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सुप्रीम कोर्ट ने 29 दिसंबर 2025 को अरावली पर्वतमाला की परिभाषा से संबंधित अपने 20 नवंबर के आदेश पर रोक लगा दी. अदालत ने विशेषज्ञ समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा, जो पूर्व समिति की रिपोर्ट की पुनः समीक्षा करेगी. केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत '100 मीटर' नियम को पहले स्वीकार किया गया था, जिससे अरावली क्षेत्र में खनन और पारिस्थितिक असंतुलन की आशंका बढ़ गई थी. अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी.
The Indian Express के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश को स्थगित करते हुए कहा कि अरावली की परिभाषा पर और स्पष्टता आवश्यक है. अदालत ने विशेषज्ञ समिति के गठन का सुझाव दिया, जो पूर्व समिति की सिफारिशों की समीक्षा करेगी, क्योंकि '100 मीटर' नियम के कारण अरावली की 90% भूमि संरक्षण से बाहर हो सकती थी.
Hindustan Times की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अरावली की परिभाषा को लेकर विशेषज्ञों की राय आवश्यक है. अदालत ने यह भी माना कि बिना विशेषज्ञ समिति की समीक्षा के, खनन और अन्य गतिविधियों के लिए क्षेत्र खोलना पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हो सकता है.
Bar and Bench ने बताया, अदालत ने स्पष्ट किया कि पूर्व समिति में अधिकांश सदस्य नौकरशाह थे, इसलिए अब पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन करने के लिए विशेषज्ञ समिति की आवश्यकता है. अदालत ने कहा, "हम निर्देश देते हैं कि समिति की सिफारिशें और सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष तब तक स्थगित रहेंगे."
“हम निर्देश देते हैं कि समिति की सिफारिशें और सुप्रीम कोर्ट के निष्कर्ष तब तक स्थगित रहेंगे. मामला 21 जनवरी 2026 को सुना जाएगा."
The Hindu के एक लेख में उल्लेख है, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि नई समिति को सर्वेक्षण और अध्ययन करना होगा. अदालत ने यह भी कहा कि 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई तक सीमित करने से अनियंत्रित खनन की संभावना बढ़ सकती है. साथ ही, कांग्रेस ने आरोप लगाया कि राजस्थान सरकार द्वारा रियल एस्टेट विकास को अनुमति देना अरावली के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए विनाशकारी हो सकता है.
Scroll ने एक लेख में कहा, पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी है कि केवल ऊंचाई के आधार पर अरावली की परिभाषा तय करने से कई छोटे लेकिन पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण पहाड़ियां खनन और निर्माण के लिए असुरक्षित हो जाएंगी. विशेषज्ञों के अनुसार, ये छोटी पहाड़ियां रेगिस्तान के विस्तार को रोकने, भूजल रिचार्ज और स्थानीय आजीविका के लिए महत्वपूर्ण हैं.
इस रिपोर्ट में उल्लेख है, कांग्रेस ने कहा कि नई परिभाषा के कारण न केवल खनन बल्कि रियल एस्टेट विकास भी अरावली के पहले से ही संकटग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को और नुकसान पहुंचाएगा. पार्टी ने इसे फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की सिफारिशों के खिलाफ बताया.
रिपोर्ट ने हाइलाइट किया, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि जब तक प्रबंधन योजना (MPSM) अंतिम रूप नहीं लेती, तब तक अरावली क्षेत्र में नई खनन लीज़ नहीं दी जाएगी. अदालत ने अरावली को "ग्रीन बैरियर" के रूप में मान्यता दी, जो थार रेगिस्तान के विस्तार को रोकता है.
लेख में जोड़ा गया, राजस्थान सरकार ने इस वर्ष शहरी पहाड़ी क्षेत्रों को "लो-डेंसिटी" गतिविधियों के लिए खोल दिया, जिससे फार्महाउस, रिसॉर्ट, योग केंद्र, कैंपिंग साइट्स और सोलर प्रोजेक्ट्स जैसी गतिविधियों की अनुमति दी गई. विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अरावली की पारिस्थितिकी को गंभीर खतरा हो सकता है.
जैसा कि रिपोर्ट में उल्लेख है. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अरावली की परिभाषा और संरक्षण को लेकर अंतिम निर्णय विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद ही लिया जाएगा.
Note: This article is produced using AI-assisted tools and is based on publicly available information. It has been reviewed by The Quint's editorial team before publishing.