Members Only
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Opinion Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019SCO समिट की मेजबानी:चीन,इंटरनेशनल चुनौतियों से सामना करने का मंच  

SCO समिट की मेजबानी:चीन,इंटरनेशनल चुनौतियों से सामना करने का मंच  

मास्को में, महामारी की समस्या से निपटने के लिए भारत, चीन और रूस के हित एक समान नजर आए.

P Stobdan
नजरिया
Published:
(फोटो: क्विंट)
i
null
(फोटो: क्विंट)

advertisement

भारत को एससीओ शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल इसके सिद्धांतों के साथ काम करने की मूल प्रतिबद्धता को बहाल करने में करना चाहिए.

शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) का वर्चुअल समिट भारत में हो रहा है, जिसमें चीन के प्रीमियर ली केकियांग भी शामिल हो रहे हैं. हैरानी की बात है कि इसमें शामिल होने के तीन साल के अंदर ही, भारत संस्था के सदस्य देशों के बेहतर समन्वय से काम करने की मांग कर रहा है इसके बावजूद कि केंद्र की सरकार एससीओ के चिर प्रतिद्वंद्वी अमेरिका से रणनीतिक करीबी बढ़ा रही है. भारत ने एससीओ की कई वार्षिक गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया सिर्फ इस साल के सैन्य अभ्यास “कावकाज 2020” को छोड़कर जिसके लिए महामारी से संबंधित कारणों का हवाला दिया गया.

भारत के लिए एससीओ की उपयोगिता

पिछले 20 सालों में एससीओ एक प्रभावी क्षेत्रीय शक्तिशाली संगठन नहीं बन सका है. लेकिन मौजूदा आर्थिक अनिश्चितता और चीन के खिलाफ माहौल को देखते हुए, एससीओ भारत के लिए वैश्विक मामलों में अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए एक उपयोगी मंच बना हुआ है.

एससीओ का घोषणापत्र कम टकराव वाला है और फैसले सहमति के आधार पर होते हैं. अपने प्रोफाइल और सौम्य छवि को ध्यान में रखते हुए भारत संस्था में हितों का संतुलन बनाए रखने के लिए उपयुक्त है. ये चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए अमेरिका के साथ भारत के संबंधों को संतुलित रखने का काम करता है.

स्वाभाविक तौर पर ये किसी के हित में नहीं है कि क्षेत्र को एक बार फिर बड़ी प्रतिद्वंद्विता का मैदान या आतंकवाद या चरमपंथ का केंद्र बनने दिया जाए. आतंकवादी नेटवर्क से लड़ाई की भारत की हर स्तर पर लगातार मजबूत आवाज का पूरे इलाके में सकारात्मक असर हो रहा है. रूस और चीन के संबंध में भी क्षेत्रीय स्वायत्तता को और मजबूत करने और बढ़ाने की जरूरत है.

पहला, भारत को शिखर सम्मेलन का इस्तेमाल, एससीओ के अपनी बुनियादी सिद्धांतों और घोषणापत्र के अनुपालन की मूल प्रतिबद्धता को फिर से बहाल करने में करना चाहिए जिसका कुछ सदस्य देश अपने द्विपक्षीय मुद्दों को बार-बार एजेंडा में लाकर खत्म कर रहे हैं.

कोविड 19 वैक्सीन पर भारत-चीन का साझा आधार

दूसरा, कोविड महामारी के बीच वैश्विक गवर्नेंस के नाटकीय रूप से कमजोर होने को देखते हुए भारत को एससीओ के मंच का इस्तेमाल अपने डेवलपमेंट मॉडल को बढ़ावा देने के लिए एक परीक्षण के तौर पर करना चाहिए.

दिलचस्प बात है कि 19वें एससीओ शिखर वार्ता में पीएम मोदी ने सहयोग का एक नया खाका पेश किया यानी स्वास्थ्य सेवा, आर्थिक सहयोग, वैकल्पिक ऊर्जा, साहित्य और संस्कृति, आतंकवाद मुक्त समाज और मानवीय सहयोग के क्षेत्र में.

