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PM Modi के अमेरिका दौरे से रक्षा क्षेत्र को मजबूती, ड्रोन और जेट इंजन पर डील अहम

PM Modi US Visit: ​​रक्षा सौदे में सबसे बड़ी उपलब्धि जेट इंजन के मैन्युफैक्चरिंग की जानकारी के ट्रांसफर पर समझौता है

Commodore C Uday Bhaskar (retd)
नजरिया
Published:
<div class="paragraphs"><p>अमेरिका के साथ समझौते से भारत के सुरक्षा क्षेत्र में आएगी मजबूती </p></div>
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अमेरिका के साथ समझौते से भारत के सुरक्षा क्षेत्र में आएगी मजबूती

(फोटो-क्विंट हिंदी)

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अमेरिका यात्रा कूटनीतिक प्रोटोकॉल से सजी और मीडिया के लिए बहुत आकर्षण थी. सच्चाई तो यह है कि वह उन चंद विश्व नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने अमेरिकी कांग्रेस को दो बार संबोधित किया है, और यह उनके राजनैतिक कद का सबूत है. पीएम मोदी की यह सफल यात्रा साबित करती है कि वॉशिंगटन भारत की विश्वव्यापी कूटनीतिक संरचना की प्रासंगिकता अच्छी तरह से समझता है जोकि कोविड-19 महामारी और यूक्रेन युद्ध, दोनों से प्रभावित हुई है.

रक्षा क्षेत्र पर जोर

पीएम मोदी की यात्रा के आखिरी में 22 जून को जारी संयुक्त बयान काफी बड़ा है. यह 58 पैराग्राफ और 6465 शब्दों का है. जैसा कि अंदाजा था, बयान के शुरुआती हिस्से में रक्षा क्षेत्र पर काफी विस्तार से चर्चा है. हर पैराग्राफ में क्वाड्रिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग या क्वाड का जिक्र है, जो बाइडेन-मोदी शिखर सम्मेलन को प्रासंगिक आधार प्रदान करता है.

इसमें कहा गया है कि हमारा सहयोग वैश्विक हित में काम करेगा क्योंकि हम एक स्वतंत्र, खुले, समावेशी और लचीले भारत-प्रशांत की दिशा में योगदान देने के लिए कई बहुपक्षीय और क्षेत्रीय समूहों- विशेष रूप से क्वाड- के माध्यम से काम करते हैं.

जहां तक रक्षा सौदों की बात है तो सबसे बड़ी उपलब्धि जेट इंजन मैन्यूफैक्चरिंग की जानकारी के हस्तांतरण से संबंधित है और दोनों नेताओं ने “भारत में जीई एफ-414 जेट के निर्माण के लिए जनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. ये इंजन हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट एमके 2 के लिए होंगे. भारत में एफ-414 इंजन बनाने की इस अग्रणी पहल से अमेरिकी जेट इंजन तकनीक का हस्तांतरण पहले से काफी ज्यादा होगा.”

एक और इन्वेंट्री आइटम है जिस पर बैठक के दौरान चर्चा हुई. वह अमेरिका की तरफ से सशस्त्र ड्रोन की सप्लाई है. इस पर पहले विचार किया गया था लेकिन टेक्नोलॉजी ट्रांसफर से जुड़े कुछ क्लॉज पर समझौता न होने के कारण यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था.

मोदी की यात्रा की वजह से 3 अरब डॉलर कीमत के 31 एमक्यू-9बी सशस्त्र ड्रोन की सरकार-से-सरकार या जी2जी सप्लाई का समझौता मुमकिन हुआ है. 

भारत-अमेरिकी द्विपक्षीय संबंधों का इतिहास

हरेक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन पिछले दशकों में हुई प्रगति पर आधारित होता है और भारत-अमेरिका रक्षा संबंध इसका उदाहरण है. शीत युद्ध के बाद 'रंजिशजदा' भारत-अमेरिका साझेदारी की नींव 1990 के दशक की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने रखी थी. आर्थिक उदारीकरण उसका आधार था. इसके बाद 1998 में प्रधानमंत्री वाजपेयी की अगुवाई में परमाणु परीक्षणों ने इसे रफ्तार दी थी.

हालांकि अमेरिका इस पर नाराज और गुस्सा दोनों था कि भारत परमाणु परीक्षण कर रहा है, लेकिन भारत ने एशियाई संरचना में अपने कूटनीतिक हितों की रक्षा के लिए जो संकल्प लिया था, उसके कारण धीरे-धीरे दोनों देशों के बीच मेल-मिलाप हुआ. 2000 की शुरुआत में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन का भारत दौरा इसका सबूत था. उन्होंने भारतीय संसद को संबोधित किया, और लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया, यह भी उस 'मनमुटाव' के खत्म होने का प्रतीक था.

इन द्वपक्षीय संबंधों में बड़ा बदलाव 2005-08 के दौरान आया, जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2008 के आखिर में राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के साथ परमाणु मुद्दे पर ऐतिहासिक समझौता किया. यह मसला लंबे समय से विचाराधीन था. इसके बाद दोनों देशों के संबंधों में नया मोड़ आया- जिन दो ‘लोकतांत्रिक’ देशों के बीच हमेशा छत्तीस का आंकड़ा रहता था, वे धीरे धीरे दोस्त बन रहे थे, और अब यह दोस्ती और मजबूत होने लगी.

