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Maharashtra Politics: नई बेंच के गठन तक बागी MLAs पर फैसला न लें- सुप्रीम कोर्ट

Maharashtra: 11 जुलाई को कोर्ट किन मामलों की सुनवाई करेगा इस लिस्ट में महाराष्ट्र का कोई भी मामला शामिल नहीं है.

Radhika Chitkara & Vikas Kumar
नजरिया
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Maharashtra: SC ने आदेश के बावजूद महाराष्ट्र के मामलों को सूचीबद्ध नहीं किया?</p></div>
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Maharashtra: SC ने आदेश के बावजूद महाराष्ट्र के मामलों को सूचीबद्ध नहीं किया?

फोटो- क्विंट

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार, 11 जुलाई को सॉलिसिटर जनरल से महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष को निर्देश देने का आग्रह किया कि वह विधायकों की अयोग्यता के संबंध में अभी कोई निर्णय न लें. शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में एक नई पीठ का गठन किया जाएगा और इसे कल सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा.

अदालत का यह निर्देश ठाकरे गुट की उस याचिका के जवाब में आया है, जिसमें विधानसभा में नए अध्यक्ष के चुनाव को चुनौती दी गई थी.

इससे पहले कोर्ट ने महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट (Maharashtra Political Crisis) से संबंधित मामलों को सूचीबद्ध नहीं किया था, जबकि वेकेशन बेंच ने पिछले दो हफ्तों में उन मामलों को यह कहते हुए लिया था कि 11 जुलाई को इस पर सुनवाई करेगी.

बताया जा रहा है कि सोमवार को अदालत की विभिन्न पीठों द्वारा किन मामलों की सुनवाई की जाएगी, यह निर्दिष्ट करने वाली 'कारण सूची' में महाराष्ट्र का कोई भी मामला शामिल नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट की 23 मई से गर्मी की छुट्टी लगी हुई है, लेकिन अब 11 जुलाई को यह छुट्टियां खत्म हो गई हैं.

शीर्ष अदालत में पांच मामले दायर किए गए हैं जो महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट से संबंधित हैं, जिसके कारण उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री के रूप में इस्तीफा दिया और फिर शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ जिसमें बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस को डिप्टी सीएम बनाया गया-

  • एकनाथ शिंदे और उनके (उस समय) शिवसेना के 15 बागी विधायकों ने डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल द्वारा उनके खिलाफ शुरू की गई अयोग्यता कार्यवाही को चुनौती दी है. उन्होंने तर्क दिया कि जिरवाल उन्हें दलबदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य घोषित करने पर विचार नहीं कर सकते क्योंकि शिंदे कैंप की ओर से पहले ही जिरवाल को पद से हटाने के प्रस्ताव का नोटिस भेजा था. जब उनके ही पद पर फैसला नहीं हुआ है तो वे अयोग्यता का नोटिस कैसे भेज सकते हैं?

  • शिवसेना के प्रमुख व्हिप के रूप में उद्धव ठाकरे के वफादार सुनील प्रभु की नियुक्ति को मान्यता देने के लिए डिप्टी स्पीकर जिरवाल के फैसले को (उस समय) शिवसेना के बागी विधायक भरत गोगावाले द्वारा चुनौती दी गई है.

  • उद्धव ठाकरे के खेमे द्वारा दी गई चुनौतियां पहली, राज्यपाल द्वारा 30 जून को फ्लोर टेस्ट का आदेश देने का निर्णय; दूसरी, गोगावले को शिवसेना के नए प्रमुख व्हिप के रूप में मान्यता देने के लिए महाराष्ट्र विधानसभा के नए अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का निर्णय क्या है; और तीसरा, एकनाथ शिंदे को नए मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने का राज्यपाल का निर्णय और बाद में विधानसभा में कार्यवाही, उन्होंने अदालत द्वारा मामले का निपटारा होने तक शिंदे और अन्य बागियों को निलंबित करने का भी अनुरोध किया.

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मामले में अब तक क्या हुआ है?

