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अफगानिस्तान संकट: काबुल में फंसे एक भारतीय की आपबीती

अफगानिस्तान के शहरों में फंसे डरे सहमें लोग लगा रहे मदद की गुहार

क्विंट हिंदी
न्यूज
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<div class="paragraphs"><p>काबुल में फंसे भारतीय मांग रहे मदद</p></div>
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काबुल में फंसे भारतीय मांग रहे मदद

(फोटो- द क्विंट)

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मैं पहले नागपुर में रहता था, फरवरी 2021 में अफगानिस्तान शिफ्ट हो गया और मार्च से एक निजी अस्पताल में काम कर रहा हूं. मैं यहां MBBS की डिग्री पूरी करके अकेला आया हूं. अप्रैल 2021 के बाद से जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी की घोषणा की, उसके बाद देश में कयामत जैसी स्थिति आ गई. हालांकि, किसी ने नहीं सोचा था कि वो दिन इतनी जल्दी आ जाएगा.

मैं भाग्यशाली था कि मुझे यहां एक डॉक्टर के रूप में बहुत इज्जत मिली. मैंने अप्रैल में दो घायलों का इलाज किया जो तालिबान से जिंदगी बचाकर भागे थे. तब से स्थिति में तेजी से बदलाव आया है. अगस्त की शुरुआत तक स्थानीय लोग परेशान हो गए थे और स्थिति से निकलने की कोशिश कर रहे थे. मैं भी इसी महीने के पहले सप्ताह से ही किसी भी तरह से यहां से निकलने की कोशिश कर रहा था और आखिरकार सफल हुआ.

अधिकतर शहर तालिबान के कब्जे में थे और मैं जिस शहर में था वहां पर फ्लाइट का मिलना आसान नहीं था. जब भारतीय दूतावास ने उस दिन हमको फ्लाइट पकड़ने की सूचना दी, तो हमें कुछ समय के लिए राहत मिली, लेकिन भयावह स्थिति खत्म नहीं हुई.

एयरपोर्ट मेरे निवास से 26 किलोमीटर दूर था, कोई भी टैक्सी ड्राइवर ऐसा नहीं था जिस पर विश्वास किया जा सके. सौभाग्य से मेरे बॉस ने एक कार का बंदोबस्त किया लेकिन मेरे एयरपोर्ट पहुंचने तक फ्लाइट उड़ान भर चुकी थी. मेरे पास वही एक मौका था सुरक्षित तरीके से वापस आने का, अपने परिवार से मिलने का, लेकिन वो भी मेरे हाथ से निकल गया.

अगले दिन 12 अगस्त को भी मैं लॉजिस्टिकल समस्याओं की वजह से एयरपोर्ट पहुंचने में कामयाब नहीं हो सका. लेकिन इस बार मुझे बहुत अच्छी तरह से याद है कि फ्लाइट रद्द कर दी गई थी और एयरपोर्ट पर कब्जा हो चुका था.

उस समय शाम के 05:15 बजे हुए थे. तालिबानी शहर में दाखिल हुए और एयरपोर्ट पर कब्जा जमा लिए. मेरे घर के पास का पुलिस हेडक्वार्टर सरेंडर कर दिया था. उसके बाद मैंने अपने घर की खिड़की से देखा कि एक पुलिस की ट्रक गश्त कर रही थी, जिस पर एक तालिबानी बंदूक के साथ खड़ा था.
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मैं पेरशान हूं कि क्या मेरा भी अंत अपने भारतीय साथी दानिश सिद्दीकी के जैसे ही होगा.

मैं अपने बॉस की वजह से कुछ देर के बाद रिलैक्स महसूस करता हूं. जो हर दिन भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं, जिससे बाहर निकलने की जरूरत कम पड़ती है. मुझे केवल इमरजेंसी में अस्पताल जाने की जरूरत पड़ती है, लेकिन हर पल मैं ये महसूस करता हूं कि हिन्दुस्तान वापस आ सकूं और सुरक्षित महसूस कर सकूं.

एक ही रास्ता है कि मैं किसी भी तरह से काबुल पहुंचूं. इसके लिए मैंने बुर्के में निकलने की सोचा लेकिन पकड़े जाने के डर से मैंने ये भी नहीं किया.

जब से काबुल पर तालिबान ने कब्जा किया है, तब से मेरे पास भारतीय दूतावास से संपर्क करने का कोई रास्ता नहीं बचा है. पिछले तीन दिनों से मैं उन सभी नंबरों पर फोन लगाने की कोशिश कर रहा हूं, जो खबरों में बताए जा रहे हैं. वॉट्सऐप पर व्यक्तिगत स्रोतों की मदद से हल निकालने की कोशिश किया. मेरा परिवार मेरे लौटने की व्यवस्था करने की कोशिश कर रहा है और विदेश मंत्रालय के लगातार संपर्क में है. वास्तव में ऐसा लग रहा है कि मैंने कोई लड़ाई हारी है.

हालांकि मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी है. मेरा परिवार बहुत परेशान है क्योंकि मैं अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हूं. मैं भारतीय अधिकारियों से अनुरोध करना चाहता हूं कि वे काबुल के अलावा, अफगानिस्तान के छोटे इलाकों - जलालाबाद, हेरात व मजार-ए-शरीफ में रहने वाले अपने नागरिकों की तलाश करें, क्योंकि भारतीय नागरिक बचाव का इंतजार कर रहे हैं.

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