वॉशिंगटन में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने बयान में इस बात को माना कि इस द्विपक्षीय संबंध को मौजूदा स्तर तक लाने में भारत और अमेरिका के पूर्व नेताओं का बड़ा योगदान है लेकिन रक्षा क्षेत्र के संबंध में यह भी कहा: "असल में, हम सदी के अंत में रक्षा सहयोग के मामले में अजनबी थे. अब अमेरिका हमारे सबसे महत्वपूर्ण रक्षा साझेदारों में से एक बन गया है.”

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तकनीकी सहयोग

2009 (ओबामा के कार्यकाल संभालने) के बाद से अमेरिका भारतीय सेना की रसद का बड़ा सप्लायर बन गया है और भारत ने लगभग 20 बिलियन USD की कीमत वाले आधुनिक उपकरण और प्लेटफॉर्म हासिल किए हैं. इनमें समुद्री टोही विमान, भारी लिफ्ट परिवहन विमान (सी 130 जे हरक्यूलिस), हेलीकॉप्टर (अपाचे और चिनूक), और हल्के 155 मिमी हॉवित्जर (एम 777) शामिल हैं.

हालांकि अगले कुछ वर्षों में जेट इंजन (एफ-414) और ड्रोन के निर्माण की योजनाओं का स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन असली महत्व हाई टेक सहयोग का है. अमेरिकी कांग्रेस के संबोधन में मोदी ने जोर देकर कहा: "21वीं सदी में तकनीक ही सुरक्षा, समृद्धि और नेतृत्व का निर्धारण करेगी" और इस क्षेत्र में अमेरिका के प्राइवेट सेक्टर के साथ कई तरह साझेदारियां की गई हैं.

इस संयुक्त बयान में यह भी कहा गया है कि कई दूसरे क्षेत्रों में भी सहयोग की जरूरत है, लेकिन बड़ी बात यह है कि नई तकनीक पर खास जोर दिया गया है जो भारत की सैन्य क्षमता बढ़ाएगी.

दोनों नेताओं ने "समुद्री सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने के अपने संकल्प को दोहराया, जिसमें अंतर्जलीय जागरूकता बढ़ाना भी शामिल है और अंतरिक्ष और एआई सहित नए रक्षा क्षेत्र में संवाद शुरू करने का स्वागत किया, जो क्षमता निर्माण, ज्ञान और विशेषज्ञता को बढ़ाएगा."

महत्वपूर्ण तकनीकों में द्विपक्षीय सहयोग और भारतीय मानव संसाधन के प्रशिक्षण के लिए नए प्रोटोकॉल विकसित किए गए हैं और रक्षा क्षेत्र के मैन्यूफैक्चरर्स के साथ संवाद भी बढ़ाया गया है. जबकि बाइडेन-मोदी ब्लूप्रिंट में जो परिकल्पना की गई है, उसे अमली जामा पहनाए जाने की पूरी उम्मीद है, जैसे कि भारत की मुख्य सैन्य क्षमताओं को लगातार बढ़ाया जाए. विशेष रूप से सीमा पार से जुड़े क्षेत्र में, लेकिन दिल्ली यानी पीएमओ को यह पक्का करना होगा कि परंपरागत रुकावटों और ‘इतिहास की दफ्तरशाही हिचकिचाहट’ को दूर किया जाए. 

संयुक्त बयान में जिन बड़े सपनों को साकार करने की बात कही गई है, भारत उसके लिए किस हद तक जमीन तैयार कर पाता है, इसी से वह अपने सुरक्षा हितों की हिफाजत करने के काबिल होगा और ‘टकराव के काले बादल छंटेंगे’, जैसा कि मोदी ने कहा था.

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के डॉन प्रोफेसर आरोग्यस्वामी जे पॉलराज और मार्कोनी पुरस्कार विजेता (दूरसंचार में नोबेल पुरस्कार के बराबर) ने कहा कि आज एक मजबूत वाणिज्यिक तकनीकी आधार, एक स्थायी उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी उद्योग के निर्माण की अनिवार्य शर्त है. इसलिए भारत का मकसद, सबसे पहले सेमीकंडक्टर और कमर्शियल जेट जैसे उन्नत तकनीकी विनिर्माण उद्योगों में प्रवेश करना और सफलतापूर्वक प्रतिस्पर्धा करना है. इन उद्योगों में कई तरह की रुकावटें हैं. जैसे आरएंडडी, इनोवेशन और आईपी इंटेंसिटी. इसलिए इन क्षेत्रों में कामयाबी हासिल करने के लिए भारत को विश्व स्तरीय आधारभूत आरएंडडी इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा और अमेरिका में शानदार रिसर्च यूनिवर्सिटीज और लैब हैं, इसीलिए वह भारत के लिए असरदार पार्टनर बन सकता है.

अब गेंद भारत के पाले में है और दिल्ली को देखना होगा कि वह इस डगर को और आसान बना सकती है.

(सोसाइटी फॉर पॉलिसी स्टडीज के निदेशक सी उदय भास्कर को तीन थिंक टैंक का नेतृत्व करने का गौरव प्राप्त है. वह पहले नेशनल मैरीटाइम फाउंडेशन (2009-11) और इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (2004-05) में निदेशक थे. वह @theUdayB पर ट्वीट करते हैं. यह एक ओपीनियन पीस है, ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. द क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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