनिक करियर के अंतिम पड़ाव में. संवैधानिक संस्थाओं ने उनके साथ गलत किया. किराए पर आने वाले बयानवीरों ने उनके साथ अन्याय किया. बेईमान राजनेताओं ने उनके साथ अन्याय किया. लेकिन उनकी विरासत ऐसी थी कि उनपर उछाले गए कीचड़ उनपर नहीं बल्कि उनके विरोधियों से ही लिपट गई.
मैं पहली बार डॉक्टर साहब से 1991 के उनके ऐतिहासिक बजट के तुरंत बाद एक टेलीविजन इंटरव्यू के लिए मिला था. भारत की अर्थव्यवस्था वर्षों तक नियामकीय (रेगुलेटरी) दबाव के कारण दम तोड़ चुकी थी. कुवैत आक्रमण वह मोड़ था जिसने आखिरकार बांध खोल दिया था. आईएमएफ के डिफॉल्ट से बचने के लिए हमें अपना सोना गिरवी रखना पड़ा.
प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के आह्वान पर, वित्त मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह ने उन आर्थिक सुधारों को शुरू किया जो सरकारी बंधन में जकड़े भारत में असंभव ही नहीं अकल्पनीय दिख रहा था. एक सप्ताह से भी कम समय में बोल्ड कदम उठाते हुए 2 बार में रुपये का पचास प्रतिशत से अधिक अवमूल्यन किया गया. इंडस्ट्रियल लाइसेंसिंग समाप्त कर दी गई. अब विदेशी पूंजी भारतीय प्रतिभूतियों में स्वतंत्र रूप से आ सकती थी, जो पूरी तरह से परिवर्तनीय रुपये से प्रेरित थी, कम से कम शेयर बाजारों में. आयात को भी लाइसेंस से मुक्त किया गया.
जब हम इंटरव्यू के लिए अपनी 2-कैमरा यूनिट को लाइटिंग के साथ सेट कर रहे थे, डॉ. सिंह, एक मंद मुस्कान के साथ हमारा स्वागत करने के बाद, अपने गुफानुमा कार्यालय में ऊपर-नीचे जाने लगे. उनकी अधीरता स्पष्ट थी. तभी अचानक उन्होंने सीटी बजानी शुरू कर दी. हां, कमरे में ऊपर-नीचे चलते, तेज कदमों के साथ, और तेज सीटियां, ऊपर और नीचे, ऊपर और नीचे. मैंने उस असामान्य दृश्य को रिकॉर्ड करने के लिए हमारे कैमरामैन को आंख मारी. और उसने ऐसा ही किया. डॉ. सिंह किसी लोकप्रिय धुन पर सीटी नहीं बजा रहे थे, कम से कम मैं तो इसकी पहचान नहीं कर सका. उनके तेज कदमों का साथ देने के लिए बस एक तेज, साथ-साथ चलने वाली सीटी. मुझे यकीन है कि वीडियो फुटेज का वह उल्लेखनीय पीस किसी आर्काइव में कहीं पड़ा हुआ है, लेकिन यह मेरे दिमाग में बहुत स्पष्ट रूप से छपा हुआ है. खैर, आखिरकार हम इंटरव्यू के लिए तैयार हो गए और डॉ. साहब अपने द्वारा पैदा की गई आर्थिक सुनामी के बारे में विस्तार से बताने बैठ गए. उस इंटरव्यू के बाद, यह एक रसम बन गया जहां मैं हर बजट भाषण के बाद, साल-दर-साल उनसे बात करता था.
अब सीधे मई 2004 में आते हैं. भारत आम चुनाव के दौर में था, जिसे व्यापक रूप से मौजूदा प्रधानमंत्री वाजपेयी के लिए एक चुनौती के रूप में देखा गया था. डॉ. सिंह उस समय विपक्ष के नेता थे. वो अपने तुगलक रोड स्थित आवास पर सुबह-सुबह बगीचे में बैठकर मुझे इंटरव्यू देने के लिए सहमत हुए.
लगा कि यह इंटरव्यू उनकी अत्यधिक गरिमापूर्ण पत्नी की वजह से नहीं हो पाएगा. डॉ. सिंह की तबीयत थोड़ी नासाज थी और उनकी पत्नि "हद से ज्यादा काम" करने के लिए उनसे नाराज हो रही थीं. लेकिन वह मान गईं. जैसे ही हम एक विशाल पेड़ की छाया के नीचे बैठे, बिस्कुट के साथ चाय के स्वादिष्ट गर्म कप बाहर भेजें. डॉ. सिंह चुपचाप बाहर आए, उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया (वैसे उनके जैसे दृढ़ सुधारक के लिए उनका हाथ मिलाने का अंदाज मानों एक पंख के स्पर्श जैसा होता था), और हमने इंटरव्यू शुरू किया. दोनों आश्वस्त थे कि डॉ. सिंह विपक्ष में ही अपना कार्यकाल जारी रखेंगे.
मेरे- और मुझे यकीन है उनके भी- अविश्वास की कल्पना कीजिए जब कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए अति-आत्मविश्वास से भरी बीजेपी को करारी शिकस्त दे दी. और जब इससे भी बड़ा शॉक सोनिया गांधी ने दिया, जिन्होंने डॉ. साहब को भारत के 13वें प्रधानमंत्री के रूप में नामित किया, तो मैं खुशी से झूम उठा. क्योंकि सोशल मीडिया से पहले के समय में उनके साथ मेरी नियमित बातचीत अचानक एक "वायरल घटना" बन गई थी. उस इंटरव्यू के क्लिप्स लगभग एक सप्ताह तक बार-बार चलाए गए. CNBC-TV18 (तब हमारा चैनल) नए प्रधानमंत्री के साथ अपने "लकी स्कूप" का जश्न मना रहा था!
