अपभ्रंश: ग्रन्थ प्रशस्तियों का ऐतिहासिक महत्‍व

इसी प्रकार अनेक संवेदनशील राजाओं, महाराजाओं एवं साहित्यरसिक नगरसेठों के यशस्वी कार्य भी अंधकाराच्छन्न हो जाते.
Saumya Pankaj
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इसमें संदेह नहीं कि इस ग्रन्थ-प्रशस्तियों ने सर्वोदयी श्रमण संस्कृति की जीवन्त बनाये रखा.
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(Photo: Saumya Pankaj/The Quint)
इसमें संदेह नहीं कि इस ग्रन्थ-प्रशस्तियों ने सर्वोदयी श्रमण संस्कृति की जीवन्त बनाये रखा.
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गहन अध्ययन करने से यह स्पष्ट विदित होता है कि यदि अपभ्रंश- ग्रन्थ प्रशस्तियां उपलब्ध न होतीं, तो किसी भी अपभ्रंश-ग्रन्थकार महाकवि के पूर्ववर्ती एवं समकालीन ग्रन्थ एवं ग्रंथकारों तथा अन्य विविध सन्दर्भ सामग्री विस्मृतियों के अन्धकार में विलीन हो जाती.

यही क्यों? बहुमुखी सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास के लिए व्याकुल अनेक महामहिम भट्टारकों के कृतित्व एवं व्यक्तित्व भी विस्मृति के गर्भ में चले जाते और इस दुर्भाग्य से श्रमण-संस्कृति का बहुआयामी विकासोन्मुखी रचनात्मक इतिहास संभवतः लिपिबद्ध नहीं हो पाता.

इसी प्रकार अनेक संवेदनशील राजाओं, महाराजाओं एवं साहित्यरसिक नगरसेठों के यशस्वी कार्य भी अंधकाराच्छन्न हो जाते. समकालीन एवं भविष्यकालीन इतिहास की सुरक्षा की दृष्टि से अपभ्रंश महाकवि अपनी ग्रन्थ प्रशस्तियों के माध्यम से यदि कुछ पूर्ववर्ती एवं समकालीन राजा-महाराजाओं भट्टारकों एवं नगरसेठों के उल्लेख न करते तो राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक इतिहास या हो विस्मृति के गर्भ में रहता अथवा विकलांग बना रहता.

इसमें संदेह नहीं कि इस ग्रन्थ-प्रशस्तियों ने सर्वोदयी श्रमण संस्कृति की जीवन्त बनाये रखा. अतः भारतीय इतिहास उसके विकासोन्मुखी रचनात्मक उपकार को कभी भी विस्मृत नहीं कर सकेगा.

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जन्म: 1 फरवरी, 1929 को मालथौन (सागर, म० प्र०) में. काशी हिन्दू विश्वविधालय से उच्च शिक्षा.

प्रो० राजाराम जैन राष्ट्रपति पुरस्कार सम्मान (2001) द्वारा सम्मानित

जन्म: 1 फरवरी, 1929 को मालथौन (सागर, म० प्र०) में. काशी हिन्दू विश्वविधालय से उच्च शिक्षा. गवर्नमेंट कॉलेज, शहडोल (म० प्र०), प्राकृत शोध सस्थांन, वैशाली तथा मगध विश्वविधालय सेवान्तर्गत ह. दा. जैन कॉलेज, आरा (बिहार) मे शिक्षण कार्य. मगध यूनिवर्सिटी मे प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष पद से जनवरी 1991 मे अवकाश ग्रहण.

प्रकाशन: अभी तक 34 ग्रन्थ- मौलिक एवं सम्पादित प्रमुख हैं. रइधू साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन, वडढमाणचरिउ (विबुध श्रीधर, रइधू -ग्रंथावली भाग 1-2, पुण्णासवकहा (रइधू ), भद्रबाहु- चाणक्य -चंदरगुप्त कथानक (रइधू), शैरसनी प्राकृत भाषा और उसके साहित्य का इतिहास, आरामसोहाकहा (संघतिलक गणि), भविष्यदत्त- काव्य (प्राकृत, महेश्वर सूरी), अगडदत्तचरिय (देवेंद्र गणि), मध्यकालीन जैन सट्टक- नाटक, षटखडगम लेखन- कथा, भारतीय ज्ञान-विज्ञान के महामेरु: आचार्य कुन्दकुन्द, राजा भोज और कालिदास, हिंदी के मध्यकालीन लोककवि रइधू कृत वित्तसारो (चारित्रासागर), दुर्लभ जैन पांडुलिपियों एवं प्राकृत जैन शिलालेखों का मूल्यांकन आदि. अनेक स्मृति- ग्रंथों, अभिनन्दन-ग्रंथों तथा अन्य उच्चस्तरीय ग्रंथों एवं पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन.

On the Stage: Prem Suman Jain, M. J. Indrakumar, Hampa Nagarajaiah, Ajith Kabbina, Bhaṭṭāraka Cārukīrti Svāmī, Rajaram Jain, Nalini Balbir and Adelheid Mette.

कुन्दकुन्द स्मृति पुरस्कार सहित राष्ट्रीय स्तर के तेरह पुरस्कारों से सम्मानित, राष्ट्रपति – सहस्त्राब्दी (सन 2000) सम्मान से अलंकृत. अनेक विश्वविद्यालयों, शोध- संस्थानों तथा U.G.C., N.C.E.R.T, दिल्ली आदि की समितियों के मानद सदस्य अ. भा. दी. जैन विद्वत्परिषद के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा Man of the year -2004 (U.S.S)

(This article was sent to The Quint by Dr Raja Ram Jain for our Independence Day campaign, BOL – Love your Bhasha.)

(Love your mother tongue? This Independence Day, tell The Quint why and how you love your bhasha. You may even win a BOL t-shirt! Sing, write, perform, spew poetry – whatever you like – in your mother tongue. Send us your BOL at bol@thequint.com or WhatsApp it to 9910181818.)

(At The Quint, we are answerable only to our audience. Play an active role in shaping our journalism by becoming a member. Because the truth is worth it.)

Published: 14 Aug 2017,11:21 AM IST

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