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इंफोसिस में नाटकीय तरीके से लगभग 400 ट्रेनी की छंटनी पहली स्पष्ट चेतावनी है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) भारत में मीडिल क्लास की व्हाइट कॉलर नौकरियों को खत्म करने जा रही है.
भारत के अंदर आईटी सेक्टर ही सबसे अधिक संख्या में अच्छे वेतन वाली वेतनभोगी नौकरियां प्रदान करता है. लेकिन इनमें से कई को अब विभिन्न AI प्लेटफार्मों द्वारा रिप्लेस किया जा सकता है. जिस कंपनी को दो फ्रेशर्स को रखने के लिए प्रत्येक को 20,000-25,000 रुपये की सैलरी देनी पड़ती है, उन्हें अब उनकी जगह केवल प्रति माह 20 डॉलर (1,700 रुपये) खर्च करने होंगे. यदि वे प्रति माह 200 डॉलर (17,500 रुपये) खर्च करते हैं, तो उन्हें पीएचडी स्तर के एआई एजेंट तक पहुंच मिल सकती है - और वे मिड लेवल के टेक्निकल एक्सपर्ट्स की जगह ले सकते हैं जो 70,000 से 1 लाख रुपये प्रति माह के बीच कमाते हैं.
भारत की आईटी कंपनियों के लिए खतरा तत्काल है. उनका अधिकांश काम विदेशी कंपनियों के लिए सेवाओं को ऑटोमेटिक करना, उनके लिए कस्टम सॉफ्टवेयर बनाना, उनके डेटा को डिजिटल बनाना और फिर उनके सिस्टम को बनाए रखना है.
अब, विदेशी कंपनियां इन कामों का बड़ा हिस्सा इन-हाउस एआई प्लेटफॉर्म द्वारा करा सकती हैं. भारत में आउटसोर्सिंग के बजाय, वे ChatGPT को आउटसोर्स कर सकती हैं.
निश्चित रूप से, भारतीय आईटी कंपनियां ऐसी स्थिति के लिए तैयारी कर रही हैं. इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि वे पिछले दो सालों से धीरे-धीरे और चुपचाप कर्मचारियों की संख्या कम कर रही हैं. वास्तव में, 2023-24 लगभग दो दशकों में पहली बार था जब भारत में शीर्ष तीन आईटी कंपनियों - टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस और विप्रो - ने अपने कर्मचारियों की संख्या कम कर दी.
उन्होंने वेतन वृद्धि में भी देरी की. उदाहरण के लिए, इंफोसिस द्वारा लंबी देरी के बाद इस महीने इंक्रिमेंट के लेटर जारी किए जाने की उम्मीद है. वेतन वृद्धि अप्रैल से प्रभावी होगी. नवंबर 2023 के बाद ये पहली बढ़ोतरी होगी.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जमा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 18-19 मिलियन लोग नियमित वेतन (कलर्क और टेक्नीशियन को छोड़कर) के साथ व्हाइट कॉलर प्रोफेशनल्स के रूप में कार्यरत हैं. शीर्ष पांच आईटी प्रमुख - टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक और टेक महिंद्रा - अकेले इनमें से लगभग 8 प्रतिशत का हिस्सा हैं.
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस समय कंप्यूटर विज्ञान के कोर्सेज में 1.3 मिलियन छात्रों ने एडमिशन ले रखा है. आईटी नौकरी न केवल आरामदायक जीवन की गारंटी है, बल्कि यह विदेश में, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका में नौकरी पाने के दरवाजे भी खोलती है. लेकिन यह दरवाजा बहुत तेजी से बंद हो रहा है.
बेशक, अल्पावधि में इसमें विपरित इंडिकेटर मिलेंगे. दुनिया भारत की कंपनियों को अपने सिस्टम को एआई-तैयार करने की जरूरत है. इसलिए, भारत में आईटी प्रमुख संभवतः डेटा को ऑर्गनाइज करने, लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) को ट्रेन करने और मौजूदा सॉफ्टवेयर सिस्टम में एआई को इंटिग्रेट करने के लिए कई डील करने में सक्षम होंगे.
