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बीमारी की वजह बनता है ‘अकेलापन’ या बढ़ाता है क्रिएटिविटी और फोकस?

हेल्दी या अनहेल्दी है आपकी तन्हाई? जानिए कैसे करें फर्क.
सुरभि गुप्ता
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अकेलापन: खुद के साथ वक्त बिताने का मौका
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(फोटो: iStock)
अकेलापन: खुद के साथ वक्त बिताने का मौका
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अकेलापन, तन्हाई- वो एहसास जो आपको हजारों लोगों की भीड़ में भी महसूस हो सकता है और तब भी जब आपके आस-पास कोई मौजूद न हो.

इस अकेलेपन को कभी आर्दश स्थिति नहीं माना गया है. एक सामाजिक प्राणी होने के नाते इंसान लोगों के संपर्क में रहता है , सोशल कनेक्शन हमारे विकास और सर्वाइवल के लिए जरूरी है.

कई स्टडीज में अकेलेपन और सामाजिक अलगाव को डिप्रेशन, नींद में गड़बड़ी, कार्डियोवैस्कुलर फंक्शन में दिक्कतें और इम्यूनिटी कमजोर होने से जोड़ा गया है.

अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की 125वीं वार्षिक सम्मेलन में एक रिसर्च में बताया गया कि अकेलापन और सामाजिक अलगाव मोटापे के मुकाबले ज्यादा बड़े हेल्थ रिस्क हो सकते हैं. इतना ही नहीं ब्रिटेन की सरकार ने ब्रिटेनवासियों को अकेलेपन से दूर रखने के लिए पिछले साल एक मंत्री नियुक्त किया है.

तो क्या अकेलापन हम पर इस कदर हावी हो सकता है? फिर खुद के साथ वक्त बिताने का क्या मतलब है?

हालांकि बात जब अकेलेपन की आती है, तो ये आपकी मजबूरी भी हो सकती है या फिर आपकी पसंद और यहीं से ये तय होता है कि इस अकेलेपन से आपको फायदा होगा या नुकसान.  

क्यों जरूरी है खुद के साथ वक्त बिताना?

क्रिएटिविटी

क्या क्रिएटिव लोग अकेले रहना पसंद करते हैं?

अकेलेपन को जितना कोस लिया जाए, लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि इससे क्रिएटिविटी में सुधार होता है.

मैक्स हॉस्पिटल में डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ के डायरेक्टर डॉ समीर मल्होत्रा बताते हैं कि जब इंसान अपने आप को थोड़ा सा अलग करके, बहुत ज्यादा शोर-गुल से हटकर कुछ सोचना शुरू करता है, तो फिर उसकी क्रिएटिविटी उभरती है, वो अपने विचारों को आकार दे सकता है.

साइकोलॉजी ऑफ क्रिएटिविटी पर शोध करने वाले कैलिफोर्निया के सैन जोस स्टेट यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर ग्रेगरी फेइस्ट के मुताबिक क्रिएटिव लोग अकेले रहना पसंद करते हैं, उन्हें एकांत की जरूरत होती है.

साइकोलॉजी टुडे के इस आर्टिकल के मुताबिक लेखिका वर्जीनिया वूल्फ ने अपनी डायरी में लिखा था कि अकेलेपन के एहसास ने उनकी रचनात्मकता और समझ पर काफी असर डाला.

फोकस

जीवन के उलझाव में हम कुछ चीजों के बारे में उतनी शांति से नहीं सोच पाते हैं.

डॉ मल्होत्रा मानते हैं कि मन के विचार को आकार देने के लिए कई बार अकेलेपन की जरूरत होती है.

जैसे कई दिनों से अगर कोई कुछ लिखने की, किताब लिखने की सोच रहा है, तो उसके लिए उसके विचार अकेले बैठने से निखरते हैं. जीवन के उलझाव में हम कुछ चीजों के बारे में उतनी शांति से नहीं सोच पाते हैं.
डॉ समीर मल्होत्रा

प्राचीन काल से ही अलग रहने और मानसिक ध्यान के बीच संबंध को समझा गया है. ध्यान, तप और मानसिक शांति के लिए लोग एकांत में ही जाया करते रहे हैं.