मैं अल्पमत में हो सकता हूं, लेकिन मेरा मानना है कि डॉ. मनमोहन सिंह का पीएम के तौर पर 10 साल का कार्यकाल मौलिक, परिवर्तनकारी था. आधी-अधूरी कमेंट्री (वर्तमान में इतनी फैशनेबल) के विपरीत, उनका कार्यकाल बेहद सफल रहा.
वह इतना जोशिला समय था कि मैंने उत्साह में आकर अपनी पहली किताब लिखी: Superpower? The Amazing Race Between China’s Hare and India’s Tortoise. जब डॉ. सिंह मुझसे मिलने के लिए तैयार हुए तो मुझे खुशी हुई. मैंने किताब की एक कॉपी ली और गर्व से रेसकोर्स रोड जाकर उन्हें भेंट की (मेरे पास इसे साबित करने के लिए एक फोटो है!). "ओह मिस्टर बहल, मुझे नहीं पता था कि आप चीन एक्सपर्ट हैं?" “नहीं सर, कोई एक्सपर्ट नहीं. लेकिन मैं हमेशा यह जानने को उत्सुक रहता था कि चीन ने अपना आर्थिक चमत्कार कैसे रचा. और चूंकि मैंने यहां आपके द्वारा शुरू किए गए सुधारों को पास से और गहराई से देखा है, इसलिए मैंने सोचा कि यह जरूरी है कि मुझे खुद जानना चाहिए कि चीन ने यह कैसे किया, ताकि मैं दोनों की कहानियों की तुलना कर सकूं. इस तरह मैंने यह कुछ हद तक इमैच्योर और स्वभाविक किताब लिखी.”
“अरे नहीं, मुझे यकीन है कि आपका अध्ययन बहुत ठोस है. मैं इसे पढ़ने का वादा करता हूं”. मुझे यकीन है कि उन्हें कभी समय नहीं मिला, लेकिन वह हमेशा मेरे प्रति बहुत दयालु थे.
कुछ साल पहले, वह हमारे हिंदी बिजनेस न्यूज चैनल CNBC आवाज़ को लॉन्च करने के लिए सहमत हुए थे. दुर्भाग्यवश, मेरा स्लिप डिस्क हो गया था और मंच पर मुश्किल से ही लड़खड़ा कर जा सका. प्रधानमंत्री शालीनता से आगे बढ़े, मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने बगल में बैठाने में मदद की. उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मैं अनावश्यक राजनीतिक शिष्टाचार का पालन करने के लिए खड़ा न होऊं. उन्होंने "हिंदी भाषी जनता के बीच इक्विटी कल्ट को लोकतांत्रिक बनाने" की हमारी पहल की जोरदार सराहना की.
2008 में मेरा उनके साथ एक और यादगार पल था. डॉ. सिंह ने अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए सभी राजनीतिक बाधाओं को पार कर लिया था. यह आजादी के बाद सबसे महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक क्षण था. कमजोर राजनेता विरोधियों के साथ-साथ भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों जैसे अपने सहयोगियों के खिलाफ "जिब्राल्टर की चट्टान" की तरह खड़े थे, जिन्होंने संसद में डॉ सिंह को बर्खास्त करने के लिए मतदान किया था. मनमोहन सिंह ने अपना पद दांव पर लगाकर उनके ब्लफ को नाकाम कर दिया. आखिरकार उन्होंने 275-256 से जीत हासिल की, जो भले संख्यात्मक रूप से कम लेकिन राजनीतिक रूप से भारी जीत थी.
मैं बहुत खुश था कि हमारे द्वारा प्रोड्यूस एक फिल्म का उपयोग अच्छे डॉक्टर के सर्वोच्च साहस का जश्न मनाने के लिए किया जा रहा था! मेरा रोमांच सस्ता था, लेकिन उसकी जीत अद्भुत थी.
एक साल बाद, डॉ. मनमोहन सिंह पहले जनादेश की तुलना में लगभग पचास प्रतिशत अधिक जनादेश के साथ दोबारा पीएम बने. यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी इस विलक्षण उपलब्धि को दोहरा नहीं पाए
दुर्भाग्य से, कांग्रेस पार्टी ने जनादेश को पूरी तरह से गलत पढ़ा. देश ने एक महत्वाकांक्षी, साहसी सरकार के लिए मतदान किया था, जिसका उदाहरण मनमोहन सिंह की तीव्र आर्थिक वृद्धि और शक्तिशाली वैश्विक दावेदारी है. लेकिन कांग्रेस तेजी से बदनाम वामपंथी नीतियों, बढ़ती अनुदान, टैक्स और राज्य के प्रभुत्व की ओर झुक गई. यह बदलाव विनाशकारी था. इसने डॉ. सिंह को पूरी तरह से नाखूश कर दिया. वह एक संकट से दूसरे संकट की ओर बढ़ते रहे और वस्तुतः अपनी ही टीम द्वारा रची गई साजिश के शिकार हो गए.
अफसोस की यह साजिश सफल हो गई और मनमोहन सिंह की सरकार हार गई.
(पोस्टस्क्रिप्ट: मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ लगा लगभग हर बड़ा आरोप - टेलीकॉम लाइसेंस या कोयला खदानों या निजी हवाई अड्डों को मंजूरी देने में लाखों करोड़ रुपये हड़पने का- 2014 में उनके पद छोड़ने के एक दशक बाद कानून की अलग-अलग अदालतों में झूठे साबित हुए हैं).
तो अलविदा डॉ. सिंह, RIP. आप किंग थे, हैं और हमेशा रहेंगे.
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