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हरियाणा और महाराष्ट्र में शानदार जीत के बाद बीजेपी को उम्मीद है कि वह दिल्ली में अपनी किस्मत बदल लेगी और पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल को उनके गढ़ में हरा देगी. दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 23 फरवरी 2025 को खत्म हो रहा है.
कथित शराब घोटाले में गिरफ्तारी और फिर रिहाई के बाद अरविंद केजरीवाल को सहानुभूति लहर और सत्ता समर्थक वोट पर सवार होकर रिकॉर्ड तीसरा कार्यकाल जीतने की उम्मीद है.
दूसरे राज्य भी इसी तरह का पैटर्न दिखाते हैं लेकिन जिस हद तक विभाजित वोटिंग यहां दिखती है, वो कहीं और दिखाई नहीं देती है. 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में, दिल्ली ने बीजेपी को 7-0 का स्पष्ट जनादेश दिया, लेकिन 2015 और 2020 में एक साल के भीतर हुए विधानसभा चुनावों में, दिल्ली के वोटरों ने AAP को प्रचंड बहुमत दिया, जबकि बीजेपी दोहरे अंक में सीटें जीतने में भी नाकाम रही.
इसी ट्रेंड को जारी रखते हुए, वोटिंग से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल की जेल से रिहाई के बावजूद, बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सात सीटों पर जीत हासिल की. AAP, जिसने कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था, किसी भी सहानुभूति को भुनाने में विफल रही और एक भी सीट नहीं जीत सकी.
विधानसभा में बढ़त के मामले में, बीजेपी 52 सीटों पर आगे रही, जबकि इंडिया ब्लॉक 18 सीटों (AAP 10, कांग्रेस 8) पर आगे रही.
हरियाणा की जीत की तरह ही महाराष्ट्र में मिली जीत दिल्ली बीजेपी के कैडर और राज्य नेतृत्व के मनोबल को बढ़ा रही है. लगातार दस साल का कार्यकाल किसी भी राज्य सरकार के खिलाफ स्वाभाविक सत्ता विरोधी लहर पैदा करता है, और अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली AAP सरकार भी इससे अलग नहीं है.
AAP के कई विधायक अपने दूसरे या तीसरे कार्यकाल में हैं, जिससे दोहरी सत्ता विरोधी लहर पैदा हो रही है. मुफ्त बिजली/पानी को भी जितना असर दिखाना था, उसने दिखा दिया है.
AAP इस चुनाव को राष्ट्रपति-शैली का मुकाबला बनाना चाहेगी, लेकिन सच्चाई यह है कि इस साल राज्य चुनाव (जम्मू-कश्मीर, झारखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र) बहुत अधिक स्थानीय रहे हैं, स्थानीय मुद्दों पर लड़े गए हैं जहां सूक्ष्म प्रबंधन (माइक्रो मैंनेजमेंट) महत्वपूर्ण हो जाता है. यहां तक कि इस साल कुछ राज्यों जैसे यूपी, राजस्थान और महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव भी स्थानीय हो गए थे.
जून में लगे झटकों के बाद, बीजेपी ने दिखाया है कि वह इस अति-स्थानीय चुनावों को मैनेज करना जानती है. उसने हरियाणा और महाराष्ट्र में यह करके दिखाया है.
दिल्ली में बीजेपी इकाई भारत में सबसे कमजोर इकाइयों में से एक है और उसके पास AAP के खिलाफ स्वाभाविक सत्ता विरोधी लहर तथा हरियाणा और महाराष्ट्र में पार्टी की जीत के बाद पैदा मोमेंटम का फायदा उठाने की क्षमता नहीं है.
यह रणनीति बनाने और प्रचार के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित अमित शाह पर बहुत अधिक निर्भर है. उसके पास केजरीवाल की बराबरी का कोई ऊंचे कद का नेता नहीं है. इसने मनोज तिवारी (पूर्वांचली), आदेश गुप्ता (बनिया) और वीरेंद्र सचदेवा (पंजाबी खत्री) जैसे कई चेहरों को आजमाया है, लेकिन इनमें से कोई भी प्रभाव पैदा नहीं कर सका.
फ्रीबीज की राजनीति आजकल केंद्र में है. महाराष्ट्र में बीजेपी की जीत और झारखंड में जेएमएम की जीत में महिलाओं के लिए कैश स्कीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. ऐसे में केजरीवाल को बढ़त हासिल है जिन्होंने गरीबों के लिए मुफ्त बिजली/पानी और मुफ्त शिक्षा और मोहल्ला क्लीनिक लागू किए हैं.
उन्होंने पीएम मोदी और बीजेपी की पहले की आलोचना को खारिज करते हुए AAP की कल्याणकारी पहलों के बचाव में कड़ा रुख अपनाया है. केजरीवाल ने खुले तौर पर स्वीकार किया है कि उनका राजनीतिक अभियान उन चीजों को प्रदान करने के इर्द-गिर्द घूमता है जिन्हें बीजेपी मुफ्त की रेवड़ी कहती है, उन्होंने जोर देकर कहा कि ये स्कीम लोगों के लिए आवश्यक हैं.
इसके अलावा AAP बेहतर तरीके से तैयार दिख रही है क्योंकि उसने पहले ही 11 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं.
(अमिताभ तिवारी एक स्वतंत्र राजनीतिक टिप्पणीकार हैं और उनका एक्स हैंडल (पहले ट्विटर) @politicalbaaba है. यह एक ओपिनियन है और ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है.)
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