पहले दो मामलों में 27 जून को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की वेकेशन बेंच ने सुनवाई की जहां कई दलीलें दी गईं, शिंदे खेमे की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के नबाम रेबिया के 2016 के फैसले की बदौलत डिप्टी स्पीकर को बागियों की अयोग्यता पर विचार करने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. क्योंकि उन्हें खुद के पद से हटाने का नोटिस भेजा गया है.

इसी पर डिप्टी स्पीकर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने अदालत को सूचित किया कि जिरवाल को उनके निष्कासन के नोटिस के बारे में उचित माध्यम से नहीं बताया गया था, और डिप्टी स्पीकर ने नोटिस को खारिज करते हुए वापस लिखा था क्योंकि उके द्वारा भेजे गए नोटिस को प्रमाणित नहीं किया जा सकता था.

वहीं उद्धव ठाकरे की शिवसेना की ओर से डॉ अभिषेक मनु सिंघवी प्रतिनिधित्व कर रहे थे, जिन्होंने तर्क दिया कि अदालत डिप्टी स्पीकर द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रिया में तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकती जब तक कि बाद में इस पर किसी भी तरह से निर्णय लिया जाता हो. नबाम रेबिया के फैसले की व्याख्या दलबदल विरोधी कानून को कमजोर करेगी.

वेकेशन बेंच ने कहा कि यहां तथ्यात्मक और कानूनी मुद्दों का पता लगाया जाना है और याचिकाओं को 11 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाएगा. बागियों को अयोग्यता नोटिसों का जवाब देने के लिए 12 जुलाई को शाम 5:30 बजे तक का समय दिया गया है, जिससे डिप्टी स्पीकर को तब तक कोई भी निर्णय लेने से प्रभावी ढंग से रोका जा सके.

29 जून को वेकेशन बेंच ने उद्धव ठाकरे गुट द्वारा अगले दिन एक फ्लोर टेस्ट के लिए राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के आदेश पर रोक लगाने की याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यदि फ्लोर टेस्ट पर रोक लग गई तो पहले दो मामले में गड़बड़ी होगी (यदि डिप्टी स्पीकर को बागियों को अयोग्य घोषित करने की अनुमति दी गई, तो वे फ्लोर टेस्ट में किसी भी तरह से मतदान नहीं कर पाएंगे).

अदालत ने कहा इन मामलों को कोर्ट में अब 11 जुलाई को उठाया जाएगा.

फिर 4 जुलाई को, डॉ सिंघवी ने शीर्ष अदालत के समक्ष गोगावाले को नया प्रमुख व्हिप के रूप में स्पीकर की मान्यता के खिलाफ ठाकरे खेमे की याचिका का उल्लेख किया. जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की वेकेशन बेंच ने कहा कि इस पर 11 जुलाई को बाकी मामलों के साथ सुनवाई की जाएगी.

अंत में 8 जुलाई को, शिवसेना के महासचिव सुभाष देसाई द्वारा सरकार बनाने के लिए एकनाथ शिंदे को आमंत्रित करने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका का अदालत के समक्ष उल्लेख किया गया. वेकेशन बेंच ने एक बार फिर विशेष रूप से आदेश दिया कि मामले को बाकी मामलों के साथ 11 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाएगा. अब भी सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर यह आदेश हैं कि 11 जुलाई को इन मामलों में सुनवाई होगी.

इन सभी मामलों काका नतीजा उद्धव ठाकरे के लिए शिवसेना पर अपना नियंत्रण रखने और महा विकास अघाड़ी को बचाने की कोशिश करने का आखिरी बचा हुआ रास्ता है, हालांकि इसमें उन्हें शपलता मिलेगी ऐसी संभावना कम ही है.

लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि लॉन्ग टर्म में इन सभी मामलों में जरूरी संवैधानिक मुद्दे और कानूनी प्रश्न शामिल हैं जो दलबदल विरोधी कानून की प्रासंगिकता सुनिश्चित करने में एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

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Published: 11 Jul 2022,11:38 AM IST

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