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तमिलनाडु में हर दिन 12 घंटे ड्यूटी का बिल लाकर निरस्त क्यों किया गया?| Explained

Tamil Nadu 12-Hour Daily Work Factories Bill: DMK के गठबंधन सहयोगियों ने "मजदूर-विरोधी" बताकर विरोध किया था

साउंडरिया अथिमुथु
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>Tamil Nadu 12-Hour Daily Work Factories Bill</p></div>
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Tamil Nadu 12-Hour Daily Work Factories Bill


(फोटो: सौंदर्या अथिमुथु/द क्विंट)

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"इतिहास जानता है कि मजदूरों के शोषण को रोकने और आठ घंटे के कार्य दिवस को नियमित करने के लिए किस तरह का संघर्ष किया गया है. इसे 12 घंटे तक बढ़ाना अनिवार्य रूप से किसी गैरकानूनी चीज को कानूनी करने के बराबर है. यह मजदूरों के कल्याण में तमिलनाडु की रुचि के मोर्चे पर चिंतित करता है. यह एक राज्य के तौर पर हमें सदियों पीछे ले जाकर खड़ा करता है."
राजेश मधुबलन, तमिलनाडु के एक मजदूर

ट्रेड यूनियनों के कड़े विरोध के बीच, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मई दिवस, 1 मई को कारखानों के बिल को वापस लेने की घोषणा की. इससे पहले, विवादास्पद बिल ( Tamil Nadu 12-Hour Daily Work Factories Bill) की मदद से 1948 के कारखाना अधिनियम में संशोधन करने की कोशिश की गयी, जिसमें हर दिन आठ घंटे के कार्य दिवस के बजाय 12 घंटे के कार्य दिवस की अनुमति दी गई थी.

संशोधित बिल के अनुसार, जो अब होल्ड पर है, DMK सरकार ने पहले कहा था कि श्रमिकों के लिए एक सप्ताह में काम के कुल घंटे नहीं बदलेंगे. हालांकि, उनके पास सप्ताह में चार दिन काम करने और तीन दिन की छुट्टी लेने का विकल्प होगा.

"यह प्रति सप्ताह 48 घंटे काम करने के बारे में नहीं है, यह प्रति दिन आठ घंटे काम करने का अधिकार पाने की कठिन जीत के बारे में है!"
वी शंकर, अध्यक्ष, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (AICCTU)

एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार के प्रस्ताव को ट्रेड यूनियनों, विपक्षी दलों और यहां तक ​​कि कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम, विदुथलाई चिरुथिगल काची और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग सहित डीएमके सहयोगियों द्वारा 'मजदूर विरोधी' कदम के रूप में घोषित किया गया था.

संशोधित विधेयक में प्रस्तावित बदलाव क्या थे?

द क्विंट से बात करते हुए ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (AICCTU) के प्रेसिडेंट वी शंकर ने कहा कि फैक्ट्रीज एक्ट में संशोधन का जो प्रस्तावित रखा गया था, वह राज्य सरकार को कुछ उद्योगों को फैक्ट्री अधिनियम की धारा 51, 52, 54, 55, 56 और 59 लागू करने से छूट देने का अधिकार देता. तमिलनाडु सरकार ने कारखानों अधिनियम, 1948 में एक नई धारा 65A शामिल करने का भी प्रस्ताव दिया था, ताकि कारखानों को काम के लचीले घंटे करने की शक्ति मिल सके.

फैक्ट्री अधिनियम के जिन सेक्शन में छूट मिलने की संभावना थी, वे मुख्य रूप से एक दिन में काम के घंटे, एक दिन में फैले काम के घंटे और ओवरटाइम काम से संबंधित थे.

  • सेक्शन 51 किसी भी सप्ताह में 48 घंटे से अधिक काम करने को प्रतिबंधित करता है.

  • सेक्शन 52 रविवार को साप्ताहिक अवकाश बनाता है.

