Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Hindi Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019"नॉन-NET रिसर्च स्कॉलरशिप के लिए 8 हजार का स्टाइपेंड काफी नहीं"

"नॉन-NET रिसर्च स्कॉलरशिप के लिए 8 हजार का स्टाइपेंड काफी नहीं"

2006 में 5,000 रुपये प्रति माह से शुरू की गई फेलोशिप को 2012 में बढ़ाकर 8000 रुपये प्रति माह कर दिया गया. तब से यूजीसी ने इसमें कोई बदलाव नहीं किया है.

Mashqoor Alam
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>"नॉन-NET रिसर्च स्कॉलरशिप के लिए 8 हजार का स्टाइपेंड काफी नहीं"</p></div>
i

"नॉन-NET रिसर्च स्कॉलरशिप के लिए 8 हजार का स्टाइपेंड काफी नहीं"

(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

वीडियो प्रोड्यूसर: माज़ हसन

वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा

यह निराशाजनक है जब आप देश की शिक्षा प्रणाली की मदद करने और देश को आगे ले जाने के लिए अच्छी रिसर्च करना चाहते हैं, लेकिन चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकते. मुख्य कारण यह है कि हमारा मासिक वजीफा यानी स्टाइपेंड केवल 8,000 रुपये है.

इस स्टाइपेंड में, क्या आप हमसे यानी गैर-NET रिसर्च स्कॉलर्स से अपनी रिसर्च करने, आवास, यात्रा और भोजन का आराम से इंतजाम करने की उम्मीद करते हैं?

यह मुमकिन नहीं है! हमारी रिसर्च को आगे बढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से फेलोशिप के रूप में, यह जीवित रहने का संघर्ष है.

मैं नैनोटेक्नोलॉजी में पीएचडी कर रहा हूं. जब हमें यूनिवर्सिटी के बाहर कुछ कैरेक्टराइजेशन (टेस्ट) करने होते हैं, तो हम आने-जाने का खर्चा उठाते हैं. कैरेक्टराइजेशन की लागत 1,000 रुपये से 4,000 रुपये तक होती है. यह काफी महंगा है. इसलिए, यदि हमारे पास एक महीने में करने के लिए आठ कैरेक्टराइजेशन हैं, तो हमारा सारा स्टाइपेंड केवल एक पेपर के कैरेक्टराइजेशन पर खर्च हो जाता है.

फंड की कमी के कारण स्कॉलर रिसर्च का टॉपिक छोड़ देते हैं

जेएनयू के पीएचडी स्कॉलर रणविजय ने मुझे बताया कि उन्हें आनंद मठ पर अपना शोध छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके पास कोलकाता जाने के लिए पैसे नहीं थे.

उन्होंने बताया, “हम अपने रिसर्च टॉपिक पर हमारे पास मौजूद फंड के आधार पर निर्णय लेते हैं. यदि हमारे पास पर्याप्त फंड है, तो हम अधिक व्यापक रूप से रिसर्च कर सकते हैं. चूंकि हमारे पास पर्याप्त पैसा नहीं है, हम उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके रिसर्च करते हैं. मेरा रिसर्च आनंद मठ पर था. मुझे फर्स्ट एडिशन की किताब की आवश्यकता थी, जो यहां उपलब्ध नहीं थी. मेरे गाइड ने मुझे कोलकाता जाने के लिए कहा, जहां मुझे वहां की लाइब्रेरी में किताब का फर्स्ट एडिशन मिल जाता. हालांकि, मेरे पास कोलकाता जाने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए मुझे यह रिसर्च टॉपिक छोड़ना पड़ा."

2006 में 5,000 रुपये प्रति माह की दर से शुरू की गई फेलोशिप को 2012 में बढ़ाकर 8000 रुपये प्रति माह कर दिया गया. तब से यूजीसी द्वारा इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

महिला स्कॉलर्स के लिए ज्यादा कठिन

रिसर्चर्स के लिए यह कठिन है, लेकिन महिला स्कॉलर्स के लिए यह और अधिक कठिन है. मेरी सहकर्मी काजल गुप्ता जेएनयू में पीएचडी स्कॉलर हैं. उन्होंने मुझे बताया कि कई महिलाएं रिसर्च में दाखिला लेती हैं लेकिन बाद में पढ़ाई छोड़ देती हैं.

“यदि स्टाइपेंड की राशि अधिक होती, तो महिलाएं वित्तीय स्थिरता को ध्यान में रखते हुए एडमिशन लेतीं. इसलिए, महिलाओं और छात्रों के लिए कम फेलोशिप राशि एक नकारात्मक पहलू है.”

जामिया की पीएचडी स्कॉलर तुबा फातिमा भी यही भावना व्यक्त करती हैं. उन्होंने कहा, “अगर सरकार महिलाओं की बढ़ती भागीदारी की उम्मीद करती है, तो उन्हें उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए. इस तरह के वित्तीय तनाव के कारण, उनके लिए अपने प्रोजेक्ट कार्य पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो गया है.”

मेरे साथ-साथ अन्य लोगों को भी लगता है कि सरकार को रिसर्चर्स का ख्याल रखना चाहिए.

रणविजय कहते हैं, “इस देश में केवल कुछ ही लोग रिसर्च करते हैं. अगर उन्हें रिसर्च करने के लिए पर्याप्त समर्थन नहीं मिलेगा, तो मुझे नहीं लगता कि इस देश में गुणवत्तापूर्ण रिसर्च हो पाएगा.''

(सभी 'माई रिपोर्ट' ब्रांडेड स्टोरी को क्विंट पर नागरिकों द्वारा भेजा जाता है. हालांकि प्रकाशन से पहले क्विंट द्वारा इसे जांचा जाता है, लेकिन ऊपर व्यक्त की गई रिपोर्ट और विचार नागरीक के हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT