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कोरोना लॉकडाउन: प्रकृति हमें वो याद दिला रही, जो हम भूल चुके हैं

COVID-19 लॉकडाउन के बीच क्या है ‘प्रकृति माता का संदेश’

दिनेश त्रिवेदी
नजरिया
Updated:
COVID-19 लॉकडाउन के बीच क्या है ‘प्रकृति माता का संदेश’
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COVID-19 लॉकडाउन के बीच क्या है ‘प्रकृति माता का संदेश’
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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अब तक हममें से ज्यादातर लोग कोरोनावायरस महामारी को लेकर सोशल मीडिया के जरिए आ रहे ज्ञान से तंग आ चुके हैं. तो आखिरकार हम करने क्या जा रहे हैं? हममें से ज्यादातर लोग तथाकथित ज्ञान को डिलीट भर कर देते हैं और कोरोना से जुड़े हास्य-व्यंग्य को आगे बढ़ा देते हैं. उर्वरक भारतीय दिमाग इन सबका जनक है और उनमें से कई बहुत अच्छे भी होते हैं.

मगर पुरानी कहावत है कि हर बुराई में अच्छाई छिपी होती है. अंधकार जितना घना होता है सवेरा उतना साफ.

कोरोनावायरस के संकट ने हमें जिन्दगी की सीख दी है. कुछ ऐसी मानो सभी धार्मिक आख्यान और गुरुओं की सीख मिलकर भी इतनी प्रभावशाली शिक्षा नहीं दे पाती.

तो सबसे बड़ा शिक्षक कौन है? प्रकृति माता

प्रकृति माता का मौन संदेश क्या है?

“मैं अपना ख्याल खुद रख सकती हूं. मैंने तुम्हें अपने साथ अपने आसपास के जीवों के साथ सह अस्तित्व की आजादी दी, लेकिन तुमने अपनी सीमाएं तोड़ दीं और एक बुरे बच्चे की तरह बुरा व्यवहार किया.दशकों से दुनिया पांच सितारा होटलों के आरामदायक सम्मेलनों में केवल ग्लोबल वॉर्मिंग, वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, गंगा की सफाई आदि की चर्चा करती रही और काम ठीक उल्टा किया. इसलिए मैंने फैसला किया कि अपना इलाज खुद करूं और तुम्हें तुम्हारे घरों में बंद कर दूं.देखो, इतने कम समय में (कुछ दिनों में) तुम मेरे खेल को महसूस कर सकते हो. मां गंगा समेत नदियां अब पहले से ज्यादा साफ हैं, वातावरण पहले से बेहतर है. आकाश नीला दिखने लगा है और और सबसे ऊपर यहां तक कि आप सितारे भी देख सकते हैं.”

“पहली बार आप महसूस कर रहे हैं कि मैं शक्तिशाली हूं. आपने बंद दरवाजों की इमारतों में मुझ पर कब्जे की कोशिश की, जिसे आप मंदिर, चर्च, गुरुद्वारा, मस्जिद आदि कहते हैं और मेरे पास अपनी जरूरतों और लालच की वजह से केवल मोल-तोल के लिए आए.”

“दुनिया में ज्यादातर सत्ता के भूखे लोगों ने (जिनमें राजनीतिज्ञ भी शामिल हैं) मुझे सीमा में बांधने की कोशिश की. मुझे अलग-अलग धर्मों के नाम दिए और मेरा इस्तेमाल अपने ब्रैंड एम्बेस्डर के तौर पर किया. यह भी दावा किया कि केवल वही मेरी रक्षा कर सकते हैं और यह भूल गए कि मैं ही तुम सबकी रक्षा करती हूं और तुममें इतनी क्षमता नहीं कि मेरी रक्षा कर सको. लेकिन तुमने मेरे नाम पर शासन करना चाहा. इसलिए तुमने लोगों को एक-दूसरे से लड़ाया. एक बार फिर मेरे नाम पर दिग्भ्रमित किया.”

हमने अपने पवित्र ग्रंथों के मौन संदेशों पर ध्यान क्यों नहीं दिया?

“अब नतीजे देखो. राजनीतिक शक्तियों ने उन जगहों को भी बंद करने का निर्देश जारी किया है जहां उन्होंने मुझे बंद कर रखा है. इसे मंदिर, चर्च, मस्जिद आदि कहते हैं. आदेश में कहा गया है, “सभी धार्मिक स्थान बंद रहेंगे. कोई धार्मिक भीड़ या किसी प्रकार के जमावड़े की अनुमति नहीं होगी. कोई अपवाद नहीं होगा.” मेरा (प्रकृति का) खेल देखो.

“दुनिया के धार्मिक ग्रंथों के खामोश संदेशों में तुमने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई- चाहे वह वेद, उपनिषद, पवित्र बाइबिल, पवित्र कुरान या गुरु ग्रंथ साहिब हों या फिर इसी मकसद से अलग-अलग आस्थाओं से जुड़े संतों और ऋषियों की शिक्षाएं रही हों. यह संदेश था प्यार का, सबका ख्याल करने का, करुणा और पूरी दुनिया को ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की तर्ज पर एक परिवार मानने का.”

प्राचीन समय में वैदिक काल के दौरान जब धर्म संगठित नहीं था, लोग केवल प्रकृति के पांच तत्वों की पूजा किया करते थे- अग्नि, धरती, वायु, जल और अंतरिक्ष. इसी से जीवन चलता है. 

तो हम उस संदेश को ग्रहण करें जो प्रकृति ने हमें कोरोना के रूप में दिया है और हम अपने ऋषियों के ज्ञान की ओर लौटें जो निश्चित रूप से अपने समय के पीएचडी स्कॉलर रहे होंगे. उनमें से हजारों लोगों ने हजारों सालों तक अनुसंधान किया और उसका निष्कर्ष ही हम तक वेद के रूप में पहुंचा.(वेदों के कोई लेखक नहीं हैं)

प्रकृति हमारी वास्तविक रक्षक है

हम अपनी प्रकृति माता के पास चलें. कई सालों से सरकार ने गंगा की सफाई के प्रॉजेक्ट में लाखों रुपये खर्च किए हैं, लेकिन केवल कुछ दिनों में हम देख सकते हैं कि किस तरह मां गंगा अपने आप साफ हो गई हैं मानो वह हमसे कह रही हो, “मैं जानती हूं कि खुद को किस तरह साफ रखना है. मेरे पास ताकत और शक्ति है जब तक कि तुम मुझे प्रदूषित नहीं कर देते. यह बहुत आसान है!”

कोरोना महामारी के जरिए प्रकृति ने स्मरण कराया है कि हम तुच्छ हैं.

हम प्रकृति माता के आभारी रहें, जिन्हें इस संकट के रूप में हमें एक सीख देनी था. इस बारे में दुनिया के सभी ग्रंथों ने पहले से ही संकेत दे रखा था कि आखिरकार आपके भीतर ही धार्मिक स्थान है और यह कभी बंद नहीं होता जब तक कि आप खुद को बाहर नहीं कर लेते. और, कभी न सोचें कि आप प्रकृति के उपहार का हमेशा दुरुपयोग कर सकते हैं और आपको हर्जाना देना नहीं पड़ेगा. प्रकृति हमारी वास्तविक रक्षक है. इसलिए इसका सम्मान करें नहीं तो...

(दिनेश त्रिवेदी भारतीय राजनीतिज्ञ हैं और पश्चिम बंगाल से राज्यसभा में संसद के सदस्य भी. उनका ट्विटर हैंडल है @DinTri. यह उनके विचार हैं और क्विंट का इससे कोई सरोकार नहीं है.)

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Published: 28 Mar 2020,09:20 AM IST

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