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बिहार में 'वोटर घोटाला'? पत्रकार अजीत अंजुम के खिलाफ FIR के पीछे कहानी क्या है?

"कुछ लोगों से मेरे खिलाफ बयान लेने की कोशिश हो रही है, मुमकिन है एक-दो और FIR दर्ज कर दी जाएं."

शादाब मोइज़ी
जनाब ऐसे कैसे
Published:
<div class="paragraphs"><p>बिहार में चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी वोटर वेरिफिकेशन को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.</p></div>
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बिहार में चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी वोटर वेरिफिकेशन को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं.

(Photo: Lab/The Quint)

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बिहार में इन दिनों चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया चल रही है. इस प्रक्रिया में कथित गड़बड़ियों को लेकर रिपोर्टिंग कर रहे वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम पर बिहार के बेगूसराय में FIR दर्ज की गई है. उन पर सरकारी काम में बाधा डालने और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने जैसे आरोप लगाए गए हैं. FIR के बाद अजित अंजुम ने द क्विंट से बातचीत की. उन्होंने कहा कि उनकी रिपोर्टिंग से प्रशासन में जो बेचैनी हुई, उसी का नतीजा यह FIR है. उन्होंने इसे अपनी पत्रकारिता को दबाने की कोशिश बताया.

इस इंटरव्यू में अजीतअंजुम ने FIR, 'यूट्यूबर' कहे जाने, 'पैराशूट पत्रकारिता' जैसे आरोपों और वोटर वेरिफिकेशन की प्रक्रिया से जुड़े सवालों का विस्तार से जवाब दिया.

जब अजीतअंजुम से उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर के बारे में पूछा गया कि पूरा मामला क्या है, तो उन्होंने द क्विंट से कहा:

"जिस वीडियो को लेकर एफआईआर हुई है, उसे कोई भी देखेगा तो समझ जाएगा कि मैं एक पब्लिक ऑफिस में गया था, जहां प्रवेश पर कोई रोक नहीं थी. वहां बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) ने आराम से 10-15 मिनट तक इंटरव्यू दिया. एफआईआर तो सिर्फ एक बहाना है. असल में प्रशासन को इस बात से बेचैनी हुई कि मेरे वीडियो में यह खुलासा हो रहा था कि बहुत सारे वोटर फॉर्म अधूरे हैं कहीं दस्तखत नहीं हैं, कहीं नाम नहीं है, और कहीं बाकी कॉलम खाली हैं. जब मैंने दिखाया कि ये अधूरे फॉर्म कैसे अपलोड हो रहे हैं, तो वही बात उन्हें चुभ गई. मैंने वीडियो में साफ कहा है कि इसमें BLO की कोई गलती नहीं है; उनपर टारगेट पूरा करने का दबाव है."

अजीत अंजुम पर दर्ज एफआईआर में उन पर मतदाताओं की पहचान उजागर करने का आरोप लगाया गया है. इस आरोप को नकारते हुए उन्होंने कहा:

"यह आरोप भी पूरी तरह से गलत है. आप मेरा वीडियो देखिए — उसमें मैंने साफ तौर पर अपने कैमरामैन से कहा है, 'दूर रखो, किसी की आइडेंटिटी डिस्क्लोज नहीं होनी चाहिए.' मैंने न तो किसी का पूरा पता दिखाया, न ही कोई बूथ नंबर बताया, और अधिकतर मामलों में तो पूरे नाम भी नहीं लिए. मेरा मकसद केवल प्रक्रिया की खामियां दिखाना था, किसी व्यक्ति की पहचान उजागर करना नहीं. अगर मैं सिर्फ यह कहता हूं कि कोई 'साह जी' या 'राय साहब' हैं, तो इससे किसी की पहचान सार्वजनिक नहीं हो जाती."

सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का आरोप

अजीत अंजुम पर सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का भी आरोप लगाया गया है. कहा गया कि उनका फोकस मुस्लिम मतदाताओं पर था. इस आरोप के जवाब में उन्होंने कहा:

यह आरोप बिल्कुल बेबुनियाद है. एक पत्रकार जब फील्ड में जाता है तो वह जनसंख्या की संरचना (डेमोग्राफी) के बारे में पूछ सकता है. मैंने सिर्फ इतना पूछा था कि आपके बूथ पर कितने हिंदू और कितने मुस्लिम वोटर हैं — इसमें गलत क्या है? बल्कि मैंने तो उस मुस्लिम BLO की तारीफ की, जिन्होंने बताया कि उनके बूथ पर 90% मुस्लिम आबादी है और उनमें से 80% लोगों ने दस्तावेजों के साथ फॉर्म जमा किए हैं. जबकि उसी कमरे में कुछ अन्य लोग बिना दस्तावेजों के फॉर्म भर रहे थे. मैंने उस BLO की जागरूकता की तारीफ की थी. यह हिंदू-मुस्लिम एंगल सिर्फ मुझे फंसाने के इरादे से एफआईआर में जोड़ा गया है.
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"बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठ का नैरेटिव एक पॉलिटिकल एजेंडा लगता है"

जब अजीत अंजुम से पूछा गया कि वोटर वेरिफिकेशन को लेकर यह नैरेटिव बन रहा है कि मतदाता सूची में बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिए जोड़े जा रहे हैं, तो उन्होंने कहा,

"मैंने इस मुद्दे पर कोई फैक्ट-चेक नहीं किया है, लेकिन यह सवाल सरकार से पूछा जाना चाहिए. जब पिछले 11 सालों से केंद्र में आपकी ही सरकार है, सीमाओं की निगरानी आपकी फोर्स कर रही है, तो फिर अगर वाकई ये लोग आए हैं, तो यह आपकी विफलता है. 2020 का चुनाव हुआ, 2024 का चुनाव हुआ — क्या तब ये लोग वोटर लिस्ट में नहीं थे? अगर थे, तो आपने पहले कार्रवाई क्यों नहीं की? और अगर नहीं थे, तो अब अचानक ये नैरेटिव क्यों गढ़ा जा रहा है? मुझे यह पूरा मामला एक पॉलिटिकल एजेंडा जैसा लगता है. अगर कोई अवैध नागरिक वाकई मतदाता सूची में शामिल है, तो चुनाव आयोग को उसे हटाना चाहिए — यह देश के हर वैध नागरिक के मताधिकार से जुड़ा मामला है. लेकिन इसकी आड़ में किसी एक समुदाय को निशाना बनाना सरासर गलत है."

"यूट्यूबर होना गुनाह नहीं, मेरा काम मेरी पहचान है"

"यूट्यूबर कह देना मुझे छोटा दिखाने की कोशिश हो सकती है, लेकिन सच कहूं तो मुझे इन तमगों से कोई फर्क नहीं पड़ता. मैं 30 साल से ज्यादा मुख्यधारा की पत्रकारिता का हिस्सा रहा हूं. अगर आज कोई मुझे ‘यूट्यूबर’ कहता है, तो मुझे इससे कोई गुरेज नहीं. यूट्यूबर होना कोई गुनाह नहीं है. मैं क्या काम करता हूं, मेरी पहचान क्या है — यह कोई और तय नहीं कर सकता, न ही उनके लेबल लगाने से मेरी साख पर कोई असर पड़ता है."

अजीत अंजुम कहते हैं, "अब तक पुलिस ने मुझसे कोई संपर्क नहीं किया है, लेकिन मुझे जानकारी मिली है कि कुछ लोगों से मेरे खिलाफ बयान लेने की कोशिश की जा रही है. हो सकता है कि एक-दो एफआईआर और दर्ज कर दी जाएं. मैं इंतजार कर रहा हूं कि पुलिस इस मामले में आगे क्या कदम उठाती है."

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