महामारी के बाद की दुनिया में “आत्मनिर्भर भारत” बनाने के विजन का ये सब हिस्सा है. और अगर राष्ट्रीय क्षमता निर्माण की कोशिशों को आर्थिक बहुपक्षवाद के साथ मिला दिया जाए तो वो वैश्विक आर्थिक सुधारों के लिए क्षमता बढ़ाने वाला साबित हो सकते हैं.

इसके लिए दो बड़े देशों के बीच सत्ता की राजनीति की जरूरत नहीं है. भारत की कोविड 19 राहत कूटनीति सफल रही है. भारत के दवा उद्योग ने मानवता को बचाने के लिए 150 से ज्यादा देशों को जरूरी दवाएं मुहैया करा कर मदद की है.

अगले चरण में, टीकों के उत्पादन और वितरण में भारत की बड़ी भूमिका महामारी के बाद की विश्व व्यवस्था को आकार देगी. जहां तक एससीओ की बात है मध्य एशिया में स्वास्थ्य और महामारी संबंधित स्थिति को मजबूत करने के लिए भारत ने हाल ही में एक बिलियन अमेरिकी डॉलर तक देने का एलान किया है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

मास्को में, महामारी की समस्या से निपटने के लिए भारत, चीन और रूस के हित एक समान नजर आए. संयोग से पीएम मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग दोनों ने कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई में पारंपरिक चिकित्सा की खास उपयोगिता पर एक जैसा दृष्टिकोण साझा किया, इसलिए दोनों को एक-दूसरे से सीखने की जरूरत है.

जब राष्ट्रपति शी ने सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए एससीओ की एक संस्था बनाने की बात कही तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एससीओ की 20वीं वर्षगांठ को एससीओ सांस्कृतिक वर्ष के तौर पर मनाने का समर्थन किया जहां भारत सरकार अपनी वैश्विक बौद्ध विरासत का प्रदर्शन करेगी. ये नया है.

यूरेशिया में संभावनाओं की खोज

तीसरा, कुछ सदस्य देश यूरेशियन क्षेत्रीय तालमेल से भारत को बाहर रखने की बेकार की कोशिश कर रहे हैं. एक विचार जो अब तक चीन की ओर से अक्सर सुना जाता है, लेकिन इस बार पीएम मोदी ने भी शानदार ढंग से अतीत का उदाहरण दिया जब उन्होंने कहा कि “ भारत ने सदियों से यूरेशिया के साथ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध साझा किए हैं.” उन्होंने इस बात को भी याद दिलाया कि हमारे पूर्वजों ने अपने अथाह और लगातार संपर्कों से उन्हें जिंदा रखा.

स्पष्ट तौर पर जब यूरेशिया ने अतीत में भारतीय सभ्यता के वैश्वीकरण के लिए एक आधार की भूमिका निभाई है, नई दिल्ली को एक नई मंजिल मिली है-इस बार उस क्षेत्र से फिर से जुड़ाव, नई सामग्री के साथ.

बेशक, अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ-साऊथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर, चाबहार पोर्ट और अश्गाबात समझौते में काफी निवेश करने के बाद भू-राजनीतिक बाधाओं के सामने आने के बाद भी इस बात की संभावना कम है कि भारत क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की अपनी महत्वाकांक्षाओं को छोड़ देगा.

लेकिन इसके अमल में लाए जाने के लिए, पीएम मोदी ने सदस्य देशों से एक-दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने के एससीओ के मूल सिद्धांतों का पालन करने के लिए कहा.

दिलचस्प है कि कोविड 19 के दौरान जब विदेश से लोग अपने देश को लौट रहे थे तभी भारतीय नागरिक विमानन उद्योग को यूरेशिया में एक संभावित बड़े बाजार का पता चला जो अबतक छुपा हुआ था. ऐसा लग रहा है कि भारतीय विमान उद्योग अब यूरेशिया के बाजार के लिए ट्रैफिक रूट (एयर कॉरिडोर) और कार्गो नेटवर्क का पोर्टफोलियो तैयार कर रहा है जो अफगानिस्तान के उत्पादों को नई दिल्ली और मुंबई लाने के समान ही है.

चौथा और अहम, खोए हुए अवसर के तीस साल के अंतराल के बाद, नई दिल्ली एससीओ एजेंडा के तहत इस क्षेत्र के साथ एक व्यापक और आर्थिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के बारे में गंभीर दिखाई देती है.

भारत ने पहले ही एसीओ देशों को सलाह दी है कि वे व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए अपनी आर्थिक ताकत का लाभ उठाने के लिए एक आह्वान करें जो महामारी संकट से तेजी से आर्थिक सुधार सुनिश्चित करेगा.

हाल ही में, भारत ने ‘क्रिएटिविटी (रचनात्मकता), इनोवेशन (नई खोज) और डिसरप्शन (व्यवधान) पर आधारित अनूठे स्टार्टअप इकोसिस्टम को साझा करने की इच्छा दिखाई है जो एससीओ देशों के बीच आपसी इनोवेशन को प्रोत्साहन देने, व्यापार को बढ़ावा देने और बाजार तक पहुंच प्रदान करने में मदद करेगा.

वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए एससीओ के मंच का इस्तेमाल

पांचवां, महामारी के बीच वैश्विक गर्वनेंस की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता को कमजोर होते हुए भारत देख रहा है और इसलिए बहुपक्षीय संस्थाएं जैसे यूएन, डब्ल्यूटीओ और आईएमएफ में आमूल बदलावों वाले सुधारों की मांग कर रहा है.

इसलिए, एससीओ, जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसी दूसरी वैश्विक चुनौतियों को सामना करने के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिनपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है.

छठा, आतंकवाद, अवैध हथियारों के प्रसार, ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ भारत को पहले के जैसे ही आवाज उठाते रहना चाहिए. जैसा कि राष्ट्रपति शी ने भविष्यावाणी की थी आतंकवादी महामारी का इस्तेमाल व्यवधान, ज्यादा लोगों की भर्ती और चरमपंथी विचारधारा का प्रचार करने के लिए नए मौके की तलाश कर रहे होंगे.

अंत में, कोरोना वायरस के कारण शिखर वार्ता के दौरान द्विपक्षीय बैठक करने की एससीओ मंच की उपयोगिता अब नहीं रह गई है. प्रीमियर ली केकियांग की उपस्थित का इस्तेमाल चीन के साथ भारत के आर्थिक एजेंडा को फिर से परिभाषित करने में किया जाना चाहिए, खासकर अगर दोनों देश यूरेशिया में एक साझा एजेंडा तैयार कर सकें.

आश्वस्त होने के लिए और बयानबाजी से अलग, सदस्य देश द्विपक्षीय बातचीत करना जारी रखेंगे. स्वाभाविक रूप से नाजुक संगठन होने के कारण, रूस और चीन के हित अलग-अलग हैं. दूसरे देशों की स्थिति भी उनके हितों के हिसाब से बदलती रहती है.

इसलिए, मध्य एशियाई देशों को सहज तौर पर भारत से काफी उम्मीदें हैं जिसका भारत को द्विपक्षीय संबंध बनाने के लिए फायदा उठाना चाहिए. वो देश संवेदनशील और व्यावहारिक हैं. वे प्रदर्शन के मामले में भारत की तुलना चीन के साथ शुरू कर देंगे.

और कुछ नहीं तो एससीओ में शामिल होने के सीमित, तात्कालिक फायदों की भरपाई उनके साथ बेहतर द्विपक्षय सहयोग से हो जाएगी.

Become a Member to unlock
  • Access to all paywalled content on site
  • Ad-free experience across The Quint
  • Early previews of our Special Projects
Continue

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT