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2010 की तुलना में, देश में केवल 23 अधिकृत रीसाइकलर काम कर रहे थे 2021 तक, यह संख्या बढ़कर 400 हो गई है. लेकिन इस संख्या के साथ ही बढ़ रहे हैं श्रमिकों के जीवन पर मुश्किलें. तस्वीरों के जरिए जानें ई-कचरा श्रमिकों के जीवन का हाल.
पूर्वी दिल्ली के बाहरी इलाके में स्थित- सीलमपुर एक डिजिटल कब्रिस्तान है. यह कब्रिस्तान एक हजार से ज्यादा श्रमिकों की आजीविका का साधन है जो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से सोना, चांदी, तांबा और टिन जैसी कीमती धातुओं को निकालने में हर दिन करीब 10-12 घंटे खर्च करते हैं.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
पुरुषों और महिलाओं के अलावा, विभिन्न आयु वर्ग के बच्चे भी इस बाजार में श्रम शक्ति का हिस्सा हैं. भारत सरकार की रिपोर्ट के अनुसार, भारत सालाना 3 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न करता है, जिसमें राष्ट्रीय राजधानी का योगदान 2.2 लाख टन है. इस कुल कचरे में से, एक चौथाई कचरे का निपटान भारत के सबसे बड़े ई-कचरा बाजार सीलमपुर में किया जाता है.
फोटो में: एक लड़की कचरे में उन समानों को ढूंढ रही है जो काम लायक हो.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
एक किशोर लड़का जो कंक्रीट के फर्श पर जमा ई-कचरे के ढेर के जरीए गुमनामी की चाहत करता है, अपने कंधे पर प्लास्टिक की थैली लटकाए उसने हल्के स्वर में बुदबुदाया, यह स्कूल बैग होना चाहिए था. उसने कहा, "मैं यहां बाजार में काम करता हूं, इस कबाड़ से कुछ उपयोगी चीजें इकट्ठा करता हूं और दिन खत्म होने पर उसे बेच देता हूं." एक गहरी सांस लेते हुए, उसने आगे कहा, "यह एक मामूली रकम है, लेकिन बस यही है जो मैं अपनी मां के हाथों पर रखता हूं, क्योंकि हमारे परिवार में कोई और नहीं कमा सकता है. कचड़े के इस ढेर से कीमती धातुओं की खोज करते समय हमारे हाथ कट जाते हैं."
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
धूल के कणों से तांबे को अलग करने वाली महिलाओं ने भी एक ही बात कही. घूंघट से अपने मुंह को ढके इन औरतों ने बताया, "इस काम से सांस लेने में समस्याएं भी होती हैं"
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
श्रमिक कचरे से मूल्यवान धातुओं को निकालते हैं, और बचे हुए को या तो पास के जल निकायों में फेंक देते हैं या जला देते हैं, जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है.
फोटो में: ई-कचरा बाजार के आसपास, जल निकायों का दम घोंटते और स्थानीय लोगों के जिंदगी में खतरा बनते प्लास्टिक और ई-कचरे के ढेर.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
ई-कचरा उत्पादों में से, मोबाइल फोन, कंप्यूटर के पुर्जे, और एलसीडी टीवी, ट्यूब लाइट, प्रिंटर और घरेलू उपकरणों जैसे बिजली के उपकरणों सहित विभिन्न प्रकार के छोड़े गए इलेक्ट्रॉनिक कबाड़, सीलमपुर लाए जाते है जहां उन्हें गोदामों में इकट्ठा किया जाता है.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
ये श्रमिक न केवल हर दिन 300 रुपये की मामूली रकम कमाते हैं, बल्कि यह खतरनाक और खराब कामकाजी परिस्थितियों में भी काम करते हैं. वे अपनी आंखों की सुरक्षा के लिए किसी भी सुरक्षा उपकरण या चश्मे का इस्तेमाल नहीं करते हैं. यह लोग अक्सर ई-कचरे में हानिकारक जहरीले रसायनों के संपर्क में आते हैं, जिससे उन्हें खतरे और बीमारियों का डर होता है.
फोटो में: एक कार्यकर्ता बचे हुए प्रोडक्ट को छांटता है.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
मजदूरों के मुताबिक बाजार में करीब 20 गोदाम हैं. बिहार, बंगाल और आसपास के अन्य राज्यों से कबाड़ से लदे ट्रक सीलमपुर बाजार में आते हैं.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
भारत सरकार ने 2011 में ई-कचरे से संबंधित कानून (प्रबंधन और हैंडलिंग नियम) पेश किया. तब से, यह नियम 2023 में होने वाले सबसे हालिया अपडेट के साथ बदल गए हैं. ई-कचरा कानून पहले के ई-कचरा बाजार को एक संगठित संरचना देता है, जो मुख्य रूप से एक असंगठित क्षेत्र द्वारा नियंत्रित होता है. यह असंगठित क्षेत्र कच्चे उत्पादों को भी नियंत्रित करते हैं जो पर्यावरण प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इन नियमों को जारी करता है.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)
ग्लोबल ई-वेस्ट मॉनिटर रिपोर्ट 2024 के अनुसार, ई-कचरे की बढ़त खतरे की घंटी है. इसके अनुसार ई-कचरा कागज पर दर्ज आकड़े से पांच गुणा ज्यादा है. यह राशि 2010 में 34 बिलियन किलोग्राम से बढ़कर 2022 में 62 बिलियन किलोग्राम हो गई है, जिसमें 2030 तक 80 बिलियन किलोग्राम तक की वृद्धि का अनुमान है. ये आंकड़े स्थायी ई-कचरा प्रबंधन की तत्काल जरूरतों को रेखांकित करते हैं. भारत 4.1 बिलियन किलोग्राम ई-कचरा उत्पन्न करता है, यह ई-कचरा उत्पादन के मामले में शीर्ष स्थान पर बने चीन के बाद दूसरा स्थान हासिल करता है.
(फोटो क्रेडिट: अनुष्का कोगटा और सैयद अहमद रुफई)