Members Only
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019लोकसभा चुनाव: BJP की जीत एक तरह से हार जैसी और 'INDIA' की हार जीत सरीखी

लोकसभा चुनाव: BJP की जीत एक तरह से हार जैसी और 'INDIA' की हार जीत सरीखी

Lok Sabha Elections 2024: बीजेपी बहुमत भी हासिल नहीं कर पाई, और इससे मोदी की साख पर बट्टा लगा है.

Shashi Tharoor
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार, 4 जून को बीजेपी मुख्यालय में समर्थकों का अभिवादन करते हुए.</p></div>
i

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार, 4 जून को बीजेपी मुख्यालय में समर्थकों का अभिवादन करते हुए.

(फोटो: PTI)


advertisement

जब 4 जून को भारत के आम चुनावों (Lok Sabha Elections 2024) के नतीजे घोषित किए गए, तो सबसे बड़ी शिकस्त उन विशेषज्ञों और विश्लेषकों की हुई, जिन्होंने सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की भारी जीत की भविष्यवाणी की थी. कई राज्यों में उनके चुनावी पूर्वानुमान एकदम गलत साबित हुए. देश के एक लोकप्रिय अंग्रेजी टेलीविजन चैनल पर एक विश्लेषक नतीजों के बाद फूट-फूटकर रोने लगे.

बेशक, मोदी की बीजेपी फिर सत्ता की कुर्सी संभालने जा रही है. लेकिन उनकी जीत मानो हार जैसी लग रही है. मोदी और उनके सिपहसालार गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि लोकसभा में वह 303 की बजाय 370 सीटें लाएंगे. लेकिन बीजेपी 63 सीटें हार गई.

असल में, बीजेपी के खाते में सिर्फ 240 सीटें हैं. बहुमत के लिए 272 सीटें जरूरी हैं, और यह इससे काफी कम है. नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए की बाकी की क्षेत्रीय पार्टियां भी मोदी और शाह की भविष्यवाणियों पर खरी नहीं उतरी. इसी वजह से बीजेपी को किसी भी कानून को पारित करने के लिए अब एनडीए की सहयोगी पार्टियों पर निर्भर रहना पड़ेगा.

दूसरी सबसे बड़ी हार खुद मोदी की हुई है. उन्होंने चुनाव को पूरी तरह से अपने बारे में बना दिया, और उस छवि को भुनाने का प्रयास किया, जिसे बढ़ावा देने में उन्होंने वर्षों बिताए हैं. उनका नजरिया भी बेशर्मी भरा है- कोविड-19 के वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट पर वैक्सीन लेने वाले व्यक्ति की बजाय मोदी की तस्वीर छापी गई. 80 करोड़ लोगों को जो राशन के थैले दिए गए, उन पर भी मोदी की तस्वीर चस्पा थी. देश भर के रेलवे स्टेशनों पर "सेल्फी प्वाइंट" बनाए गए, जहां यात्री मोदी के आदमकद कटआउट के साथ तस्वीरें खिंचवा सकते हैं.

मोदी की भव्यता का भ्रम बढ़ता गया. वह खुद को देवता ही मानने लगे. चुनावी अभियान के दौरान उन्होंने एक इंटरव्यू में यहां तक कह दिया कि पहले वह यह मानते थे कि वह बायलॉजिकल पैदा हुए हैं, लेकिन अब उन्हें विश्वास हो गया है कि उन्हें भारत की सेवा करने के लिए भगवान ने सीधे धरती पर भेजा है. कुछ लोगों को यह अटपटा लग सकता है लेकिन जनता ने इसे सच मान लिया. हाल के एक सर्वेक्षण में मोदी को 75% अप्रूवल रेटिंग मिली है.

हालांकि, अब मोदी की रणनीति का बुरा पहलू सामने आ रहा है: बीजेपी को बहुमत न मिलने के कारण भारतीय मतदाताओं के बीच मोदी की साख को बट्टा पर लगी है. उनकी अपनी पार्टी के भीतर भी यही हाल है. जबकि पिछले कई सालों से वहां भी सिर्फ मोदी का ही बोलबाला था.

दरअसल मोदी ने कई अहम फैसले लिए, लेकिन उनके बारे में अपने मंत्रिमंडल से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया. जैसे 2016 में दुर्भाग्यपूर्ण नोटबंदी और फिर 2020 में महामारी के दौरान कड़ा लॉकडाउन. लेकिन अब उनकी स्थिति बदल सकती है. क्योंकि बीजेपी के प्रमुख नेता और गठबंधन के सहयोगी दल अधिक मजबूती से अपनी बात रख सकते हैं. इससे मोदी की निरंकुशता पर लगाम लगाई जा सकती है.