जब आपके साथ कोई होता है, तो न चाहते हुए भी आपका ध्यान उसकी ओर जाता है. ये डिस्ट्रैक्शन पॉजिटिव भी हो सकता है, लेकिन इसका मतलब ये भी है कि किसी की मौजूदगी में आपका दिमाग डिस्ट्रैक्ट जरूर होता है.

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मजबूरी या आपकी पसंद है अकेलापन?

कहीं ऐसा तो नहीं है कि आप अकेले रहना नहीं चाहते, लेकिन भरी महफिल में आप अलग-थलग और उपेक्षित महसूस करते हैं. जाहिर है इस तरह के अकेलेपन का आप पर नकारात्मक असर पड़ सकता है.

वहीं जब तन्हाई आपकी अपनी च्वॉइस होती है, तो ये अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी, सिर्फ आपको फर्क करना पता होना चाहिए.

डॉ मल्होत्रा बताते हैं कि एक होता है कि जहां आदमी अपने आपको बिल्कुल अलग-थलग कर रहा होता है, उसको लगता है कि कोई उसके साथ नहीं है और वो अकेलापन महसूस करता है, तो ये एक अलग अकेलापन है.

हेल्दी या अनहेल्दी है आपकी तन्हाई?

आपकी तन्हाई आपको किसी नकारात्मक सोच से तो नहीं जोड़ रही?

डॉ समीर मल्होत्रा बताते हैं कि अकेलापन तब तक सही हो सकता है जब तक:

  • आपकी तन्हाई आपको किसी नकारात्मक सोच से नहीं जोड़ रही
  • जब तक वो आपकी प्रतिभा को निखार रही है
  • जब तक कि आप उससे परेशान नहीं हो रहे हैं
  • किसी और की परेशानी की वजह नहीं बन रहे हैं
  • इसके चलते अपने दायित्वों से मुंह नहीं मोड़ रहे हैं

डॉ मल्होत्रा के मुताबिक यहां तक आपका अकेलापन ठीक है, लेकिन ये तब हेल्दी नहीं है जब:

  • अगर तन्हाई आपको दुःख दे रही है
  • आपकी नींद, भूख पर इसका असर पड़ रहा है
  • आप गुस्सैल हो रहे हैं
  • आपका किसी से मिलने का मन नहीं हो रहा
  • आप डरे हुए हों
  • घबराहट में उलझे हुए हों
  • अपनी पॉजिटिव सोच को, क्रिएटिविटी, दायित्वों को नहीं निभा पा रहे हों

डॉ मल्होत्रा कहते हैं, 'अति किसी भी चीज की ठीक नहीं होती. जब हम दुनिया से बिल्कुल अलग-थलग हो जाते हैं, तो कहीं न कहीं हमारा मन इससे प्रभावित होता है. ज्यादातर देखा गया है कि बहुत ज्यादा अकेलेपन से डिप्रेशन और एंग्जाइटी जैसे लक्षण बढ़ते हैं, असुरक्षा बढ़ती है. कुछ बीमारियों में भी इंसान अकेलेपन की ओर बढ़ता है. उसका किसी के साथ उठने-बैठने का मन नहीं होता.'

एक अकेलापन है, जो आपको खुद के साथ जोड़ता है, वो बहुत अच्छा है. एक अकेलापन आपके नकारात्मक विचारों को बढ़ा रहा होता है, वो ठीक नहीं है.
डॉ मल्होत्रा

खुद के साथ वक्त बिताना कतई गलत नहीं है. इसलिए अगर आप पार्टीज, शोर-गुल, भीड़-भाड़ से दूर होकर कुछ वक्त तन्हाई में बिताना चाहते हैं, तो ऐसा जरूर कीजिए.

(At The Quint, we are answerable only to our audience. Play an active role in shaping our journalism by becoming a member. Because the truth is worth it.)

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