  • सेक्शन 54 में एक दिन में नौ घंटे के काम की सीमा है, जिसमें दोपहर का भोजन और चाय का ब्रेक शामिल है.

  • सेक्शन 55 का कहना है कि श्रमिकों को बिना ब्रेक के पांच घंटे से अधिक काम करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

  • सेक्शन 56 10.5-घंटे से अधिक के काम को फैलाने की अनुमति नहीं देता है.

  • सेक्शन 59 एक सप्ताह में नौ घंटे से अधिक और 48 घंटे से अधिक किए गए ओवरटाइम कार्य के लिए अतिरिक्त वेतन के बारे में बात करता है.

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संशोधित विधेयक का विरोध क्यों किया गया?

ट्रेड यूनियन प्रमुख ने आरोप लगाया कि संशोधन अनिवार्य रूप से एक श्रम-विरोधी कदम था, जिसने कई संघर्षों और बलिदानों के माध्यम से मेहनतकश वर्ग द्वारा जीते गए अधिकारों को छीनने की कोशिश की गयी.

उन्होंने यह भी कहा कि संशोधन निर्देशक सिद्धांतों के संविधान की धारा 39 (ई) का उल्लंघन था, जो कामकाजी आबादी के स्वास्थ्य की रक्षा करने की आवश्यकता के बारे में बात करता है. यह सामाजिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ था. उन्होंने आगे कहा कि सामाजिक न्याय केवल आरक्षण तक ही सीमित नहीं है, इसमें कामकाजी आबादी के सभी अधिकार शामिल हैं.

शंकर ने कहा:

"आठ घंटे के काम के लिए कानून बनाने के लिए, कम्युनिस्ट नेता सिंगारवेलर ने 1923 में चेन्नई मरीना बीच में देश में पहली बार मई दिवस का झंडा फहराया था. देश में पहला ट्रेड यूनियन भी उनके द्वारा चेन्नई में बनाया गया था. उन्हें अंग्रेजों द्वारा जेल में डाल दिया गया और निर्वासित कर दिया गया."

हालांकि, DMK खुद ऐसे राज्य से है, जिसने कई श्रमिकों के आंदोलनों को देखा है और वह एक ऐसी पार्टी है जो सामाजिक न्याय की बात करती है. वी शंकर का आरोप है कि जब राज्य सरकार ने बिल वापस लेने की घोषणा करने से पहले संशोधित बिल पारित किया, तो श्रमिक वर्ग के साथ अन्याय हुआ.

विधेयक से संभावित रूप से किसे लाभ हुआ होता?

वी शंकर के अनुसार विधेयक को वापस लेने से पहले डीएमके सरकार का तर्क था कि इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों से निवेश को आकर्षित करके राज्य को लाभ होगा. शंकर ने कहा कि बिल स्पष्ट रूप से मुनाफा कमाने वाले कॉरपोरेट दिग्गजों के लिए फायदेमंद था. उन्होंने कहा, "राज्य सरकार ने बहुराष्ट्रीय निगमों को लुभाने की कोशिश में अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों श्रमिकों और दलितों के जीवन और अधिकारों को नष्ट करने की कोशिश की."

वकील संजय घोष ने कहा, "लंबे समय तक काम करने के साथ उत्पादकता बढ़ाने के तर्क के साथ एक लागत पहलू जुड़ा हुआ है क्योंकि श्रमिकों को हर बार ओवरटाइम काम करने के लिए अतिरिक्त भुगतान करने की आवश्यकता होती है."

वी शंकर ने आगे कहा कि संशोधन का श्रमिकों की कमाई, स्वास्थ्य, आजीविका और मनोबल पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा क्योंकि यह लाभ के भूखे और लालची कॉर्पोरेट्स की रक्षा करता है.

हालांकि, ट्रेड यूनियनों ने अब राहत व्यक्त की है और कहा है कि फैक्ट्री बिल के कार्यान्वयन को रद्द करने का सरकार का निर्णय एक स्वागत योग्य कदम है.

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