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DGHS On Antimicrobial Resistance: स्वास्थ्य मंत्रालय ने, एंटी-माइक्रोबियल दवाओं के "ओवर-प्रिस्क्रिप्शन" को कंट्रोल करने के प्रयास में, देश भर के डॉक्टरों को लिख कर कहा है कि "एंटी-माइक्रोबियल दवाएं लिखते समय अनिवार्य रूप से ऐसी दवा प्रिस्क्राइब करने के कारण बताएं."
एंटीबायोटिक दवाओं को बिना सही डॉक्टरी सलाह के जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल या बिना जरूरत इस्तेमाल करने से दुनिया भर में कई मौतें हो रही हैं.
क्या कहा है स्वास्थ्य मंत्रालय ने? सरकार ने ये कदम क्यों उठाया? क्या होता है एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस?
एक्सपर्ट से जानते हैं इन सवालों के जवाब.
1 जनवरी को जारी एक पत्र में, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक डॉ. अतुल गोयल ने लिखा:
एंटीबायोटिक्स मूल रूप से ऐसी दवाएं होती हैं, जो हानिकारक बैक्टीरिया को खत्म या उनके विकास को धीमा कर देती हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2022 लैंसेट स्टडी का हवाला देते हुए यह भी बताया कि वैश्विक स्तर पर 4.95 मिलियन मौतें ड्रग-रेसिस्टेंट इन्फेक्शंस से जुड़ी हुई हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भी कहा है कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स नियमों की अनुसूची एच और एच1 के तहत, फार्मासिस्ट भी एंटीबायोटिक्स तभी बेच सकते हैं, जब उन्हें वैलिड प्रिस्क्रिप्शन मिले.
यह देश भर के मेडिकल कॉलेजों से भी इसका पालन करने की अपील करता है.
इस सवाल पर गुरुग्राम, सी के बिरला हॉस्पिटल के सीनियर कंसलटेंट डॉ. तुषार तायल कहते हैं,
"सरकार ने ये जो कदम उठाया है कि एंटीबॉयोटिक्स केवल वैलिड प्रिस्क्रिप्शन पर उपलब्ध होगी, ये बेहद जरुरी कदम था. अभी मरीज एंटीबॉयोटिक्स बिना वैलिड प्रिस्क्रिप्शन भी केमिस्ट से ले रहे थे. ऐसे हालात में कई बार मरीज वायरल बीमारी के लिए एंटीबायोटिक खा लेता है, जो नुकसानदायक होता है और कई बार ऐसा भी होता है कि बैक्टीरियल बीमारी के लिए सही एंटीबायोटिक नहीं खा रहा होता है जो परेशानी बढ़ाने का कारण बन जाता है."
डॉ. तुषार तायल एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस को भारत ही नहीं दुनिया भर के लिए एक बड़ी समस्या बताते हुए कहते हैं,
एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस के मायने समझाते हुए डॉ. तुषार तायल कहते हैं,
"दुनिया भर में एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस नाम की समस्या बढ़ती जा रही है. इसमें होता ये है कि जो साधारण बैक्टीरिया से जुड़ी बीमारियां हैं, जो बहुत हल्के एंटीबॉयोटिक्स से ठीक हो सकती हैं वो एंटीबॉयोटिक्स के दुरुपयोग की वजह से वे बैक्टीरिया बहुत अधिक मजबूत हो गए हैं और नार्मल एंटीबॉयोटिक्स से ठीक नहीं हो रहे और उनको ठीक करने के लिए भी बहुत हाई लेवल की एंटीबॉयोटिक्स का इस्तेमाल करना पड़ रहा है.
अक्सर लोग बिना सोचे-समझे, बिना डॉक्टर की सलाह एंटीबायोटिक दवा खा लेते हैं, जिससे हमें फायदा तो नहीं होता बल्कि ऐसा करने से जो हमारे अंदर गुड बैक्टीरिया हैं वो मर जाते हैं और हमारी वायरल बीमारी भी लंबी खिंच जाती है.
WHO के अनुसार, "वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि AMR के कारण 2050 तक हेल्थकेयर का खर्च 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है, और 2030 तक प्रति वर्ष 1 से 3.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर GDP का नुकसान हो सकता है."