लेकिन ये कर्मचारियों के लिए बहुत लाभदायक नहीं होंगे.
यह इस समय बड़ी आईटी कंपनियों द्वारा दी जा रही बेहद निराशाजनक शुरुआती सैलरी से स्पष्ट है. मध्य स्तर के कॉलेजों से कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट को 20,000-25,000 रुपये के मासिक वेतन पर रखा जा रहा है.
यह कमोबेश वही है जो उन्हें 10 साल पहले मिला होगा. वास्तविक क्रय शक्ति के संदर्भ में, 2015 में 25,000 रुपये आज के 40,000 रुपये के समान है. उस समय, वेतन वृद्धि भी अधिक और अधिक नियमित होती थी. अब, एक नए आईटी कर्मचारी के वेतन स्तर पर लंबे समय तक स्थिर रहने की संभावना है.
तो, इससे मीडिल क्लास के लिए क्या सबक हैं?
सबसे महत्वपूर्ण सबक मीडिल क्लास के माता-पिता के लिए है. उन्हें अपने बच्चों को न चाहते हुए भी कंप्यूटर की पढ़ाई के लिए मजबूर करना बंद करना होगा.
यह सिर्फ भारत की समस्या नहीं है. यह हर जगह तकनीकी नौकरियों के लिए सच है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में सॉफ्टवेयर डेवलपर्स के लिए नौकरी पोस्टिंग में कोरोना के पहले की अवधि की तुलना में लगभग 35 प्रतिशत की गिरावट आई है. ये 2022 में पहुंचे चरम से 70 प्रतिशत नीचे हैं. चैटजीपीटी के सार्वजनिक होने के लगभग तुरंत बाद गिरावट शुरू हो गई.
बेशक, AI केवल तकनीकी क्षेत्र में नौकरियों को प्रभावित नहीं करने वाला है. यह हर क्षेत्र में इंसानों की जगह ले लेगा.
फाइनेंस सबसे बुरी तरह प्रभावित होगा. ब्लूमबर्ग के एक हालिया सर्वे में भविष्यवाणी की गई है कि अगले कुछ वर्षों में वॉल स्ट्रीट पर 200,000 नौकरियां खत्म हो सकती हैं. पिछला सिटी सर्वे और भी अधिक निराशावादी है. यह भविष्यवाणी करता है कि AI बैंकिंग और फाइनेंस में आधे से अधिक नौकरियां खा जाएगा.
यह, फिर से, भारत के मीडिल क्लास के लिए बुरी खबर है, क्योंकि वित्तीय क्षेत्र व्हाइट कॉलर वेतनभोगी नौकरियों का दूसरा बड़ा प्रदाता है. यही कारण है कि मीडिल क्लास के छात्रों द्वारा फाइनेंस की डिग्री सबसे अधिक मांग वाली है. यह तीन दशकों से समृद्धि का पासपोर्ट रहा है.
युवा अधिक समय तक अपने माता-पिता के घर में रहेंगे. वे विवाह में देरी करेंगे, और यदि वे विवाह करते हैं, तो उनके कम बच्चे होंगे. मानसिक स्वास्थ्य खराब रहेगा. निराशाएं बढ़ेंगी और वे शानदार और तर्कहीन सार्वजनिक विस्फोटों में दिखाई देंगी.
शायद, इस सब से कुछ पॉजिटिव बातें भी सामने आएगी.
लेकिन हम, मीडिल क्लास को, सूरज के फिर से चमकने से पहले, अंधेरे समय के लिए तैयार रहना होगा.
(लेखक एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट के सीनियर मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं. उनका एक्स हैंडल @Aunindyo2023 है. यह एक ओपिनियन पीस है. ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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