जैसा बीजेपी की जीत में एक तरह की हार नजर आती है, वैसे ही विपक्ष की हार बहुत कुछ जीत जैसी महसूस होती है. विपक्षी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (जिसका मैं एक सदस्य हूं) और इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल अलायंस (इंडिया) के अन्य सहयोगियों के पास जश्न मनाने के लिए बहुत कुछ है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
कांग्रेस पार्टी की कुल सीटें लगभग दोगुनी, 52 से 99 हो गई हैं. इंडिया के दूसरे सहयोगियों ने भी पहले से अच्छा प्रदर्शन किया है. जैसे उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी को 37 सीटें मिलीं और पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस को 29 सीटें. 232 सीटों के साथ इंडिया एक जबरदस्त ताकत बन गई है. यकीनन, लोकसभा अब ऐसे रबर स्टाम्प के तौर पर काम नहीं करेगी, जो सिर्फ मोदी का एजेंडा पूरा कर रही हो.

इस बार वोटिंग की एक खास बात यह रही कि इसने बीजेपी के हिंदू अंधराष्ट्रवादी हिंदुत्व के सिद्धांत को नकार दिया. बीजेपी को ऐसे कई क्षेत्रों में हार का मुंह देखना पड़ा, जो पहले उसके लिए एकदम ‘सुरक्षित’ थे पर वहां मोदी के चुनावी भाषण सबसे ज्यादा भड़काऊ और हिंदू केंद्रित थे. अयोध्या भी उसमें शामिल है. वहां जनवरी में शानदार मंदिर का उद्घाटन किया गया था.

इसकी बजाय विपक्षी पार्टियों ने उत्तर भारत में काफी अच्छा प्रदर्शन किया, जिसे हिंदुत्व का गढ़ माना जाता है. इसमें वह राज्य भी शामिल हैं, जहां 2019 में बीजेपी के रथ ने विपक्षी गठबंधन को लगभग रौंद दिया था. भारत का राजनैतिक मानचित्र अब खास तौर से बहुरंगी है.

लेकिन इन चुनावों में भारतीय लोकतंत्र की सबसे बड़ी जीत हुई है, जो मोदी के एक दशक के कार्यकाल के दौरान लगातार दबाव में था. ग्लोबल रेटिंग्स में भारत की गिरावट से यह साफ नजर आता है. फ्रीडम हाउस ने भारत को ‘फ्री’ (स्वतंत्र) से ‘पार्टली फ्री’ (आंशिक रूप से स्वतंत्र) कह दिया है. वेरायटीज ऑफ डेमोक्रेसी (वी-डेम) इंस्टीट्यूट ने इसे ‘इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी’ (चुनावी निरंकुशता) के तौर पर फिर से वर्गीकृत किया है. बीजेपी के शासन काल में भारत ‘डेमोक्रेटिक डी-कंसॉलिडेशन’ (लोकतांत्रिक विघटन) की जीती जागती मिसाल बन गया है.

इसी तरह ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 125 देशों में भारत की रैंकिंग 111वीं है, और वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों में 159वीं. जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने प्रेस की स्वतंत्रता में गिरावट के बारे में चिंता जाहिर की है. दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार भारत में बीबीसी की उस डॉक्यूमेंट्री को बैन करने पर सवाल खड़े कर रही है, जो 2002 में गुजरात में मुस्लिम नरसंहार पर केंद्रित है. इस नरसंहार के दौरान मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, और डॉक्यूमेंट्री में कई विवादास्पद मुद्दे उठाए गए हैं.

दूसरों ने भी इसी तरह की चिंताएं जताई हैं. अमेरिका के कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजिएस फ्रीडम ने अल्पसंख्यकों के साथ होने वाले बर्ताव का मुद्दा उठाया, और अमेरिका के विदेश विभाग ने मानवाधिकार हनन पर चिंता प्रकट की. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि बीजेपी सरकार ने कोविड-19 की मृत्यु दर के अपुष्ट आंकड़े दिए हैं. दूसरी तरफ विश्व बैंक ने भारत के मानव-पूंजी सूचकांक को अस्वीकार करने के खिलाफ कदम उठाया.

खुशकिस्मती से ये प्रवृत्ति अब बदलने वाली है. भारत का विपक्ष, भारत के पुराने नजरिए को बहाल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ने वाला. जैसा कि बंगाली कवि रवींद्र नाथ टैगोर ने कहा था, ‘जहां मन भय के बिना होता है, वहां सिर ऊंचा होता है.’

[शशि थरूर संयुक्त राष्ट्र के अंडर सेक्रेटरी जनरल, भारतीय विदेश राज्य मंत्री और मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री रह चुके हैं. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसद हैं. वे हाल ही में आई किताब- अंबेडकर: अ लाइफ (एलेफ बुक कंपनी, 2022) के लेखक हैं. यह एक ओपिनियन पीस है. इसमें व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.]

Become a Member to unlock
  • Access to all paywalled content on site
  • Ad-free experience across The Quint
  • Early previews of our Special Projects
Continue

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT