Members Only
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019 येदियुरप्पा का कद कम करने में लगा बीजेपी आलाकमान,वजह क्या है?

येदियुरप्पा का कद कम करने में लगा बीजेपी आलाकमान,वजह क्या है?

बीजेपी में कब शुरू हुई येदियुरप्पा की अनदेखी?

अरुण देव
नजरिया
Updated:
कर्नाटक  में येदियुरप्पा का कद कम करने में लगा बीजेपी आलाकमान?
i
कर्नाटक में येदियुरप्पा का कद कम करने में लगा बीजेपी आलाकमान?
(फोटो: Altered by The Quint)

advertisement

कर्नाटक में, अब यह कोई रहस्य नहीं है कि बीजेपी आलाकमान मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को पार्टी से जुड़े फैसले लेने में रोक रहा है. इसी तरह, यह बात भी अटकलों का विषय नहीं रही कि बीएल संतोष की अगुवाई वाला आरएसएस गुट राज्य में पार्टी पर अहम नियंत्रण हासिल कर रहा है.

बीजेपी आलाकमान ने - जहां कर्नाटक से येदियुरप्पा के प्रतिद्वंद्वी बीएल संतोष राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) का एक शीर्ष पद रखते हैं - 19 जून को राज्यसभा चुनाव के लिए येदियुरप्पा की तरफ से सुझाए गए तीनों नामों को खारिज कर दिया, जिससे कर्नाटक बीजेपी के बदलते समीकरण साफ दिखाई देते हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
यह बात बहुत से लोगों के लिए पेचीदा है कि आलाकमान ने येदियुरप्पा को दरकिनार करने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने की तत्काल कोई योजना नहीं बनाई है. ऐसे में सवाल उठता है- पार्टी आलाकमान इस अनदेखी के साथ क्या करने की कोशिश कर रहा है?

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी को लगता है कि येदियुरप्पा जैसे लोकप्रिय नेता को हटाने का फैसला बैकफायर कर सकता है. ऐसे में, आलाकमान इस लिंगायत नेता की राजनीतिक प्रासंगिकता को धीरे-धीरे दूर होने की तरफ देख रहा है.

अपमान की रणनीति

कर्नाटक बीजेपी में, येदियुरप्पा एक मात्र ऐसे नेता हैं, जिनको मास लीडर माना जाता है. उन्हें लिंगायत समुदाय का समर्थन हासिल है, जिसके पास राज्य के वोट शेयर का लगभग 14 फीसदी हिस्सा है.

यह साबित करने के लिए भी ऐतिहासिक सबक हैं कि लिंगायत नेता को हटाने की जल्दबाजी राजनीतिक तौर पर नुकसानदेह साबित हो सकती है. लिंगायत समुदाय, जो कर्नाटक में बीजेपी का सबसे बड़ा वोट बैंक है, पहले कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता था.

1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लिंगायत मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटिल को सत्ता से हटा दिया था. इस फैसले के नतीजे के तौर पर कांग्रेस से लिंगायत वोटों का पलायन हो गया. विलय, विभाजन और गठबंधन की एक श्रृंखला के बाद, यह वोट बैंक बीजेपी के साथ जुड़ गया और 2000 के दशक की शुरुआत में येदियुरप्पा इसका चेहरा बन गए.

इतिहास से एक संकेत लेते हुए, एक बार में येदियुरप्पा को हटाने के बजाए, आलाकमान अपमान के सिलसिला का इस्तेमाल करके येदियुरप्पा की पावर को धीमा कर रहा है. इसका मकसद उन्हें धीरे-धीरे एक कमजोर नेता के तौर पर दिखाना है.

कब शुरू हुई येदियुरप्पा की अनदेखी?

जेडीएस-कांग्रेस सरकार के गिरने के बाद ही येदियुरप्पा को अनदेखा करने की शुरुआत हो गई थी. कुमारस्वामी सरकार ने 23 जून को विश्वास मत गंवा दिया था, मगर बीजेपी आलाकमान ने येदियुरप्पा को 26 जून तक शपथ लेने के लिए अनुमति नहीं दी थी.

केंद्रीय हाई कमान से कैबिनेट की अनुमति मिलने के लिए उन्हें 25 और दिन तक इंतजार करना पड़ा, हालांकि राज्य तब विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहा था. इन 25 दिनों के दौरान, उन्होंने अमित शाह से मिलने के लिए दिल्ली की कई यात्राएं कीं, मगर उनकी बात नहीं सुनी गई.

पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक, कई बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी नहीं सुनी. जनवरी में स्थिति ऐसी हो गई कि येदियुरप्पा ने तुमकुर में एक पब्लिक मीटिंग में प्रधानमंत्री से फंड की मांग की क्योंकि वह उनकी कर्नाटक यात्रा के दौरान प्राइवेट मीटिंग नहीं कर सके.

येदियुरप्पा ने अपने भाषण के दौरान कहा, "मैंने इसे तीन या चार बार प्रधानमंत्री के संज्ञान में लाया है, लेकिन अब तक कोई अतिरिक्त राहत मंजूर नहीं की गई है. मैं हाथ जोड़कर इसे जल्द जारी करने का अनुरोध करता हूं."

येदियुप्पा को अनदेखा करने का सिलसिला यहीं नहीं थमा. वह अपने दो करीबियों उमेश कट्टी और अरविंद लिंबावली को राज्य मंत्रिमंडल में शामिल करना चाहते थे. उनके नामों पर लगभग मुहर लग ही गई थी, हालांकि पार्टी हाई कमान ने आखिरी समय में इन नामों को हटा दिया.

लोकसभा चुनाव के दौरान, येदियुरप्पा पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार की पत्नी तेजस्विनी को बेंगलुरु दक्षिण से चुनाव लड़ाना चाहते थे. उन्होंने यहां तक कह दिया था कि वह पार्टी की पसंद हैं. हालांकि, रातोंरात, आरएसएस समर्थित उम्मीदवार तेजस्वी सूर्या को टिकट दे दिया गया.

इसी तरह, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए अरविंद लिंबावली की जगह आरएसएस समर्थित उम्मीदवार नलिन कुमार को चुन लिया गया.

बेंगलुरु के मेयर के चुनाव के दौरान, कई दौर की बैठकों के बाद येदियुरप्पा के करीबी पद्मनाभ रेड्डी को अपना नामांकन वापस लेना पड़ा.

ताजा मामले में कर्नाटक से बीजेपी के राज्यसभा उम्मीदवारों की लिस्ट शामिल है। येदियुरप्पा ने प्रभाकर कोरे, रमेश कट्टी और प्रकाश शेट्टी के नामों का सुझाव दिया था, लेकिन जब अंतिम लिस्ट आई, तो पार्टी के उम्मीदवारों में अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय एरना कदीदी और अशोक गस्ती शामिल थे, जो आरएसएस गुट की पसंद थे.

येदियुरप्पा के एक करीबी ने पहचान उजागर न करने की शर्त पर कहा, ''अगर आप यूपी, गुजरात या किसी बड़े राज्य में मुख्यमंत्रियों को देखते हैं, तो मुख्यमंत्री हाईकमान के लिए एक यस मैन है, और अगर उसे बदला जाता है, तो कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी. लेकिन यहां उन्हें पता है कि येदियुरप्पा एक राजनीतिक शक्ति केंद्र हैं और आरएसएस को यह पसंद नहीं है.''

Become a Member to unlock
  • Access to all paywalled content on site
  • Ad-free experience across The Quint
  • Early previews of our Special Projects
Continue

Published: 13 Jun 2020,08:21 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT