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कोरोनावायरस: इलाज के लिए बताई जा रहीं जो दवाइयां, वो कितनी असरदार?

कुछ दवाइयों से इलाज की उम्मीद बढ़ी है, लेकिन आशंका बरकरार है.

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80 से ज्यादा देशों में नोवेल कोरोनावायरस के मामले सामने आए हैं.
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80 से ज्यादा देशों में नोवेल कोरोनावायरस के मामले सामने आए हैं.
(फोटो: iStock)

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चीन ने नोवेल कोरोनावायरस की वजह से गंभीर परेशानियों का सामना कर रहे मरीजों के लिए स्विस दवा निर्माता रोश की एंटी इन्फ्लेमेशन दवा एक्टेम्रा (Actemra) के इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है.

नोवेल कोरोनावायरस के प्रकोप से निपटने के लिए ये हालिया दवा है, जिसे चल रहे कई प्रयोगों के बीच मंजूरी मिली है. भारतीय बाजार में एक्टेम्रा नाम की ये दवा सिप्ला कंपनी बेचेगी.

कितनी मददगार हो सकती है ये दवा?

एक्टेम्रा का इस्तेमाल रूमेटाइड अर्थराइटिस (RA) में होता है, जिसे अमेरिका में साल 2010 में मंजूरी मिली थी.

रूमेटाइड अर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ कोशिकाओं को ही नुकसान पहुंचाना शुरू कर देती है. कोरोनावायरस डिजीज के बेहद गंभीर मामलों में कुछ मरीजों में सिवियर साइटोकाइन रिलीज सिंड्रोम (CRS) होता है, ये भी इम्यून सिस्टम का ओवर रिएक्शन है.

चीन के नेशनल हेल्थ कमिशन ने 4 मार्च को पब्लिश ट्रीटमेंट गाइडलाइन्स में कहा कि एक्टेम्रा को फेफड़े में गंभीर डैमेज और हाई इंटरल्युकिन 6 (IL-6) लेवल्स वाले कोरोनावायरस के मरीजों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

हालांकि ये दवा कोरोनावायरस के मरीजों पर कितनी असरदार होगी, इसे लेकर कोई क्लीनिकल डेटा अभी नहीं है, लेकिन COVID-19 के कारण तीन हजार से ज्यादा लोगों की जान चुकी है, ऐसे में एक्सपेरिमेंटल दवाइयों का इस्तेमाल किया जा रहा है.

और किन दवाइयों से बढ़ी है इलाज की उम्मीद?

रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, चीनी कंपनियां पहले से ही रोश की दवा का विकल्प तैयार कर रही हैं. असल में वे मौजूदा दवाओं को फिर से तैयार कर रहे हैं, जिनका उपयोग पिछले वायरस के प्रकोप से निपटने के लिए किया गया था.

इसमें एचआईवी ड्रग्स और दूसरे एंटीवायरल दवाइयों का कॉम्बिनेशन शामिल है.

इससे पहले फरवरी में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की ओर से ‘लोपिनाविर (lopinavir)’ और ‘(रिटोनावीर) ritonavir’नाम की दो दवाइओं के लिए इमरजेंसी मंजूरी की मांग के बाद ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने COVID-19 से प्रभावित लोगों के इलाज के लिए एंटी-एचआईवी दवाओं के 'प्रतिबंधित उपयोग' की मंजूरी दी थी.

इस रिपोर्ट के मुताबिक बैंकॉक के राजविथी हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने वायरस के गंभीर मामलों में फ्लू और एचआईवी की दवाइयों का इस्तेमाल किया. वुहान की एक 70 साल की महिला मरीज की हालत में सिर्फ दो दिनों में ही सुधार देखा गया. राजविथी हॉस्पिटल के लंग स्पेशलिस्ट डॉ क्रियंग्स्का एटिपोर्नवानिच ने बताया,

ये बीमारी का इलाज नहीं है, लेकिन इससे मरीज की हालत में काफी सुधार देखा गया है. इस कॉम्बिनेशन की दवाइयों से 48 घंटों के अंदर टेस्ट रिजल्ट निगेटिव आया.

इस मामले में डॉक्टरों ने एंटी-एचआईवी दवाइयों lopinavir और ritonavir के मिश्रण के साथ फ्लू की दवा oseltamivir(ओसेल्टामिविर) का इस्तेमाल किया था.

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उम्मीद, लेकिन आशंका बरकरार

एक और एंटीवायरल दवा रेम्डेसिविर (remdesivir), जिसे इबोला से निपटने के लिए तैयार किया गया था, इसका इस्तेमाल अमेरिका में नोवेल कोरोनावायरस से संक्रमित पहले पेशेंट के लिए किया गया था. आईएएनएस की रिपोर्ट बताती है कि वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ वायरोलॉजी ने चीन में इस एंटीवायरस थेरेपी के इस्तेमाल के लिए पेटेंट की अर्जी दी है.

भारत की फार्मा कंपनी सिप्ला ने भी दो एंटी-एचआईवी दवा का स्टॉक तैयार कर रखा है. बिजनेस टुडे की रिपोर्ट में इसके चेयरमैन यूसुफ ख्वाजा हामिद ने कहा कि ये दवाइयां ऑफ-पेटेंट हैं और अब नए वायरस से निपटने के लिए इसे फिर से तैयार किया जा रहा है.

हालांकि, सभी मामलों में जहां रोगियों में सुधार देखा गया है, शोधकर्ताओं ने इन दवाओं की सुरक्षा और प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिए कंट्रोल्ड स्टडीज की जरूरत पर जोर दिया है.

इसकी जरूरत इसलिए है क्योंकि थाईलैंड में एक मरीज में दवाइयों के इन कॉम्बिनेशन के प्रति एलर्जी देखी गई. ऐसे में एंटी-एचआईवी और दूसरी दवाइयों के कॉम्बिनेशन का हर मामले में इस्तेमाल को लेकर आशंका बढ़ गई है.

इन दवाइयों पर क्या है भारतीय विशेषज्ञों की राय?

फिट को पहले दिए एक इंटरव्यू में शिव नादर यूनिवर्सिटी में असिस्टेंड प्रोफेसर और वायरोलॉजिस्ट डॉ नागा सुरेश विरप्पू ने कहा था कि इस बात पर भरोसा करना मुश्किल है कि एंटीवायरल दवाइयां हर मामले में असरदार हों. सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटी सिंड्रोम (SARS) भी इसी तरह का प्रकोप था, लेकिन उसका अभी तक कोई इलाज नहीं है.

एंटीवायरल दवाइयों के कॉम्बिनेशन को लेकर मैं किसी संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं करूंगा, लेकिन मुझे संदेह है कि यह एक पूर्ण उपचार हो सकता है.
डॉ नागा सुरेश विरप्पू

हालांकि, उन्होंने कहा, जब तक एक वैक्सीन विकसित नहीं हो जाती, एंटीवायरल दवाइयों की टेस्टिंग एक तेज विकल्प हो सकता है.

डॉ विरप्पू ने कहा कि इन दवाइयों को मंजूरी देने की वजह ये है कि इसके पहले की बीमारियों के लिए इनकी टेस्टिंग हो चुकी है. इसलिए हम जानते हैं कि ये सुरक्षित हैं और अगर ये नोवेल कोरोनावायरस पर काम करती हैं, तो ये बहुत अच्छा होगा.

अभी इन दवाइयों की क्लीनिकल टेस्टिंग बाकी है. आपको बता दें कि क्लीनिकल टेस्टिंग वो तरीका है, जिसके जरिए रिसर्चर्स ये पता लगाते हैं कि कोई नई दवा लोगों पर सुरक्षित और प्रभावी है. इस दिशा में प्रयास जारी हैं, जैसे चीन में HIV की दवा एलुविआ (Aluvia) की टेस्टिंग चल रही है.

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Published: 06 Mar 2020,08:58 PM IST

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