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अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ऊर्जा के लगभग असीमित, सुरक्षित और स्वच्छ स्रोत खोजने की मुहिम में दूसरी बार एक ऐतिहासिक सफलता मिली है. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने फिर से न्यूक्लियर फ्यूजन के जरिए शुद्ध एनर्जी का लाभ हासिल किया है. यानी न्यूक्लियर फ्यूजन के रिएक्शन को शुरू करने में लगने वाली ऊर्जा से अधिक उन्हें रिजल्ट के रूप में वापस मिला है.
लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी (Lawrence Livermore National Laboratory) ने रविवार, 6 अगस्त को इसकी जानकारी दी. बता दें कि दिसंबर 2022 में पहली बार अमेरिका वैज्ञानिकों ने यह सफलता हासिल की थी.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक लॉरेंस लिवरमोर के प्रवक्ता ने कहा कि
आइए समझते हैं कि
न्यूक्लियर फ्यूजन या परमाणु संलयन क्या है
यह इतना अहम क्यों है?
न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन कैसे काम करता है
इससे बड़े स्तर पर बिजली कब और कैसे पैदा की जा सकती है?
क्या न्यूक्लियर फ्यूजन से ग्लोबल वार्मिंग का इलाज मुमकिन है
भारत का इन मामलों क्या स्थान है?
न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन की मदद से ही सूरज समेत अन्य सभी तारे ऊर्जा पैदा करते हैं, जो रोशनी के रूप में जमीन तक आती है. न्यूक्लियर फ्यूजन के रिएक्शन में परमाणु (Atom) के एक जोड़े बाहर से ऊर्जा प्राप्त करते हैं और आपस में मिलकर एक बड़ा परमाणु बन जाते हैं. इस प्रोसेस में बाईप्रोडक्ट के रूप में बहुत सारी एनर्जी निकलती है.
न्यूक्लियर फ्यूजन से ठीक उलट है न्यूक्लियर फिजन या परमाणु विखंडन. न्यूक्लियर फिजन में एनर्जी की मदद से एक परमाणु को दो हिस्सों में तोड़ा जाता है. मौजूदा वक्त में न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में बिजली पैदा करने के लिए न्यूक्लियर फिजन के रिएक्शन का ही उपयोग करते हैं.
न्यूक्लियर पॉवर प्लांट में प्रयोग किए जाने वाले न्यूक्लियर फिजन रिएक्शन में बहुत सारे रेडियोएक्टिव कचरे निकलते हैं. ये खतरनाक होते हैं और इसे सैकड़ों सालों तक सुरक्षित रूप से स्टोर करना होता है. लेकिन दूसरी ओर न्यूक्लियर फ्यूजन में कम रेडियोएक्टिव बाईप्रोडक्ट निकलते हैं और ये बहुत अधिक तेजी से खत्म हो जाते हैं.
इसकी बजाय अधिकांश न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन में हाइड्रोजन का उपयोग किया जाता है, जिसे समुद्री जल और लिथियम से बहुत ही कम खर्च में निकाला जा सकता है. इसका अर्थ है कि न्यूक्लियर फ्यूजन के लिए फ्यूल (हाइड्रोजन) की आपूर्ति लाखों सालों तक की जा सकती है.
जब हाइड्रोजन जैसे हल्के तत्व/एलिमेंट के दो परमाणुओं को गर्म किया जाता है यानी बाहर से एनर्जी दी जाती है, तो वे दोनों आपस में हीलियम जैसा एक भारी तत्व बन जाते हैं. इस न्यूक्लियर रिएक्शन में भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसका उपयोग बिजली बनाने के लिए किया जा सकता है.
लेकिन यह प्रोसेस इतना भी आसान नहीं. एक ही तत्व के दो परमाणु को आपस में जोड़ना बहुत कठिन काम है. इसकी वजह यह है कि उन दोनों का एक समान चार्ज होता है और वे स्वाभाविक रूप से एक दूसरे से दूर जाते हैं. यही वजह है कि इस प्रतिरोध/रेसिस्टेंस से पार पाने के लिए बहुत ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है. चूंकि सूरज की सतह पर गर्मी लगभग दस मिलियन डिग्री सेल्सियस की होती है, हाइड्रोजन के दो परमाणु को ऊर्जा आसानी से मिल जाती है.
लेकिन लंबे समय तक आवश्यक उच्च तापमान और दबाव को बनाए रखना बहुत मुश्किल साबित हुआ है.
अब इसी राह में दूसरी बड़ी सफलता हाथ लगी है.
यह सही है कि वैज्ञानिकों को पिछले कुछ सालों में न्यूक्लियर फ्यूजन के फील्ड में कई सफलता मिली हैं, लेकिन इसके बावजूद, बड़े पैमाने पर इससे बिजली पैदा करना मुश्किल काम है. अमेरिका के NFI ने पहले प्रयास (दिसंबर 2022) में जरूर 15 - 20 इलेक्ट्रिक केतली को पावर देने के लायक ऊर्जा पैदा कर दिया था लेकिन यह मात्रा इतनी कम है कि इतने में तो वो लेजर भी न बने जो इस एक्सपेरिमेंट में काम आया था. दूसरी तरफ इस पूरे प्रोजेक्ट पर 3.5 बिलियन डॉलर का खर्च आया है.
न्यूक्लियर फ्यूजन के साथ सबसे अच्छी बात है कि यह तेल या गैस जैसे जीवाश्म ईंधन पर निर्भर नहीं है. यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने वाली ग्रीनहाउस गैसों में से किसी को रिलीज भी नहीं करता है. साथ ही यह सोलर या पवन ऊर्जा की तरह मौसम की स्थिति पर भी निर्भर नहीं है.
अगर वैज्ञानिक न्यूक्लियर फ्यूजन की मदद से बड़े स्तर पर बिजली पैदा करने की स्थिति में आ जाए तो इससे दुनिया के तमाम देशों को 2050 तक "नेट जीरो" कॉर्बन उत्सर्जन के अपने टारगेट्स को पूरा करने में मदद मिल सकती है.
अमेरिका ने न्यूक्लियर फ्यूजन में अहम कामयाबी हासिल की है, लेकिन इसकी चुनौतियों को पार पाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की जरूरत होगी.
पिछले साल भारत शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए फ्यूजन विकसित करने के लिए एक सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय परियोजना ITER की स्थापना के लिए एक संघ में शामिल हुआ. इसमें अन्य सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, जापान और रूस हैं.
भारत सहित 35 देश दुनिया का सबसे बड़ा टोकामक (Fusion Reactions in Hot Plasma) बनाने के लिए सहयोग कर रहे हैं, जो एक चुंबकीय फ्यूजन डिवाइस है. यह न्यूक्लियर फ्यूजन की व्यवहार्यता और स्केलिंग को प्रदर्शित करने में सक्षम है.
एक्सपेरिमेंटल फ्यूजन रिएक्टर पर भारत की अपनी कोशिश गुजरात में प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान में एसएसटी-2 टोकोमैक के साथ जारी है.
हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के पास हाइड्रोकार्बन एनर्जी या न्यक्लियर फिजन आधारित एनर्जी के लिए जरूरी संसाधन पर्याप्त नही हैं.