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क्या बच्चों को इन उपायों के जरिए इंसेफेलाइटिस से बचाया जा सकता है?

बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम के कारण 150 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है.

सुरभि गुप्ता
फिट
Updated:
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से हर साल बच्चों की जान जाती है.
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एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से हर साल बच्चों की जान जाती है.
(फोटो: इरम गौर)

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बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के कारण 150 से ज्यादा बच्चों की मौत हो चुकी है. राज्य के गांव-गांव में इस बीमारी, जिसे चमकी बुखार कहा जाता है, को लेकर इतनी दहशत है कि अब लोग अपने गांव से पलायन तक कर रहे हैं.

वहीं सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस से होने वाली मौतों के मामले में केंद्र, बिहार सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भेजा है. इतने बच्चों की मौत और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के चलते राज्य और केंद्र सरकार पर आरोप लग रहे हैं. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर इंसेफेलाइटिस को लेकर तमाम मैसेज भी शेयर किए जा रहे हैं.

दावा

हमारे पास आए एक मैसेज में बच्चों को इंसेफेलाइटिस से बचाने के उपाय और इसके लक्षण बताए गए हैं. इसमें बताई गई बातें कितनी सही हैं, ये जानने के लिए फिट ने मैक्स हॉस्पिटल, गुणगांव में कंसल्टेंट पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ रफत त्रिवेदी से बात की.

सबसे पहले डॉ त्रिवेदी ने ये साफ किया कि बिहार में चमकी बुखार होने के कारण पर अभी तक काफी विवाद है. कोई कह रहा है कि हीट स्ट्रोक है, तो कोई लीची एक्सपोजर को वजह बता रहा है.

धूप से बचाव और अधिक पानी पिलाने की बात पर उन्होंने ने कहा कि गर्मी के मौसम में आमतौर पर बच्चों को धूप से बचाना चाहिए और अधिक पानी पिलाना ही चाहिए.

हीट से बचाने का इंसेफेलाइटिस से कोई डायरेक्ट रिलेशन है या नहीं है, ये नहीं बोला जा सकता, लेकिन हां क्योंकि गर्मी के मौसम में हीट स्ट्रोक और डिहाइड्रेशन के मामले सामने आते हैं, इसलिए बच्चों को धूप से बचाना बेहतर होगा. गर्मी में वैसे भी बच्चों को पानी ज्यादा पिलाना चाहिए ताकि हाइड्रेशन लेवल मेंटेन रहे.
डॉ रफत त्रिवेदी

डॉ त्रिवेदी बताती हैं कि बच्चों को जंक फूड से दूर रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि ये बैलेंस्ड डाइट नहीं होता है और ऐसा देखा गया है कि ज्यादातर कुपोषित बच्चे ही इंसेफेलाइटिस का शिकार होते हैं.

चमकी बुखार और लीची

चमकी बुखार या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) का जो एसोसिएशन देखा गया है, वो लीची में एक टॉक्सिन होता है, मिथाइलीनसाइक्लोप्रोपाइल-ग्लाइसिन (MCPG), इसकी वजह से बॉडी में शुगर कम हो जाती है, तो अगर कुपोषित बच्चे कच्ची लीची (जो ठीक से न पकी हो) या बहुत ज्यादा लीची का सेवन कर लेते हैं, तो इस टॉक्सिन की वजह से ऐसे बच्चों में हाइपोग्लाइसीमिया (लो ब्लड शुगर लेवल) देखा गया है.
डॉ रफत त्रिवेदी

डॉ त्रिवेदी समझाती हैं कि हमारे लिवर में ग्लाइकोजन होता है, जो जरूरत पड़ने पर ब्रेक होकर ग्लूकोज बन जाता है और इस तरह हमारी बॉडी में ग्लूकोज की मात्रा बनी रहती है, लेकिन कुपोषण के कारण इन बच्चों के लिवर में पर्याप्त ग्लाइकोजन स्टोर नहीं होता है. जब ये टॉक्सिन शरीर में आ रहा है, तो उनमें ग्लूकोज नहीं बन पा रहा है. ये एक थ्योरी है.

100 परसेंट नहीं बोल सकते हैं कि ये खाली लीची से हो रहा है, लेकिन ये 100 फीसदी है कि इसका कुपोषण से संबंध है. इसलिए हमें कुपोषण को टारगेट करना चाहिए.
डॉ रफत त्रिवेदी

वहीं बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत की जांच करने गई इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की एक टीम ने कहा है कि लीची खाना बच्चों की मौत की मुख्य वजह नहीं है क्योंकि इससे नवजात भी प्रभावित हुए हैं.

आईएमए टीम ने कहा कि इस बीमारी की वजह के बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन अधिक गर्मी, नमी, उमस और कुपोषण की इसमें खासी भूमिका है.

खाने के बाद मीठा खिलाने की बात पर डॉ त्रिवेदी साफ करती हैं कि इससे कोई रिलेशन नहीं है कि खाने के बाद मीठा खिलाएं, लेकिन रात में बच्चों को अच्छा, संतुलित और भरपेट खाना खिलाकर सुलाना चाहिए.

फिट से बातचीत में मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ शैलेश सिंह ने बताया था कि ज्यादातर मामलों में यही देखा गया है कि दिन भर धूप में रहने के बाद और रात में ठीक से खाना न खाने या भूखे सोने के बाद बच्चे चमकी बुखार की चपेट में आ गए.

उनके मुताबिक बच्चे तेज और उमस वाली गर्मी में, भूखे रहने और कुपोषण के कारण बीमार पड़ रहे हैं.

मैसेज में जो कीटनाशकों का छिड़काव, मच्छरदानी का इस्तेमाल और मच्छरों से बचने की बात कही गई है. बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग की ओर से दिमागी बुखार को लेकर दी गई गाइडलाइन में भी इसका जिक्र है, साथ ही इस गाइडलाइन्स में जापानी इंसेफेलाइटिस का टीका, साफ-सफाई, खाने-पीने में उबले हुए पानी का इस्तेमाल करने की बात का कही गई है.

डॉ त्रिवेदी बताती हैं कि बिहार में जो चमकी बुखार है या एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम है, इसमें पाया गया है कि बैक्टीरिया और वायरस के टेस्ट निगेटिव हैं.

पानी जमा न होने देना या कीटनाशकों के छिड़काव की बात है, ये हमारे देश में और उत्तर भारत में जापानी इंसेफेलाइटिस और मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां जैसे डेंगू बुखार से बचाव के लिए ज्यादा मायने रखता है. आमतौर पर भी साफ-सफाई, पानी और छिड़काव का ख्याल रखना चाहिए ताकि बच्चों को दूसरे इंफेक्शन न हो.
डॉ रफत त्रिवेदी

जहां तक सड़े-गले फल न खिलाने की बात है, तो ये हमेशा और सभी के लिए लागू होती है. सड़े-गले फल वैसे भी नहीं खाने चाहिए.

बुखार, शरीर में अकड़न, बेहोशी, कंपकंपी, कभी-कभी शरीर पर चकत्ते, लो ब्लड शुगर इंसेफेलाइटिस के लक्षण हो सकते हैं.

डॉ रफत त्रिवेदी बताती हैं कि मुजफ्फपुर के चमकी बुखार मामले में ज्यादातर ये देखा गया है कि एक शाम पहले बच्चे अच्छे होते हैं और एकदम से बीमार हो जाते हैं. बच्चे सोने से पहले ठीक होते हैं और सुबह उनकी बॉडी अकड़ जाती है या थरथराहट होती है या बच्चे बेहोश हो जाते हैं.

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ये सही है कि इंसेफेलाइटिस या चमकी बुखार से 10 या 15 साल तक के बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं और इसके लक्षण नजर आते ही जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए ताकि बच्चों का सही समय पर सही इलाज किया जा सके.

इंसेफेलाइटिस से बच्चों को कैसे बचाएं?

डॉ रफत त्रिवेदी बताती हैं कि सबसे जरूरी है कि कुपोषण दूर किया जाए क्योंकि इंसेफेलाइटिस आम तौर पर कुपोषित बच्चों में देखा गया है. हमारे प्राइमरी हेल्थ केयर डॉक्टर्स और वर्कर्स को बच्चों के मां-बाप को कुपोषण, बैलेंस्ड डाइट के लिए जागरूक करना चाहिए.

साफ-सफाई, साफी पानी पीना इन सब सामान्य चीजों का ध्यान रखना चाहिए.

चमकी बुखार जो चल रहा है, उसके लिए बेहतर सरकारी नीतियां बनाई जानी चाहिए, जो खासकर कुपोषण पर फोकस करे. इस बारे में जागरुकता फैलाई जानी चाहिए.

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Published: 25 Jun 2019,11:45 AM IST

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